तुम कहो क्या प्रीति से भी ऊबता है मन कभी ?
प्रीति है उन्मुक्त खग जो, तोडता बंधन सभी|
प्रीति होती वासना जो, तुष्ट होती एक घड़ी|
जो क्षुधा होती कदाचित तृप्त हो जाती कभी|
प्रीति स्वाती बूँद,चातक मन पिपासित आमरण|
प्रीति उर्वर रेणुका, अभिकाम जीवन अंकुरण |
प्रीति लक्षित भाव, मुक्ति मार्ग ,और है कर्म-फल |
प्रीति दिनकर की चमक सी,खिल उठा जीवन-कमल|
प्रीति इच्छित पाश,संग ही प्राण-लब्धित हूक सी|
प्रीति ज्यों अवदाध जीवन,में प्रणय की कूक सी|
प्रीति अम्बर सी अपरिमित,वृत्ति भावातीत सी |
प्रीति सागर सी असीमित,थाह शब्दातीत सी |
प्रीति है रससिक्त कोमल, भावपूरित गीत सी|
वीथिका अत्यय जगत की,मुक्त सी,निर्भीत सी|
प्रीति मुक्तामणि सुसंचित, शुक्तिता अंतस बना |
मुक्त प्रीति मोक्ष कामी, तज जगत अवलम्बना |
अंशु रत्नेश त्रिपाठी रीवा
No comments:
Post a Comment