Vedic Remedies in Jyotish
वैदिक ज्योतिष (Vedic Jyotish) के तीन खण्डो में से तृ्तीय खण्ड निराकरण ज्योतिष (Remedial Astrology) कहलाता है. ज्योतिष के द्वितीय खण्ड फलित ज्योतिष (Predictive Astrology) से हमें अपने भाग्य के बारे में जानकारी उपलब्ध हो जाती है, परन्तु ग्रहो के अशुभ प्रभाव को दूर करने का साधन निराकरण ज्योतिष के अन्तर्गत आता है. सबसे पहले साधारण ज्योतिषियो द्वारा बताये जाने वाले उपायो की जानकारी दी जायेगी.
1) रत्नो द्वारा उपाय (Remedy through Gemstones)
प्रत्येक ग्रह के रत्न व उपरत्न (Sub-gems) होते हैं. ज्योतिर्वेद प्रायः ग्रह को बल देने के लिये या ग्रह की अनुकूलता प्राप्त करने के लिए उस ग्रह से सम्बन्धित रत्न या उपरत्न को धारण किया जाता है. रत्न असली व उच्च गुणवत्ता के होने पर शुभ एंव उत्तम परिणाम देते हैं. परन्तु आज के युग उच्च कोटि का रत्न किसी बिरले भाग्यवान व्यक्ति को ही प्राप्त हो सकता है. शुद्ध रुप से व्यवसायिक दौर में असली वस्तु का मिलना बहुत ही दुर्लभ संयोग है. आज बाजार नकली (Imitational) वस्तुओ से भरा पडा है और आम आदमी उसे पहचान पाने में असमर्थ है. अतः वास्तविक जानकारी के अभाव में नकली वस्तु (रत्न) को व्यक्ति खरीदकर धारण कर लेता है, चूंकि रत्न नकली है तो वह अपना प्रभाव देने में असमर्थ है, इससे रत्न एंव ज्योतिष विद्या की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह लग जाता है. रत्न और उससे सम्बन्धित अन्य विधियाँ जैसे कि कलर थैरेपी, स्टाँन थैरेपी (Gemstone Therapy) इत्यादि प्रभावहीन हो जाता है. दूसरे मान लो यदि रत्न कहीं से असली भी प्राप्त हो जाता है तो उसका समय विंशोत्तरी महादशा या अन्तर्द्शा तक ही रहता है. आजकल कुछ ज्वैलर्स लैब टैस्टड रत्न उपलब्ध कराते हैं अतः रत्नो को खरीदते समय पूरी सावधानी बरतें तभी आप उनका लाभ उठा सकते हैं.
2) यन्त्रो द्वारा उपाय (Remedy Through Yantras)
किसी देवी/देवता के मन्त्र को कागज पर लिखना या किसी धातु जैसे कि चाँदि, ताम्बे इत्यादि पर खुदवाने पर जो अन्तिम प्राडक्ट बनता है उसे यन्त्र कहते हैं. यन्त्र को मन्त्र का स्वरुप या आकृति भी माना जाता है. अब इस यन्त्र को विशेष मुहुर्त में वैदिक मन्त्रो द्वारा प्राण प्रतिष्ठित किया जाता है. फिर इस यन्त्र के सम्मुख बैठकर यन्त्र से सम्बन्धित देवी/देवता का निश्चित संख्या में जप किया जाता है, जिससे कि वह यन्त्र सिद्ध हो जाता है. अब इस यन्त्र को पूजा घर में स्थापित किया जा सकता है तथा प्रतिदिन इसका धूप-दीप व अगरबत्ती से पूजन करने से यह लाभ देता है. छोटे सिद्ध यन्त्रो को आप गले में ताबीज के रुप में पहन सकते हैं या अपनी बाजू पर भी बाँध सकते हैं. यन्त्र का सम्बन्ध पूजा-पाठ (अध्यात्म) से होने पर व्यक्ति में शुद्ध भाव, विश्वास एंव निष्ठा का होना अति आवश्यक है, तभी ये फलदायी होते हैं. श्रद्धाहीन व्यक्ति के लिये ये यन्त्र प्रायः निष्प्रभावी होते हैं.
3) व्रत द्वारा उपाय (Remedy Through Vrata/Fasts)
भारत में प्राचीन काल से ही व्रत का महत्व रहा है. व्रत को सकाम या निष्काम दोनो ही प्रकार से किया जा सकता है. यहाँ हम सकाम व्रत का उल्लेख करेंगे. लडकियाँ विवाह करने के लिये तथा धन की प्राप्ति के लिये 16 या 21 सप्ताह का व्रत किया जाता है. विवाह के लिये बृहस्पति एंव लक्ष्मी प्राप्ति के लिये शुक्र का व्रत किया जाता है. यदि 16 सप्ताह तक व्रत रखते हैं तो 16वें और यदि 21 सप्ताह तक व्रत रखते हैं तो 21वें सप्ताह में उसका उद्यापन किया जाता है. प्रत्येक सप्ताह व्रत रखकर अगले दिन सूर्योदय से दो घंटे के भीतर उस व्रत का पारण किया जाता है. इस प्रकार पूरी शुद्धि के साथ श्रद्धा एंव भावनायुक्त व्रत रखने से मनोकामना (सीमा के अन्दर) पूर्ण होती है.
4) जप द्वारा उपाय (Remedy Through Japa/Recitation of Mantras)
ग्रहो को शान्त करने तथा उनकी कृपा प्राप्त करने के लिये ग्रह सम्बन्धित जप करने का विधान है. मन्त्रो को हम वैदिक, पौराणिक, लौकिक, तान्त्रिक एंव साबर (शाबर) मन्त्र शाखाओ में बाँट सकते हैं, मन्त्रो को जपने का अलग-अलग नियम, संख्या एंव विधान है. विशेष मन्त्रो को जपने के लिये विशेष माला प्रयुक्त होती है. जैसे कि वैष्णव मन्त्रो के लिये तुलसी माला, शिव मन्त्रो के लिये रुद्राक्ष की माला तथा लक्ष्मी जी के मन्त्रो के लिये कमलगट्टे की माला प्रयुक्त होती है. सकाम फल प्राप्त करने के लिये निश्चित दिनो के लिये निश्चित संख्या में मन्त्र विशेष का संकल्प लिया जाता है, तत्पश्चात शुचितापूर्ण होकर विधिवत उस मन्त्र का जप करने से तुरन्त फल की प्राप्ति होती है.
5) यज्ञ द्वारा उपाय (Remedy Through Yajna)
इच्छाओ की पुर्ती के लिये यज्ञ शास्त्रोक्त उपाय है. वेदो से ज्ञात होता है कि प्राचीन काल से ही यज्ञ का हमारे दैनिक जीवन में हमारे महत्वपूर्ण स्थान रहा है. सकाम यज्ञों में प्राचीन काल में राजसूर्य यज्ञ, अश्वमेघ यज्ञ, महामृत्युन्जय यज्ञ इत्यादि का विशेष रुप से उल्लेख रहा !
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