भाग्योदय वर्ष : Fortunate years :
मेरे अपने अध्ययन
काल में इस विषय पर मेरी दृष्टी कई बार टिकी ! कई विशिस्ट पुस्तकों में इसका
उल्लेख मिला ! अस्तु अपने डायरी में इसको नोट कर लिया ! संयोग वश कुछ घटनाएँ ऐसी
घटी कि उन पर ज्योतिष के आधार पर विचार मंथन किया और अनुभवी मित्रों से चर्चा भी
की और अपने को संतुस्ट पाया ! कुछ समय उपरांत जब इस विषय भाग्योदय वर्ष के
अनुसार उन घटनाओं का अध्ययन किया तो भी वह इतनी सटीक बैठीं की आश्चर्य चकित हो
गया की कैसे इस नियम की इतनी सार्थकता सिद्ध हुई वह भी इतने सरल और सटीक !
It became so simple to me to apply this dictum of भाग्योदय वर्ष and
find pin pointed result without any lengthy and cumbersome process.
भाग्योदय वर्ष के प्रयोग से फल कथन में सटीक प्रामाणिकता मिली और इतने सरलतम तरीके
से बगैर किसी लंबी गणित प्रक्रिया के !
अतः जितने भी पुस्तकों में इसका उल्लेख मुझे मिला मै आप सभी महानुभावों
के सम्मुख एक स्थान पर प्रस्तुत कर रहा हूँ ! और अंत में कुछ घटनाओं जिन पर इसके
प्रयोग से मुझे घटनाओं की सत्यता मिली उनको भी संछेप में आपके सम्मुख प्रस्तुत कर
रहा हूँ आप सभी विद्या वृद्ध महानुभावों से अपेक्षा करता हूँ की अपनी विवेचना से
अवगत कराएँगे !
Before I proceed with the context, I would like to mention what Sri
Surya Narayan Rao ji in his commentary on Brihat Jatak, at one place that ….”
All these powers are called Nisargika and have permanent influences while all
other sources of power must be superseded or modified by these permanent
powers”. He further explains at another
point “ If at any period of life the
Nisargika dasha and the dasha of the same planet as described in ayurdaya bhag
run together much good will result.
This statement of Shri Surya
Narayan Rao ji carries weight and gives insight to understand the basics of astrology and needs to be
applied as a rule.
फलित
मार्तंड : ग्रन्थ कार : पंडित मुकुंद वल्लभ मिस्र : प्रकाशक : मोती लाल बनारसी
दास :
भाग्योदय काल पृष्ठ संख्या 173
श्लोक 10 :
द्वाविंशे रविणा च
वर्ष कथितं चन्द्रे चतुर्विन्शती ह्राष्टाविंशति भूमि नंदनमतं दंतैर्बुधं च स्मृतम !
जीवे षोडशः पञ्च विंशति भृगौ षटत्रिंश सौरिर्वदेत कर्मेशात खलु कर्म चैव कथितं
लग्नाधिपैरवा स्मृतम !
भाग्योदय वर्ष : द्वाविंश २२ सूर्य, चतुर्विन्शती २४ चन्द्र, अष्टाविंशती २८ मंगल, दंतै ३२ बुध,
जीवे १६ गुरु, पञ्च
विंशति २५ शुक्र, षटत्रिंश ३६ शनि
!
Lagna Chandra Prakash : Author : Shri Chandra Dutt Pant : Publisher : Moti Lal Banarsi Dass
Heading : Results as per Varah Mihir Samhita : Specific results of Planets : Page 130 : Fructification years :
भाग्योदय /
विशेशोंनती वर्ष !
When the said planets are placed in 10th house in natal
chart the following years are the fructification periods. Author further quotes that 6th
house makes the man to do things forcibly although against his wishes or
likings.
Sun : 22 and 70 years
Moon : 24 and 43 years
Mars : 28 and 58 years
Mercury : 12 and 32 and 42 years
Jupiter : 16 and 34 and 50 years.
Venus : 25 and 32 years.
Saturn : 36 and 42 and 72
and 83 years.
Rahu / ketu : 42 year
ज्योतिष सर्वस्व : Dr. सुरेश चंद्र मिस्र
: प्रकाशक : रंजन पुब्लिकेशन !
सभी कारक ग्रह अपने से सम्बंधित समस्त या कुछ शुभफल यथा अवसर इन
वर्षों में या इसके उपरान्त देते हैं !
Sun : 22 years
Moon : के विषय में नहीं लिखा है
Mars : 28 years
Mercury : 32
years
Jupiter : 16 years
Venus : 25 years
Saturn : 36 years
Rahu / ketu : 42
years
ज्योतिष विश्व कोष : पंडित हरी दत्त शर्मा : प्रकाशक : सुबोध
प्रकाशन दिल्ली !
Sun : 22 years
Moon : 25 years
Mars : 28 years
Mercury : 32
years
Jupiter : 16 years
Venus : 25 years
Saturn : 36 years
Rahu : 48 years
Ketu : x
x x
ज्योतिष रहस्य भाग एक : श्री जगमोहन दास गुप्त ( पंचांग कर्ता ) :
प्रकाशक : मोती लाल बनारसी दास !
भाग्योदय वर्ष पृष्ठ 25 !
Sun : 22 years
Moon : 24 years
Mars : 28 years
Mercury : 32
years
Jupiter : 16 years
Venus : 25 years
Saturn : 36 years
Rahu : 42
years
Ketu : 48
years
ज्योतिष रत्नाकर : ग्रन्थ कर्ता : श्री देवकी नंदन सिंह : अद्ध्याय 10 : भाग्य कर्ता ग्रह : विषय संख्या १७३१७३ उप
संख्या 7 !
Sun : 22 years
Moon : 24 years
Mars : 28 years
Mercury : 32
years
Jupiter : 16 years
Venus : 25 years
बृहत् पराशर होरा सार : भाष्य कार : श्री आर. संथानम : प्रकाशक
: रंजन पुब्लिकेशन !
अद्ध्याय : 17 : श्लोक 23 से 26 : भाग्य हीन वर्ष :
ग्रहों कि अवस्थिति से विशिष्ट वर्षों में कष्ट का समय :
अद्ध्याय : 18 : श्लोक 22 से 41 : भाग्योदय वर्ष : ग्रहों कि अवस्थिति से विशिष्ट वर्षों में
विवाह का समय :
अद्ध्याय : 20 : श्लोक 10 : भाग्योदय वर्ष : ग्रहों कि
अवस्थिति से विशिष्ट वर्षों में भाग्योदय वर्ष :
अद्ध्याय : 20 : श्लोक 10 : भाग्योदय वर्ष : ग्रहों कि
अवस्थिति से विशिष्ट वर्षों में भाग्योदय वर्ष :
अद्ध्याय : 20 : श्लोक 27,28,29 : भाग्योदय वर्ष : नवमेश कि अवस्थिति से विशिष्ट वर्षों में भाग्योदय
वर्ष :
अद्ध्याय : 22 : श्लोक 4 & 8 : भाग्योदय वर्ष : ग्रहों कि
अवस्थिति से विशिष्ट वर्षों में भाग्योदय वर्ष :
श्री संथानम जी ने अपनी प्रस्त्वना में उल्लेख
किया है कि श्री सीता राम झा की बृहत् पराशर होरा सार हिंदी टीका (वाराणसी से
प्रकाशित) अत्यधिक उपयुक्त है ! पाठकगण से निवेदन है कि पुस्तक से ही अध्ययन करें
!
Shri CS Patel ji in his book
titled Ashtak varga (publisher Sagar Publications) quotes the verse of Jatak
Parijat in Chap X-
V-64 and explains as under :
“ If the number of bindus
(SAV) in each of the house beginning with the fourth house and ending with the
9th (ie including all the six houses) is between 25 to 30, the
person will be born rich and will be very very rich after completing 28 years
of age. “
Shri CS Patel ji further
states that under the above said conditions only this yoga becomes a rarity.
मनीषियों के उपरोक्त सभी विचारों से मै यह समझ
सका की कथित ग्रह कथित वर्षों में निश्चित अपना प्रभाव देते है ! यह भी ध्यातव्य
है की कथित निर्देशों में मनीषियों ने ग्रहों की विशेष स्थिति का भी उल्लेख किया
है जिसे संज्ञान में रखना होगा ! उदाहरण के तौर पर कथित ग्रह यदि कर्मेश या नवमेश
या द्वीतियेश तो अमुक वर्षों भाग्योदय देता है !
वृहत पराशर होरा सार ( भाष्यकार श्री आर संथानम
जी ) के ऊपर दिए गए विषय सूची को आप पुस्तक से अध्ययन करेंगे तो आप पाएंगे कि
ग्रहों की विशेष स्थिति से कथित ग्रह कथित वर्षों में निश्चित अपना प्रभाव देते है
!
संदर्भित विषय पर
श्री सूर्य नारायण राव जी का विश्लेषण जो ऊपर quote किया है अत्यंत महत्व का है और इसे यथा स्थान यथा संभव प्रयोग में लाने
से फल कथन में अधिक परिपक्वता मिलेगी यह मेरा विचार है !
प्रस्तुत कर्ता
भोला नाथ शुक्ल (मित्र)
Sir ji iss article mein बृहत् पराशर होरा सार : भाष्य कार : श्री आर. संथानम : प्रकाशक : रंजन पुब्लिकेशन ! ki table complete nahi hein. If possible kindly share the missing information for learining purpose. Very deep and thought provoking article written by you sir ji.
ReplyDelete