वेदों में विज्ञान !!! श्री सिद्धार्थ शर्मा , कटक
वेदों में विज्ञान !!!
वैदिक युग की महान भारतीय प्रतिभाओं ने हजारों
वर्षों पूर्व प्रकाश के वेग का आकलन कर लिया था .
ऋग्वेद के प्रथम मंडल के 50 वें सूक्त को पढ़ें --
योजनानां सहस्त्रं द्वे, द्वे शते , द्वे च योजने
एकेन निमिषार्द्धेन क्रममाण नमोsस्तुते l l
अर्थ - मैं उस प्रकाश शक्ति (सूर्य) को नमस्कार करता हूँ
जो आधे निमिष में 2202 योजन की दूरी तय करता है l
अब,
1 योजन = 4 कोश (या, क्रोश)
= 4 x 8000 गज (1कोश =8000 गज)
= 32000 x 0.9144 मीटर (1गज=0.9144मी.)
= 29260.8 मीटर
4404 योजन = 4404 x 29260.8 मीटर
= 128864563.2 मीटर
निमिष की परिभाषा श्रीमद्भागवत में इस प्रकार है --
1 अहोरात्र = 30 मूहूर्त
= 30 x 30 लघु (1 मुहूर्त = 30 लघु)
= 30x30x15 काष्ठ (1 लघु = 15 काष्ठ)
= 30x30x15x15 निमिष (1काष्ठ =15निमिष)
= 202500 निमिष
202500 निमिष = 1 अहोरात्र = 24 घंटे
= 24x60x60 सेकेण्ड
= 86400 सेकेण्ड
1 निमिष = 202500/86400 = 32/75 सेकेण्ड
प्रकाश का वेग = आधे निमिष में 2202 योजन
= एक निमिष में 4404 योजन
= 32/75सेकेण्ड में 128864563.2 मीटर
= 302026320 मीटर प्रति सेकेण्ड
= 302026.32 कि मी प्रति सेकेण्ड
= 3 लाख कि मी प्रति सेकेण्ड
आधुनिक वैज्ञानिकों द्वारा 1983 में प्रकाश के वेग को सही सही निर्धारित किया गया था और उसका मान है = 299792458 मीटर प्रति सेकेण्ड
यानि, 3 लाख कि मी प्रति सेकेण्ड
श्रम हो किसी का, श्रेय किसी को
युग युग से शोषण यह चलता है l
तिल तिल कर जलती बाती ही है
सब कहते देखो ! दीपक जलता है ll
आओ ! वेदों की ओर चलें !
-- सिद्धार्थ शर्मा , कटक
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