धनलोलुपता के कारण ही ज्योतिष का ह्रास हुआ - रमेश चिन्तक
कानपुर। इंडियन कौंसिल ऑफ एस्ट्रोलॉजिकल साइंस कानपुर चैप्टर एवं चिन्तक इंस्टिट्यूट ऑफ वैदिक साइंसेस के संयुक्त तत्वावधान में अखिल भारतीय ज्योतिष सम्मेलन का शुभारंभ रामलीला भवन, मेस्टन रोड हुआ। इस सम्मेलन में ज्योतिष विद्या के वैज्ञानिक अनुसंधान के साथ नीति सम्मत, धर्म सम्मत उत्थान के उद्देश्य से ‘वर्तमान समय में ज्योतिष जगत में बढ़ती अतिव्यावसायिकता एवं समाज के प्रति ज्योतिषियों का उत्तर दायित्व’ विषय पर चर्चा हुई। सम्मेलन के प्रथम दिन स्व. डॉ. बी.वी. रमन मेमोरियल सेशन कार्यक्रम गणपति वंदना के साथ प्रातः 8:50 पर प्रारम्भ हुआ। कार्यक्रम का शुभारंभ कोयला मंत्रालय के निदेशक डॉ. आर.एन. त्रिवेदी ने दीप प्रज्ज्वलित करके किया। डॉ. त्रिवेदी ने उद्घाटन उद्बोधन में कहा कि प्राचीन वैदिक एवं ऐतिहासिक घटनाएं कपोल कल्पित नहीं हो सकती हैं। उन्होनें कुछ पौराणिक घटनाओं के समय का भी उल्लेख किया और कहा कि विज्ञान अब कृष्ण और महाभारत काल के समय तक पहुंच चुका है। इसके बाद आईकास कानपुर चैप्टर की ओर से स्मारिका का विमोचन किया गया।
आईकास कानपुर चैप्टर के चेयरमैन एवं चिन्तक इंस्टिट्यूट के फाउंडर चेयरमैन श्री रमेश चिंतक ने बताया कि 21 वर्षों में आईकास चैप्टर में लगभग 1600 विद्यार्थियों ने ज्योतिष की विधिवत शिक्षा ग्रहण की। इसमें सभी विधा के लोग थे प्रशासनिक अधिकारी, चिकित्सक, अभियंता, पत्रकार, शिक्षक, युवा, सेवानिवृत्त बुजुर्ग व जिज्ञासु महिलाएं। ज्योतिष का अध्ययन एवं अनुसंधान धर्मध्येय है और इसका आधार ऋषियों द्वारा प्रणीत ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति और गति पर निर्भर करता है। कोई भी विद्या अर्थकारी हो यह अपरिहार्य नहीं है। ऐसा ज्योतिष विद्या के साथ भी है। ज्योतिष विद्या से धनोपार्जन करना है तो विद्या के नीति सम्मत, धर्म सम्मत, तर्क सम्मत और विज्ञान सम्मत तथ्यों के सम्यक स्वरूप अनुसार ही धनोपार्जन किया जाना चाहिए। विद्या के प्रयोग में नितांत अर्थपरक तथ्यों का सहारा लेना कदापि उचित नहीं है, अपितु अनुचित है। जिस प्रकार शरीर को स्वस्थ एवं रोग मुक्त रखने के लिए आचार-विचार, नियम-संयम, पथ्य-कुपथ्य का सम्यक विचार करके ही संतुलित औषधि का सेवन उचित होता है। वैसे ही समाज के अंगों को बौद्धिक, मानसिक, आध्यात्मिक रूप से स्वस्थ बनाए रखने के लिए ज्योतिष विद्या का शास्त्रोचित प्रयोग ही उचित है। आदिकाल से चली आ रही ज्योतिष की इस मान्यता को आज का विज्ञान भी स्वीकार करता है कि सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड एक ही चैतन्य शरीर है। श्री चिन्तक ने कहा कि यदि संक्षेप में ज्योतिष को परिभाषित करना हो तो हम कह सकते हैं कि सृष्टि की समग्रता और पूर्णत्व को समन्वित रूप से देखने का विज्ञान है ज्योतिष। प्रायः लोग अज्ञात भय, आत्मविश्वास की कमी और अंधविश्वास से ग्रसित होकर इन्ही धनलोलुप तथा कथित स्वनाम धन्य ज्योतिषियों के द्वारा ठगे जाते हैं।
धन की लालच एवं अज्ञानता के कारण वह ज्योतिषी यह भी भूल जाते हैं कि आत्यांतिक रूप और पारलौकिक दृष्टि से वह स्वयं ठगे गये हैं क्योंकि उनके पुण्यों का ह्रास होकर वह अधोगति की ओर अग्रसर हो रहे हैं। इस तरह सतत लौकिक लाभ के साथ पारलौकिक हानि का नया अध्याय उनके आत्मिक यात्रा में जुड़ रहा है। अब भी समय है कि धन के लालच में आज का ज्योतिषी अपराधी न बन जाए। व्यावसायिकता की अंधी दौड़ में वह इतना लिप्त न हो कि ऋषियों द्वारा दिए ज्योतिषी सिद्धांतों का बोझ भविष्य में अपने कंधों पर उठा ही न सके। उन्होंने कहा कि यदि ज्योतिषी लालच में आकर गड़बड़ करेगा तो उसके लिए विशेष प्रकार के नरक का प्रभावधान बताया गया है। पुराने कवियों ने ज्योतिषी व वैद्य को चित्रकार व कवि जैसे मौलिक रचनाकार और संदेशवाहक को सेवक की श्रेणी में रखा है और इनके अंतिम स्थान नर्क ही बताया है, दृष्टव्य है –
वैद चितेरा ज्योतिषी, हरकारा औ कव्य। इनकौ नरक विशेष है औरन को जब तव्य।।
अज्ञानता कोई बुराई नहीं है लेकिन अज्ञानता के साथ भविष्य की बात बताना मूढ़ता है। आज ऐसे लोग भी इस विद्या का व्यवसाय कर रहे हैं जो इसके सिद्धान्तों के जानते तक नहीं हैं। ज्योतिषीय सलाह देना बड़ी जिम्मेदारी का काम है सरकार को इस दिशा में पहल करनी चाहिए कि विधिवत शिक्षित और प्रामाणिक ज्योतिषी ही ज्योतिषीय परामर्श का वैध अधिकारी हो।
आईकास के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री ए.बी. शुक्ला ने बताया कि हृदय के भीतर की धमनियां और शिराएं बिल्कुल भारत में गंगा के मार्ग की भांति हैं। उन्होंने स्लाइड शो पर हृदय का अंतरिक चित्र और गंगा नदी का रूट चार्ट दिखाते हुए दोनों की समानता के बारे में बताया। इसके अलावा उन्होंने भगवान शिव और नाग के विषय में भी ज्योतिषीय प्रकाश डाला। इसके बाद ड्राई-फ्रूट का संबंध मानव शरीर के विभिन्न अंगों से जोड़ते हुए बताया कि मस्तिष्क का आकार अखरोट की तरह होता है, काजू का आकार कान तथा किडनी की तरह, ऑखें बादाम की तरह और किशमिश छुआरे का आकार हमारे धड़कते हृदय की तरह होता है, इसलिए जो भी अंग प्रभावित हो उसके आकार का ड्राई-फ्रूट खाने से लाभ होता है। उत्तर प्रदेश सरकार के ट्रेड टैक्स एडिश्नल कमिश्नर श्री यू.पी सिंह जी ने बताया कि ज्योतिष अनादि काल से चला आ रहा है और मानव के प्रथम संस्कार से जुड़ा है। आगे बोलते हुए कहा कि ज्योतिष वेदों की गणित है, वेदों की भाषा है। ज्योतिष आध्यात्म से जुड़ा हुआ चिंतन है तथा चिंतन करके ही भावनाओं को व्यक्त करना श्रेष्ठ होगा।
दिल्ली हाई कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश एवं विधि आयोग के सदस्य जस्टिस एस.एन कपूर ने ज्योतिष के गूढ़ रहस्यों पर अपना व्याख्यान दिया। उन्होंने नवांश और पुष्करांश के शोधपरक सूत्रों को भी बताया। जयपुर से आए आईकास के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सतीश शर्मा ने वास्तु से संबंधित व्याख्यान देते हुए कहा कि वास्तु से संबंधित कई पुस्तकों में भ्रामक बाते लिखी गई हैं जिसको लेकर आम आदमी ठगा जा रहा है।
उन्होंने बताया कि वास्तु की किताबें और कई वास्तु शास्त्री दक्षिण-पश्चिम में शयनकक्ष बनाने की सलाह दे रहे हैं, लेकिन उन्होंने कहा कि यह सब बिल्कुल गलत लिखा गया है ये सब किसी भी वास्तु ग्रंथों में नहीं लिखा है। श्री शर्मा ने बताया कि शयन कक्ष के लिए सबसे उचित स्थान दक्षिण होता है। उन्होंने विशेष बात यह कही कि जो वास्तुशास्त्री ज्योतिष नहीं जानता वह बिल्कुल ढोंगी वास्तुशास्त्री है क्योंकि ज्योतिष और वास्तु एक दूसरे के पूरक हैं। चेन्नई से आई मार्डन एस्ट्रोलॉजिकल मैग्जीन की संपादक गायत्री देवी वासुदेव ने बच्चों के जन्म के विषय में बताया। उन्होंने बताया कि जब मॉ से बच्चे के बीच जुड़ी क्वार्ड काटी जाती है वहीं असली जन्म समय होता है न कि बच्चे के बाहर आने व प्रथम बार रोने का समय। बैंगलूर से आए नाड़ी ग्रंथों के शोधकर्ता श्री ए.वी. सुंदरम ने नाड़ी के अनुसार नक्षत्रों और लग्न के विषय में ज्ञान दिया। बैंगलूर से ही आए श्री आल्से ने गजकेसरी योग के बारे में बताया। इसके अलावा दिल्ली चैप्टर के चेयरमैन रोहित वेदी, विशाखापट्नम से आईं सुश्री दुर्गा, अल्वर चैप्टर से श्री आर.पी.शर्मा, जयपुर चैप्टर से जगदीश तिवारी ने अपने शोधपरक व्याख्यान दिए। इस सम्मेलन में मुख्य रूप से आईकास के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भोला नाश शुक्ल, कमलेश गुप्ता, अरुण त्रिपाठी, नीरज जोशी, शशिशेखर त्रिपाठी, सियाशरण मिश्रा, डॉ. वीके कटियार, गणेश वर्मा, एसके मिश्रा, गोविन्द, पं. रामू मिश्र आदि उपस्थित रहे।
कानपुर। इंडियन कौंसिल ऑफ एस्ट्रोलॉजिकल साइंस कानपुर चैप्टर एवं चिन्तक इंस्टिट्यूट ऑफ वैदिक साइंसेस के संयुक्त तत्वावधान में अखिल भारतीय ज्योतिष सम्मेलन का शुभारंभ रामलीला भवन, मेस्टन रोड हुआ। इस सम्मेलन में ज्योतिष विद्या के वैज्ञानिक अनुसंधान के साथ नीति सम्मत, धर्म सम्मत उत्थान के उद्देश्य से ‘वर्तमान समय में ज्योतिष जगत में बढ़ती अतिव्यावसायिकता एवं समाज के प्रति ज्योतिषियों का उत्तर दायित्व’ विषय पर चर्चा हुई। सम्मेलन के प्रथम दिन स्व. डॉ. बी.वी. रमन मेमोरियल सेशन कार्यक्रम गणपति वंदना के साथ प्रातः 8:50 पर प्रारम्भ हुआ। कार्यक्रम का शुभारंभ कोयला मंत्रालय के निदेशक डॉ. आर.एन. त्रिवेदी ने दीप प्रज्ज्वलित करके किया। डॉ. त्रिवेदी ने उद्घाटन उद्बोधन में कहा कि प्राचीन वैदिक एवं ऐतिहासिक घटनाएं कपोल कल्पित नहीं हो सकती हैं। उन्होनें कुछ पौराणिक घटनाओं के समय का भी उल्लेख किया और कहा कि विज्ञान अब कृष्ण और महाभारत काल के समय तक पहुंच चुका है। इसके बाद आईकास कानपुर चैप्टर की ओर से स्मारिका का विमोचन किया गया।
आईकास कानपुर चैप्टर के चेयरमैन एवं चिन्तक इंस्टिट्यूट के फाउंडर चेयरमैन श्री रमेश चिंतक ने बताया कि 21 वर्षों में आईकास चैप्टर में लगभग 1600 विद्यार्थियों ने ज्योतिष की विधिवत शिक्षा ग्रहण की। इसमें सभी विधा के लोग थे प्रशासनिक अधिकारी, चिकित्सक, अभियंता, पत्रकार, शिक्षक, युवा, सेवानिवृत्त बुजुर्ग व जिज्ञासु महिलाएं। ज्योतिष का अध्ययन एवं अनुसंधान धर्मध्येय है और इसका आधार ऋषियों द्वारा प्रणीत ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति और गति पर निर्भर करता है। कोई भी विद्या अर्थकारी हो यह अपरिहार्य नहीं है। ऐसा ज्योतिष विद्या के साथ भी है। ज्योतिष विद्या से धनोपार्जन करना है तो विद्या के नीति सम्मत, धर्म सम्मत, तर्क सम्मत और विज्ञान सम्मत तथ्यों के सम्यक स्वरूप अनुसार ही धनोपार्जन किया जाना चाहिए। विद्या के प्रयोग में नितांत अर्थपरक तथ्यों का सहारा लेना कदापि उचित नहीं है, अपितु अनुचित है। जिस प्रकार शरीर को स्वस्थ एवं रोग मुक्त रखने के लिए आचार-विचार, नियम-संयम, पथ्य-कुपथ्य का सम्यक विचार करके ही संतुलित औषधि का सेवन उचित होता है। वैसे ही समाज के अंगों को बौद्धिक, मानसिक, आध्यात्मिक रूप से स्वस्थ बनाए रखने के लिए ज्योतिष विद्या का शास्त्रोचित प्रयोग ही उचित है। आदिकाल से चली आ रही ज्योतिष की इस मान्यता को आज का विज्ञान भी स्वीकार करता है कि सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड एक ही चैतन्य शरीर है। श्री चिन्तक ने कहा कि यदि संक्षेप में ज्योतिष को परिभाषित करना हो तो हम कह सकते हैं कि सृष्टि की समग्रता और पूर्णत्व को समन्वित रूप से देखने का विज्ञान है ज्योतिष। प्रायः लोग अज्ञात भय, आत्मविश्वास की कमी और अंधविश्वास से ग्रसित होकर इन्ही धनलोलुप तथा कथित स्वनाम धन्य ज्योतिषियों के द्वारा ठगे जाते हैं।
धन की लालच एवं अज्ञानता के कारण वह ज्योतिषी यह भी भूल जाते हैं कि आत्यांतिक रूप और पारलौकिक दृष्टि से वह स्वयं ठगे गये हैं क्योंकि उनके पुण्यों का ह्रास होकर वह अधोगति की ओर अग्रसर हो रहे हैं। इस तरह सतत लौकिक लाभ के साथ पारलौकिक हानि का नया अध्याय उनके आत्मिक यात्रा में जुड़ रहा है। अब भी समय है कि धन के लालच में आज का ज्योतिषी अपराधी न बन जाए। व्यावसायिकता की अंधी दौड़ में वह इतना लिप्त न हो कि ऋषियों द्वारा दिए ज्योतिषी सिद्धांतों का बोझ भविष्य में अपने कंधों पर उठा ही न सके। उन्होंने कहा कि यदि ज्योतिषी लालच में आकर गड़बड़ करेगा तो उसके लिए विशेष प्रकार के नरक का प्रभावधान बताया गया है। पुराने कवियों ने ज्योतिषी व वैद्य को चित्रकार व कवि जैसे मौलिक रचनाकार और संदेशवाहक को सेवक की श्रेणी में रखा है और इनके अंतिम स्थान नर्क ही बताया है, दृष्टव्य है –
वैद चितेरा ज्योतिषी, हरकारा औ कव्य। इनकौ नरक विशेष है औरन को जब तव्य।।
अज्ञानता कोई बुराई नहीं है लेकिन अज्ञानता के साथ भविष्य की बात बताना मूढ़ता है। आज ऐसे लोग भी इस विद्या का व्यवसाय कर रहे हैं जो इसके सिद्धान्तों के जानते तक नहीं हैं। ज्योतिषीय सलाह देना बड़ी जिम्मेदारी का काम है सरकार को इस दिशा में पहल करनी चाहिए कि विधिवत शिक्षित और प्रामाणिक ज्योतिषी ही ज्योतिषीय परामर्श का वैध अधिकारी हो।
आईकास के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री ए.बी. शुक्ला ने बताया कि हृदय के भीतर की धमनियां और शिराएं बिल्कुल भारत में गंगा के मार्ग की भांति हैं। उन्होंने स्लाइड शो पर हृदय का अंतरिक चित्र और गंगा नदी का रूट चार्ट दिखाते हुए दोनों की समानता के बारे में बताया। इसके अलावा उन्होंने भगवान शिव और नाग के विषय में भी ज्योतिषीय प्रकाश डाला। इसके बाद ड्राई-फ्रूट का संबंध मानव शरीर के विभिन्न अंगों से जोड़ते हुए बताया कि मस्तिष्क का आकार अखरोट की तरह होता है, काजू का आकार कान तथा किडनी की तरह, ऑखें बादाम की तरह और किशमिश छुआरे का आकार हमारे धड़कते हृदय की तरह होता है, इसलिए जो भी अंग प्रभावित हो उसके आकार का ड्राई-फ्रूट खाने से लाभ होता है। उत्तर प्रदेश सरकार के ट्रेड टैक्स एडिश्नल कमिश्नर श्री यू.पी सिंह जी ने बताया कि ज्योतिष अनादि काल से चला आ रहा है और मानव के प्रथम संस्कार से जुड़ा है। आगे बोलते हुए कहा कि ज्योतिष वेदों की गणित है, वेदों की भाषा है। ज्योतिष आध्यात्म से जुड़ा हुआ चिंतन है तथा चिंतन करके ही भावनाओं को व्यक्त करना श्रेष्ठ होगा।
दिल्ली हाई कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश एवं विधि आयोग के सदस्य जस्टिस एस.एन कपूर ने ज्योतिष के गूढ़ रहस्यों पर अपना व्याख्यान दिया। उन्होंने नवांश और पुष्करांश के शोधपरक सूत्रों को भी बताया। जयपुर से आए आईकास के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सतीश शर्मा ने वास्तु से संबंधित व्याख्यान देते हुए कहा कि वास्तु से संबंधित कई पुस्तकों में भ्रामक बाते लिखी गई हैं जिसको लेकर आम आदमी ठगा जा रहा है।
उन्होंने बताया कि वास्तु की किताबें और कई वास्तु शास्त्री दक्षिण-पश्चिम में शयनकक्ष बनाने की सलाह दे रहे हैं, लेकिन उन्होंने कहा कि यह सब बिल्कुल गलत लिखा गया है ये सब किसी भी वास्तु ग्रंथों में नहीं लिखा है। श्री शर्मा ने बताया कि शयन कक्ष के लिए सबसे उचित स्थान दक्षिण होता है। उन्होंने विशेष बात यह कही कि जो वास्तुशास्त्री ज्योतिष नहीं जानता वह बिल्कुल ढोंगी वास्तुशास्त्री है क्योंकि ज्योतिष और वास्तु एक दूसरे के पूरक हैं। चेन्नई से आई मार्डन एस्ट्रोलॉजिकल मैग्जीन की संपादक गायत्री देवी वासुदेव ने बच्चों के जन्म के विषय में बताया। उन्होंने बताया कि जब मॉ से बच्चे के बीच जुड़ी क्वार्ड काटी जाती है वहीं असली जन्म समय होता है न कि बच्चे के बाहर आने व प्रथम बार रोने का समय। बैंगलूर से आए नाड़ी ग्रंथों के शोधकर्ता श्री ए.वी. सुंदरम ने नाड़ी के अनुसार नक्षत्रों और लग्न के विषय में ज्ञान दिया। बैंगलूर से ही आए श्री आल्से ने गजकेसरी योग के बारे में बताया। इसके अलावा दिल्ली चैप्टर के चेयरमैन रोहित वेदी, विशाखापट्नम से आईं सुश्री दुर्गा, अल्वर चैप्टर से श्री आर.पी.शर्मा, जयपुर चैप्टर से जगदीश तिवारी ने अपने शोधपरक व्याख्यान दिए। इस सम्मेलन में मुख्य रूप से आईकास के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भोला नाश शुक्ल, कमलेश गुप्ता, अरुण त्रिपाठी, नीरज जोशी, शशिशेखर त्रिपाठी, सियाशरण मिश्रा, डॉ. वीके कटियार, गणेश वर्मा, एसके मिश्रा, गोविन्द, पं. रामू मिश्र आदि उपस्थित रहे।
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