Bhola Nath Shukla
सुदर्शन चक्र :
जन्म लग्न, चन्द्र लग्न और सूर्य लग्न को एक साथ चक्राकार व्यवस्थित करने के कारण इसके स्वरुप कि कल्पना या नाम करण विष्णु जी के सुस्दर्शन चक्र से कि गयी प्रतीत होती है.
इसका एक लाभ यह होता है कि तीनो प्रकार से प्रत्येक (बारह) भाव का आंकलन सहज हों जाता है. प्रत्येक भाव में व्यवस्थित / आश्रित ग्रह या ग्रह कि दृष्टियां का बोध सरलता से होता है. इससे प्रत्येक भाव कि पुष्टि या त्रुटी का भान मिलता है. आप वर्गोत्तम लग्न से परिचित है इसे उत्तम श्रेणी में रखा जाता है. इसके कारण को आप विचारे ! उसी प्रकार उदित लग्न (तीनों) का आपसी सम्बन्ध आप विचार करले तो लग्न सम्बन्धी तथ्य स्पस्ट होंगे. इस प्रकार से यदि आप प्रत्येक भाव का आंकलन कर लेंगे तो प्रत्येक भाव समन्धि ग्रंथि खुलेगी.
ज्योतिष के नियम जब भी लिखे या कहे होंगे उस समय में परिभाषित अर्थ में आमूल चूल परिवर्तन आया है. लाभ-हानि, गुण- अवगुण, कर्म-अकर्म के अर्थ बदल गए है. सहन शक्ति में कमी आई है. या कहे प्रवृति में परिवर्तन हुआ है. देश काल परिस्थित में परिवर्तन हुआ है . इसका संज्ञान आज कि स्थिति में करना आवश्यक हों गया है. ग्रहों के कारकत्व भी आप विचार कर ले और देश काल परिस्थित वश आवश्यक परिवर्तन करना उचित लगता है . इसका अनुमान अवश्य कर ले बाकी गणना के लिए ज्योतिषीय नियम जो लिखे कहे गए है उनका ही उपयोग होता है सुदर्शन चक्र के माध्यम से होता है.
एक विद्ववान ज्योतिषी जो संस्कृत आचार्य भी है ( श्री राधे श्याम शास्त्री, लखनउ ) ने अपने उदबोधन में जो कहा उसका सार लिखता हूँ :
१. जातक के व्यक्तित्व के विश्लेषण के लिए सुदर्शन पद्धति का सिद्धांत है.
२. जन्म लग्न से सम्पूर्ण शरीर एवं उसके अंग प्रत्यंग का विवेचन करें.
३. चन्द्र लग्न से जातक के मानसिक शरीर एवं उसके भौतिक व मानसिक जीवन के बारे जातक का वास्तविक दृष्टि कोण एवं जीवन के लक्ष्य का भान होता है.
४. सूर्य लग्न से जातक के अध्यात्मिक स्वरूप एवं जीव के वास्तविक ( शुद्ध-अशुद्ध ) स्वरूप एवं जीवन के लक्ष्य व वातावरण परिवेश एवं मुक्ति आदि का ज्ञान होता है.
अपनी छमता भर आपके समक्ष यह प्रस्तुत किया. इससे अधिक के लिए किसी महापुरुष ज्ञानी का साथ करना होगा.
एक प्रश्न आप मित्रों के लिए कहता हूँ विचार करें उसके विचार करने से आपको सुदर्शन पद्धति को उपयोग में लाने में सहायता मिलेगी :
प्रश्न : क्या लग्नेश कभी त्रित्येश का नैसर्गिक मित्र हों सकता है ?
मेरे विचार से नहीं ! तो भ्रात्र प्रेम का आंकलन कैसे करे ?
प्रश्न : क्या लग्नेश कभी तृतीयेश का नैसर्गिक मित्र हों सकता है ?
1 मेष लग्न : लग्नेश मंगल तृतीयेश बुध ( मंगल का बुध सम , बुध का मंगल शत्रु)
2 वृष लग्न : लग्नेश शुक्र तृतीयेश चन्द्र (शुक्र का चन्द्र शत्रु , चन्द्र का शुक्र सम )
3 मिथुन लग्न : लग्नेश बुध तृतीयेश सूर्य (बुध का सूर्य मित्र , सूर्य का बुध सम )
4 कर्क लग्न : लग्नेश चन्द्र तृतीयेश बुध (बुध का चन्द्र शत्रु , चन्द्र का बुध मित्र )
5 सिंह लग्न : लग्नेश सूर्य तृतीयेश शुक्र (सूर्य का शुक्र शत्रु , शुक्र का सूर्य शत्रु )
6 कन्या लग्न : लग्नेश बुध तृतीयेश मंगल (बुध का मंगल सम , मंगल का बुध शत्रु )
7 तुला लग्न : लग्नेश शुक्र तृतीयेश गुरु (शुक्र का गुरु सम गुरु का शुक्र शत्रु )
8 वृश्चिक लग्न : लग्नेश मंगल तृतीयेश शनि (मंगल का शनि सम , शनि का मंगल शत्रु )
9 धनु लग्न : लग्नेश गुरु तृतीयेश शनि (गुरु का शनि शत्रु , शनि का गुरु सम )
10 मकर लग्न : लग्नेश शनि तृतीयेश गुरु (शनि का गुरु शत्रु, गुरु का शनि सम )
11 कुंभ लग्न : लग्नेश शनि तृतीयेश मंगल (शनि का मंगल शत्रु , मंगल का शनि सम )
12 मीन लग्न : लग्नेश गुरु तृतीयेश शुक्र (गुरु का शुक्र शत्रु , शुक्र का गुरु सम )
उपरोक्त तालिका से आप पाएंगे लग्नेश और तृतीयेश परस्पर नैसर्गिक मित्र नहीं है.
अतः पंचधा मैत्री के माध्यम से मित्रता शत्रुता आदि देखने होगे.
सम्बन्ध कि पुष्टता करने के लिए आपसी भाव गत सम्बन्ध भी देखने होगे.
इस प्रकार प्रत्येक भाव का तीनो जन्म लग्न, चन्द्र लग्न और सूर्य लग्न से सम्बन्ध कि पुष्टता और भाव कि पुष्टता का निर्णय करने में सुदर्शन चक्र महत्व पूर्ण होता है.
आप भी विचारें हम भी विचारते है फिर विचारों का आदान प्रदान होगा :
आपका मित्र भोला नाथ शुक्ल .
(excuse if any typing mistake)
Bhasker ji from Mumbai quotes : the Surya Lagna is taken for considerations at a mature age of the Individual.
The Moon Lagna for the mental Faculties and thought process. The Natal Lagna for the Physical Body (Tree) and its Cheshtas (Karmas)
If one has a Bad , Cruel or Magging Wife, then just check the 7th house from all the 3 Kundlis, and one will find in most cases all the 3 Kundlis showing an afflcited 7th house. Same for other departments of Life. One can pin point the areas of trouble, weakness and power, through the Sudarshan Chakra which provides these inputs at a glance.
Pankaj Bansal Delhi quotes : issi tarah lagnesh or panchmesh kabhi nesargic shatru nahi ho sakte or lagnesh or saptmesh kabhi naesargic mitra nahi ho sakte
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