Sunday, June 17, 2012


आर.सी. शर्मा "आरसी" "दीप-शिखा" विद्या विहार, कोटा जं०-324002 जी की सुंदर रचना आनंद लें. पितृ दिवस पर विशेष--- रहे सदा जीवनभर जग में, तुम मेरी पहचान पिता, कहाँ चुका पातीं जीवनभर,इस ऋण को संतान पिता । चले तुम्हारी अंगुली थामे , हम पथरीली राहों पर, बिना तुम्हारे वो सब रस्ते,रह जाते अनजान पिता । मेरे तुतलाते बोलों ने अर्थ तुम्हीं से पाया था, मेरी बीमारी में अक्सर बन जाते लुकमान पिता । गुरु ,जनक, पालक,पोषक,रक्षक तुम भाग्यविधाता भी, मोल तुम्हारा जान न पाए , हम ऐसे नादान पिता । अपनी, आँखों के तारों का, आसमान थे सचमुच तुम सौ जन्मों तक नहीं चुकेगा, हमसे यह एहसान पिता । तुम माँ के माथे की बिंदिया, और हमारा संबल थे, बिना तुम्हारे माँ के संग हम, रो-रो कर हलकान पिता । जिनके कंधे चढ़ कर हम नें जग के मेले देखे थे, अपने कांधे तुम्हें चढ़ा कर, छोड़ आये शमशान पिता । Bhola Nath Shukla 17.6.2012

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