-* रक्षाबन्धन, उपाकर्मादि निर्णय: *-
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by - Aachary Kashyap
अत्रैव रक्षाबंधनमुक्तं हेमाद्रौ भविष्ये-
(सम्प्राप्ते श्रावणस्यान्ते पौर्णमास्यां दिनोदये।
स्नानं कुर्वीत मतिमान् श्रुतिस्मृतिविधानत:।।
उपाकर्मोदिकं प्रोक्तमृषीणां चैव तर्पणम्।
शूद्राणां मन्त्ररहितं स्नानं दानं प्रशस्यते।)
उपाकर्माणि कर्तव्यमृषीणां चैव पूजनम्।
ततोऽपरान्ह समये रक्षापोटलिकां शुभाम्।
कारयेदक्षतै: शस्तै: सिद्धार्थैर्हेमभूषितै:। इति।
अत्रोपाकर्मानन्तरस्य पूर्णातिथावार्थिकस्यानुवाद ो न तु विधि:।
गौरवात् प्रयोगविधिभेदेन क्रमायोगाच्छूद्रादौ तदयोगाच्च। तेन परेद्युरुपाकरणेऽपि पूर्वेद्युरपरान्हे तत्करणं सिद्धम्।
श्रावण मास के अन्त मे पौर्णमासी के सूर्योदय मे श्रुति स्मृति विधान से बुद्धिमान गण स्नान करें।
उपाकर्म आदि तथा ऋषियों का तर्पण करें और शूद्र जन मन्त्र रहित स्नान एवं दान करें। उपाकर्म मे ऋषियो का पूजन करें: तदनन्तर अपरान्ह समय मे शुभ रक्षा करने वाली रक्षा पोटलिका करें। वह अक्षत, सरसों तथा सुवर्ण से युक्त हो।
यहाँ पर उपाकर्म के अनन्तर का पूर्णातिथि के वार्षिक का अनुवाद है, विधि नही है। गौरव प्रयोग विधि भेद से क्रम के अयोग से शूद्रादि मे उसका भी अयोग है। उससे पर दिन उपाकरण मे भी पहले दिन अपरान्ह मे उसका करना सिद्ध है।
''' भद्रायां रक्षाबन्धन विचार: ''''*
इदं भद्रायां न कार्यम्।
भद्रायां द्वे न कर्तव्ये श्रावणी फाल्गुनी तथा।
श्रावणी नृपतिं हन्ति ग्रामं दहति फाल्गुनी।
इति सङ्ग्रहोक्ते।।
तत्सत्वे तु रात्रावपि तदन्ते कुर्यादिति निर्णयामृते।।
भद्रा मे श्रावणी, रक्षाबंधन न करें। भद्रा मे श्रावणी और फाल्गुनी नही करना चाहिए।
श्रावणी राजा का नाश करती है और फाल्गुनी ग्राम का दहन करती है।
उसके (भद्रां विना चेदपरान्हे तदा परा। तत् सत्त्वे तु रात्रावपीत्यर्थ: )यानी भद्रा के रहने पर भद्रा मे न करके भद्रा उपरान्त रक्षाबन्धन करें। चाहे रात्रि ही क्यों न हो।
ऐसा निर्णयामृत का वाक्य है।
'' प्रतिपद्युक्तायां पौरणमास्यां रक्षाबन्धन विचार: ''**
इदं प्रतिपद्युतायां न कार्यम्।।
नन्दाया दर्शने रक्षा बलिदानं दशासु च।
भद्रायां गोकुलक्रीडा देशनाशाय जायते।। इति मदनरत्ने ब्रह्मवैवर्तात्।।
रक्षाबंधन प्रतिपदा से युक्त पूर्णिमा मे न करें। नन्दा (प्रतिपदा) के दर्शन मे रक्षादशा मे बलिदान और भद्रा मे गोकुल की क्रीडा देश के नाश के लिए होती है।
इदं रक्षाबन्धनं नियतकालत्वाद्भद्रावर्ज्यग् रहणदिनेऽपि कार्यं होलिकावत्। ग्रहसङ्क्रान्त्यादौ रक्षानिषेधाभावात्। सर्वेषामेव वर्णानां सूतकं राहुदर्शने। इति तत्कालीनकर्मपर एव न त्वन्यत्र। अन्यथा होलिकायां का गति: अत एव--
नित्ये नैमित्तिके जप्ये होमे यज्ञक्रियादिषु।
उपाकर्माणि चोत्सर्गे ग्रहवेधो न विद्यते।
इति।। नियतकालीने तदभाव इति दिक्।
उपाकर्माणि तद्दिनभिन्नपरं तत्र तन्निषेधादियुक्तं प्राक्।।
क्योंकि यह रक्षाबंधन नियत समय पर होने से भद्रा को छोडकर ग्रहणदिन मे भी करें। होलिका की तरह। ग्रहण और संक्रान्ति मे रक्षानिषेध का अभाव है।
सब वर्णों का ग्रहण के समय सूतक होता है। वह तत्कालीन कर्मपरक है अन्यत्र नही। इसलिए- नित्य, नैमित्तिक, जप, होम, यज्ञक्रिया, उपाकर्म और उत्सर्ग मे ग्रहण का दोष नही होता। इस प्रकार नियतकाल मे उसका अभाव है। उपाकर्म मे वह दिन भिन्नपरक है। उसमे उसका निषेध है। जैसा कि पूर्व मे कहा जा चुका है।
धर्मसिन्धु: - रक्षाबन्धनमस्यामेव पूर्णिमायां भद्रारहितायां त्रिमूहूर्ताधिकोदयव्यापिन् यामपरान्हे प्रदोषादिकाले कार्यम्।।
श्रावणशुक्ल पूर्णिमा को सूर्योदय से तीन मूहूर्त से अधिक व्याप्त तिथि मे भद्रारहित अपरान्ह या प्रदोषकाल मे रक्षाबन्धन करना चाहिए। यदि सूर्योदय से पूर्णिमा तिथि तीन मुहूर्त से कम है तो पूर्व दिन भद्रा समाप्ति के पश्चात् प्रदोष या रात्रिकाल मे भी रक्षा बन्धन करना चाहिए।-- धर्मसिन्धु।।
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इन बचनो के अनुसार--
इस वर्ष २०-८-१३ को व्रत की पूर्णिमा एवं रात्रि 8-29 भद्रा के उपरान्त रक्षाबंधन एवं ऋग्वेदीय,एवं तैत्तरीयभिन्न यजुर्वेदियों का उपाकर्म है।
दिनाँक 21-8-13 को प्रतिपदा व्यापिनी स्नान,दान की पूर्णिमा तीन मुहूर्त से कम होने से रक्षाबन्धन मे निषेध है।
इस दिन आपस्तम्बतैत्तरीयशाखा वालों का उपाकर्म है। (काशी विश्वनाथ, हृषीकेश पञ्चाङ्गानुसारम् )
******
येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:।
तेन त्वाम् प्रतिबध्नामि रक्षे मा चल मा चल ।।
---------------- हर हर महादेव
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by - Aachary Kashyap
अत्रैव रक्षाबंधनमुक्तं हेमाद्रौ भविष्ये-
(सम्प्राप्ते श्रावणस्यान्ते पौर्णमास्यां दिनोदये।
स्नानं कुर्वीत मतिमान् श्रुतिस्मृतिविधानत:।।
उपाकर्मोदिकं प्रोक्तमृषीणां चैव तर्पणम्।
शूद्राणां मन्त्ररहितं स्नानं दानं प्रशस्यते।)
उपाकर्माणि कर्तव्यमृषीणां चैव पूजनम्।
ततोऽपरान्ह समये रक्षापोटलिकां शुभाम्।
कारयेदक्षतै: शस्तै: सिद्धार्थैर्हेमभूषितै:। इति।
अत्रोपाकर्मानन्तरस्य पूर्णातिथावार्थिकस्यानुवाद
गौरवात् प्रयोगविधिभेदेन क्रमायोगाच्छूद्रादौ तदयोगाच्च। तेन परेद्युरुपाकरणेऽपि पूर्वेद्युरपरान्हे तत्करणं सिद्धम्।
श्रावण मास के अन्त मे पौर्णमासी के सूर्योदय मे श्रुति स्मृति विधान से बुद्धिमान गण स्नान करें।
उपाकर्म आदि तथा ऋषियों का तर्पण करें और शूद्र जन मन्त्र रहित स्नान एवं दान करें। उपाकर्म मे ऋषियो का पूजन करें: तदनन्तर अपरान्ह समय मे शुभ रक्षा करने वाली रक्षा पोटलिका करें। वह अक्षत, सरसों तथा सुवर्ण से युक्त हो।
यहाँ पर उपाकर्म के अनन्तर का पूर्णातिथि के वार्षिक का अनुवाद है, विधि नही है। गौरव प्रयोग विधि भेद से क्रम के अयोग से शूद्रादि मे उसका भी अयोग है। उससे पर दिन उपाकरण मे भी पहले दिन अपरान्ह मे उसका करना सिद्ध है।
''' भद्रायां रक्षाबन्धन विचार: ''''*
इदं भद्रायां न कार्यम्।
भद्रायां द्वे न कर्तव्ये श्रावणी फाल्गुनी तथा।
श्रावणी नृपतिं हन्ति ग्रामं दहति फाल्गुनी।
इति सङ्ग्रहोक्ते।।
तत्सत्वे तु रात्रावपि तदन्ते कुर्यादिति निर्णयामृते।।
भद्रा मे श्रावणी, रक्षाबंधन न करें। भद्रा मे श्रावणी और फाल्गुनी नही करना चाहिए।
श्रावणी राजा का नाश करती है और फाल्गुनी ग्राम का दहन करती है।
उसके (भद्रां विना चेदपरान्हे तदा परा। तत् सत्त्वे तु रात्रावपीत्यर्थ: )यानी भद्रा के रहने पर भद्रा मे न करके भद्रा उपरान्त रक्षाबन्धन करें। चाहे रात्रि ही क्यों न हो।
ऐसा निर्णयामृत का वाक्य है।
'' प्रतिपद्युक्तायां पौरणमास्यां रक्षाबन्धन विचार: ''**
इदं प्रतिपद्युतायां न कार्यम्।।
नन्दाया दर्शने रक्षा बलिदानं दशासु च।
भद्रायां गोकुलक्रीडा देशनाशाय जायते।। इति मदनरत्ने ब्रह्मवैवर्तात्।।
रक्षाबंधन प्रतिपदा से युक्त पूर्णिमा मे न करें। नन्दा (प्रतिपदा) के दर्शन मे रक्षादशा मे बलिदान और भद्रा मे गोकुल की क्रीडा देश के नाश के लिए होती है।
इदं रक्षाबन्धनं नियतकालत्वाद्भद्रावर्ज्यग्
नित्ये नैमित्तिके जप्ये होमे यज्ञक्रियादिषु।
उपाकर्माणि चोत्सर्गे ग्रहवेधो न विद्यते।
इति।। नियतकालीने तदभाव इति दिक्।
उपाकर्माणि तद्दिनभिन्नपरं तत्र तन्निषेधादियुक्तं प्राक्।।
क्योंकि यह रक्षाबंधन नियत समय पर होने से भद्रा को छोडकर ग्रहणदिन मे भी करें। होलिका की तरह। ग्रहण और संक्रान्ति मे रक्षानिषेध का अभाव है।
सब वर्णों का ग्रहण के समय सूतक होता है। वह तत्कालीन कर्मपरक है अन्यत्र नही। इसलिए- नित्य, नैमित्तिक, जप, होम, यज्ञक्रिया, उपाकर्म और उत्सर्ग मे ग्रहण का दोष नही होता। इस प्रकार नियतकाल मे उसका अभाव है। उपाकर्म मे वह दिन भिन्नपरक है। उसमे उसका निषेध है। जैसा कि पूर्व मे कहा जा चुका है।
धर्मसिन्धु: - रक्षाबन्धनमस्यामेव पूर्णिमायां भद्रारहितायां त्रिमूहूर्ताधिकोदयव्यापिन्
श्रावणशुक्ल पूर्णिमा को सूर्योदय से तीन मूहूर्त से अधिक व्याप्त तिथि मे भद्रारहित अपरान्ह या प्रदोषकाल मे रक्षाबन्धन करना चाहिए। यदि सूर्योदय से पूर्णिमा तिथि तीन मुहूर्त से कम है तो पूर्व दिन भद्रा समाप्ति के पश्चात् प्रदोष या रात्रिकाल मे भी रक्षा बन्धन करना चाहिए।-- धर्मसिन्धु।।
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इन बचनो के अनुसार--
इस वर्ष २०-८-१३ को व्रत की पूर्णिमा एवं रात्रि 8-29 भद्रा के उपरान्त रक्षाबंधन एवं ऋग्वेदीय,एवं तैत्तरीयभिन्न यजुर्वेदियों का उपाकर्म है।
दिनाँक 21-8-13 को प्रतिपदा व्यापिनी स्नान,दान की पूर्णिमा तीन मुहूर्त से कम होने से रक्षाबन्धन मे निषेध है।
इस दिन आपस्तम्बतैत्तरीयशाखा वालों का उपाकर्म है। (काशी विश्वनाथ, हृषीकेश पञ्चाङ्गानुसारम् )
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येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:।
तेन त्वाम् प्रतिबध्नामि रक्षे मा चल मा चल ।।
---------------- हर हर महादेव
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