गणतंत्र वृक्ष की छाया ..
हम मानवता अभिलाषी, आगे ही चलते जायें|
जन गण-मन अभिलाषा के,सब प्रश्न सुलझते जायें||
पर्वत,पठार क्या घाटी, हमने हर विपदा काटी,
सबको निज कंठ लगाती,यह कर्म-योग की माटी||
कुल दीन-दुखी ममता के, आँगन में पलते जायें |
जन गण-मन अभिलाषा के,सब प्रश्न सुलझते जायें||
कविता शुचि सत्य सुनाती,संरचना सदा सुहाती,
अनुराग,अहिंसा,करुणा,परमार्थ हमारी थाती |
सद्भावों के संबल से, छल छद्म कुचलते जायें|
जन गण-मन अभिलाषा के,सब प्रश्न सुलझते जायें||
हमने युगबोध कराया,जो जिया,किया,वह गाया,
गणतंत्र वृक्ष की सबको,नित सुलभ रहे शुभ छाया|
हम शील, विनय गुण वाले, मूल्यों से फलते जायें |
जन गण-मन अभिलाषा के,सब प्रश्न सुलझते जायें||
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