" सच्चे न्यायाधिश भगवान श्री शनिदेव " by Swami Mrigendra Saraswati
" सच्चे न्यायाधिश भगवान श्री शनिदेव "
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by Swami Mrigendra Saraswati on Monday, June 20, 2011 at 3:37pm ·
अपने समाज मेँ मान्यता है कि -
* राजा - सुर्यदेव ।
* मंत्री - बुधदेव ।
* सेनापति - मंगलदेव ।
* न्यायाधिश - शनिदेव ।
* प्रशासक - राहु और केतु ।
* अच्छे मार्गप्रदर्शक - बृहस्पति ( गुरु ) ।
* विर्य एवं बल - शुक्र ।
ये उस नियन्ता के व्यवस्था तंत्र हैँ ।
नारायण । यह भ्रान्ति सदा के लिय मन से निकाल देँ कि कोई ग्रह व्यक्ति रूप मेँ विद्यमान हैँ । सारे ग्रह ठोस पदार्थ हैँ और यह भी सत्य है कि इनके प्रभाव से आप बच नहीँ सकते । बचाने वाले कोई और है ।
खाशकर मैँ आप से यहाँ भगवान् श्री शनि देव जी की चर्चा करना चाहुँगा !
जब अपने समाज मेँ कोई व्यक्ति अपराध करता है , पाप करता है या धर्म विरूद्ध कोई भी कार्य को करके धर्म को खण्डित करता है तो न्यायाधिश शनि देव के आदेश के तहत राहु और केतु उसे दण्ड देने के लिये सक्रिय हो जाते हैँ । न्यायाधिश भगवान् श्री शनि देव के अदालत मेँ दण्ड पहले दिया जाता है , और बाद मेँ अभियोग इसलिये चलता है कि आगे अभियुक्त के चाल - चलन ठीक रहे तो दण्ड की अवधि बीतने के बाद उसे फिर से खुशहाल कर दिया जाये या नहीँ ।
यदि चाल - चलन ठीक नहीँ रहते हैँ तो राहु और केतु को उस अपराध करने वाले व्यक्ति के पीछे न्यायाधिश श्री शनि देव द्वारा लगा दिया जाता है । राहु सदा सिर मेँ मार करता है और केतु उस अपराधी व्यक्ति के पैरोँ को तोडने प्रयास करता है । यदि इन दोनोँ से अपराधी बचता रहा तो , अदातल ( कोर्ट - कचहरी ) जेल , या फिर अस्पताल मेँ से किसी एक के या सभी के चक्कर जरुर काटने पडते हैँ ।
शनि अर्थात् न्यायाधिश के फरमान को उलटने का कार्य कोई भी ग्रह या कर्मकाण्ड नहीँ कर सकता । जब एक बार भगवान शनि देव के कोर्ट मेँ एफ ,आई , आर दर्ज हो गई तो फिर कुछ नहीँ हो सकता । कहते हैँ कि मंगल के उपाय करने से तो शनिदेव शान्त हो जायेँगे तो यह मन को समझाने वाली बात मानी गई है । राजा सुर्यदेव भी अपने पुत्र शनिदेव के कार्य मेँ दखल नहीँ देते ।
शनि या फिर राजा के पास सच्चे मन से रहम लगाई जाय तो कुछ हो सकता है । वे अपराधि के सच्चे मन को जानते हैँ । किसी भी शनि मंदीर मेँ या ज्योर्तिविदोँ के यहाँ चक्कर लगाने से कुछ नहीँ होगा ।
शनि देव को जुआ - सट्टा खेलना , शराब पीना , ब्याजखोरी करना , पर स्त्रीगमन करना . अप्राकृतिक रूप से मैथुन करना , झुठी गबाही देना , निर्दोष लोगोँ को सताना , चाचा - चाची , माता - पिता , गुरुजन का अपमान करना , ईश्वर के खिलाफ होना , अपने दाँतोँ को गन्दा रखना , साँप , कुत्ते और कौवोँ ( काक ) को सताना ।
नारायण । शनिदेव जी के मंदिर मेँ जाने के पूर्व उक्त बातोँ पर प्रतिबंध लगाये तो शनिदेव जी का कोप भाजन न बनना पड़ेगा ।
श्री नारायण हरिः ।
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