सप्तनाड़ी
चक्र : वर्षा का श्रेष्ठ वैदिक ज्ञान
पं.सतीश
शर्मा, जयपुर
वेदांग
ज्योतिष में सर्वश्रेष्ठ विज्ञान सप्तनाड़ी चक्र के रूप में देखा जा सकता है, जो
किसी क्षेत्र विशेष की वर्षा भविष्यवाणी के रूप में प्रयुक्त किया जाता है। यद्यपि
वर्षा के लिए रोहिणी का तपना अर्थात् रोहिणी नक्षत्र में सूर्य के 13 दिन की अवधि
का ज्ञान, हिरणी का तपना, हिरणी मृगशीर्ष नक्षत्र मण्डल के लिए प्रयुक्त किया जाता
है, वायु परीक्षण, चन्द्रशृंग व कई पूर्णिमाओं पर मेघों की स्थिति इत्यादि का
विषद् वर्णन शास्त्रों में मिलता है । हजारों वर्षों के अनुभव में यह आया है कि वर्षा
के लिए वेदाङ्ग ज्योतिष में जो योग व चक्र मिलते हैं वे असाधारण रूप से सफल जाते
हैं
आर्द्रा
से शुरु करके स्वाति नक्षत्र तक दस नक्षत्र स्त्री नक्षत्र मान लिये गये और मूल से
लेकर मृगशिरा तक 14 नक्षत्रों को पुरुष नक्षत्र माना गया और विशाखा, अनुराधा और
ज्येष्ठा को नपुंसक नक्षत्र माना गया। इन नक्षत्रों में अलग-अलग एक ही समय पर
सूर्य और चन्द्रमा की स्थिति और पुरुष-स्त्री के सहयोग से वर्षा की तिथियाँ और
उसकी मात्रा निर्धारित की जाती रही है।
आमतौर
पर 21-22 जून पर पड़ने वाले आर्द्रा प्रवेश को ऐसा दिन माना गया जब भारत में से
गुजरती हुई, कर्क रेखा पर सूर्य भ्रमण करने ही वाले होते हैं। मिथुन राशि के मध्य
अंशों में सूर्य जब कर्क रेखा पर आने को आतुर होते हैं, तो वर्षा दक्षिण भारत से
प्रवेश करके मध्य भारत पर होने की स्थिति में आ जाती है। इसके बाद देश-विशेष के
लिए सप्तनाड़ी चक्र अत्यधिक उपयोगी भविष्यवाणियों के लिए श्रेष्ठ माना गया है।
कुल
सात नाड़ियाँ होती हैं, जिनमें चण्डा नाड़ी में भारी हवा और तूफान देखने को मिलता
है। शनि को वर्षा रोकने वाला माना गया है जो इस राशि के स्वामी है। वायु नाड़ी के
स्वामी सूर्य है, जो बादलों को सुखा देते हैं और वर्षा नहीं होने देते। अग्नि नाड़ी
के स्वामी मंगल है जो भयानक गर्मी तो देते हैं परन्तु वर्षा नहीं होने देते। अगर
सूर्य से आगे-आगे मंगल भ्रमण कर रहे हों तो बादल घूमते तो रहेंगे बरसेंगे नहीं।
सौम्य नाड़ी के स्वामी गुरु हैं और थोड़ी
बहुत वर्षा करा देते हैं।
भारी
वर्षा कराने में सर्वश्रेष्ठ अमृता नाड़ी है, जिसके स्वामी चन्द्रमा हैं और अगर यह
वर्षा के दिनों में श्रवण, धनिष्ठा, मघा और आश्लेषा में भ्रमण करें तो महावर्षा
होती है और जलप्लावन होता है। दूसरे नम्बर पर जला नाड़ी है, जिसके स्वामी बुध हैं
और वे भी यदि पूर्वाफाल्गुनी, शतभिषा, अभिजित और पुष्य नक्षत्र में हों तो काफी
बरसात करवा देते हैं। नीरा नाड़ी के स्वामी शुक्र हैं और यदि वे बरसात के दिनों में
पूर्वाभाद्रपद, उत्तराषाढ़, पुनर्वसु और उत्तरफाल्गुनी नक्षत्र में पड़ जायें तो
काफी वर्षा करा देते हैं। यदि जलदायक चार नाड़ियाँ यथा- अमृता, जला, नीरा और सौम्य
में उनके स्वामी एक साथ आ जाएं तो पृथ्वी पर दूर-दूर तक जल ही जल दिखता है बाढ़ की
परिस्थतियाँ आती हैं । 18
सितम्बर, 2021 को चन्द्रमा धनिष्ठा नक्षत्र में थे, मंगल उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र
में थे, सूर्य भी उत्तराफाल्गुनी में थे, गुरु धनिष्ठा नक्षत्र में थे, शनि श्रवण
नक्षत्र मे ंथे । सूर्य मंगल उत्तराफाल्गुनी में थे और बुध चित्रा में थे, जिनके
कारण तूफान भी आया ।
परिणामस्वरूप 19 सितम्बर को जब पूर्णिमा आई और समुद्र में ज्वार-भाटा आया
स्वयं
के अलावा शनि और गुरु मौजूद थे, जिनके कारण यह नाड़ी अत्यधिक सफल रही और अभूतपूर्व
वर्षा हुई ।
अगस्त्य उदय के बाद भी
भारी वर्षा-
परम्परागत
ज्योतिष में यह माना जाता है कि अगस्त्य तारे के अस्त होने पर वर्षाकाल प्रारम्भ
होता है और अगस्त्य तारे के उदय होने के बाद वर्षा काल समाप्त हो जाता है। अगस्त्य
ऋषि के बारे में तो यह प्रसिद्ध है कि उन्होंने समुद्र जल को ही सोख लिया था। यह
पुराण कथा है। तुलसीदास जी ने इसी को सुन्दरकाण्ड में इस प्रकार कहा है-
उदित
अगस्ति पंथ जल शोषा
जिमी
लोभहि शोषइ संतोषा।
परन्तु
वर्ष 2021 में 17 सितम्बर को अगस्त्य तारे के उदय के बाद भी भारी वर्षा हुई जो कि
आश्चर्य का विषय है। क्या यह मान लें कि सप्तनाड़ी चक्र अत्यधिक सक्रिय था और अमृता
नाड़ी में तीन ग्रह होने के कारण देश के कई भागों में जल प्लावन की स्थिति आई। जब
यह परीक्षण करने पर हमने सप्तनाड़ी चक्र को और उसके आधार पर की गई भविष्यवाणी को अत्यधिक सफल पाया तो श्रद्धा
वैदिक ऋषियों के दिये गये विभिन्न चक्रों में और भी अधिक बढ़ गई।
रोहिणी
या हिरणी 13-13 दिन तप लें तो सावन-भादो अच्छे जाएंगे। यदि सूर्य की इन नक्षत्रों
में उपस्थिति के दौरान यदि बीच में ही वर्षा हो जाए तो सावन-भादो का वर्षाकाल कमजोर
पड़ जाता है। यह बात सदा सच उतरती है।
विस्तृत लेख ।। उदाहरण में कलकत्ता में जल से उपजी जटिलताओं को दिखाया, इसी समय मे उत्तराखंड, चेन्नई में इससे भीषण जल से उपजी जटिलतायें उपस्थित हुईं इनका उल्लेख भी नही ।। सूत्र की सर्वज्ञता होती है ।। अतः किसी सूत्र को आधे अधूरे उदाहरण से सिद्ध नही करना ही श्रेयस्कर होता है ।। सूत्र की गहनता से अध्धयन की आवश्यकता है ।।
ReplyDeleteभोला नाथ शुक्ल
कानपुर