Thursday, December 1, 2011

काल गड़ना ( श्री सिद्धार्थ शर्मा, कटक )

श्री वेद व्यास जी द्वारा रचित श्री मदभागवत कथा को केवल

श्री कृष्ण लीला के रूप में प्रचारित किया जाता है । पर इसमें

विज्ञान भी है जिसको या तो समझा नहीं गया है या उसकी

अनदेखी की गई है ।

भागवत में समय गणना के लिए जितनी सूक्ष्म ईकाइयों का

वर्णन है उसे देख कर आज के वैज्ञानिक भी दांतों तले अंगुली

दबाये बिना नहीं रह पाएंगे । उस काल में आज से लगभग तीन

हज़ार वर्ष पहले (आज के इतिहासकारों द्वारा अनुमानित) हमारे

ज्योतिर्विज्ञानियों द्वारा समय को मापने के लिए व्यवहृत प्रणाली

बहुत ही उन्नत थी ।

भागवत के अनुसार समय की सूक्षतम इकाई " परमाणुसमय " है ।

1 परमाणु समय = सूर्यकिरणों को एक परमाणु को पार करने में लगाने वाला समय

2 परमाणु समय = 1 अणु समय

3 अणु समय = 1 त्रसरेणु

3 त्रस रेणु = 1 त्रुटि

100 त्रुटि = 1 वेध

3 वेध = 1 लव

3 लव = 1 निमेष

3 निमेष = 1 क्षण

5 क्षण = 1 काष्ठा

15 काष्ठा = 2 लघु

15 लघु = 1 नाडिका

2 नाडिका = 1 मुहूर्त

30 मुहूर्त = 1 प्रहर

8 प्रहर = 1 दिन(एक सूर्योदय से परवर्ती सूर्योदय तक का समय)


यदि हम वैदिक दिन और ग्रेगेरियन (अंग्रेजी) दिन की तुलना करें तो :-

वैदिक दिन :

1 दिन = 8 प्रहर

= 240 मुहूर्त

= 480 नाडिका

= 7,200 लघु

= 54,000 काष्ठा

= 2,70,000 क्षण

= 8,10,000 निमेष

= 24,30,000 लव

= 72,90,000 वेध

= 72,90,00,000 त्रुटि

= 2,18,70,00,000 त्रसरेणु

= 6,56,10,00,000 अणु समय

= 13,12,20,00,000 परमाणु समय

उसी प्रकार स्थूल काल गणना भी बहुत उन्नत है ।

पाश्चात्य दिन :

1 दिन = 24 घंटे
= 1440 मिनट
= 86400 सेकेंड

इसके बाद माइक्रो ....आदि उपसर्गों का प्रयोग करके काम चलाया जाता है ।

आओ !

हम अपने आप को फिर से जानें !!

अपनी संस्कृति पहचाने !!!

अपने ज्ञान को फिर से जागृत करें !!!!

हम क्या थे ? हम क्या हैं ? हमें क्या होना है ?


सिद्धार्थ शर्मा, कटक

30 नवंबर, 2011

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