अम्ब अवतार लो
वंदना उपासना में रत दास हूँ तुम्हारा
वीणापाणि भक्त की भी सुधि एक बार लो
मान धन वैभव भले मुझे न मिले किन्तु
प्रार्थना है ज्ञान की इसे तो स्वीकार लो
धर्मक्षेत्र में पतन देख है व्यथित मन
आसुरी प्रवृत्तियों से ठान आज रार लो
मै नहीं हूँ मात्र एक दीन पुकारे अनेक
अर्याभूमि शोधन को अम्ब अवतार लो
२
विश्व को समस्त ज्ञान मेरी मातृभू ने दिया
इतिहास में भरे प्रमाण हैं हज़ार लो
म्लेच्छ यवन मुग़ल लूटते रहे परन्तु
प्रतिरोध जो किया तो हो गया प्रहार लो
संस्कृति विनाश हेतु फिर से सचेष्ट हुए
द्रोही छली पापी हो रहा है अनाचार लो
दंड देने हेतु एकलव्य को न कोई द्रोण
आर्य धर्म रक्षणार्थ अम्ब अवतार लो
रचनाकार
डॉ आशुतोष वाजपेयी
कवि एवं ज्योतिषाचार्य
लखनऊ
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