Friday, November 16, 2018

Pushkar Navamsh. Courtesy Vedic Vision. Thaks Ojha ji

#PUSHKAR NAVAMSA

«» What is the Result & Benefit of Pushkar Navmansha?

 ★ Pushkar is holy place for us Hindus in AJMER district It's one of the only  dedicated Brahma Ji temple In this universe. Now what link of pushkar with this pushkar navamsa. Remember all Hindu scripture are written by sages who lived in holy places for e.g  pushkar itself. They got Inspiration from places they stayed. Chief Priest of Pushkar temple can only be someone from PARASHARA Gotra. Reader can now understand link to Jyotish here.

● What does lord Brahma stand for ?

√ Lord Brahma is creative force of this universe. We humans are children's of lord Brahma. He ride on swan which have magical abilities to distinguish water and milk. Brahma stand for growth, equality, creativity. He give boon even to Asuras.

※WHAT TO READ PUSHKAR NAVAMSA AS ?

★ My point is simple pushkar is highest auspicious and spiritual place on this world so is pushkar navamsa in each sign and pushkar bhagya degrees in all of degree points. The name it self given by sage to these navamsa speak in volume about their auspicious nature. Pushakar Navamsa highly creative zone of our chart and blessing of past birth and suppose to give good result regarding karak tatwa they stand for.

※  HOW TO CALCULATE ?

★ If u read my post on navamsa simple method calculation via pada of nakshatra u will know that total 27 nakshatra multiply by 4 pada of each nakshatra takes total 108 navamsa comes and 2 navamsa in each sign are of natural benefic and given status of pushkar navamsa so total of 24 navamsa are pushkar navamsa.

1. FIRE SIGNS ~ 7TH AMSA (20' TO 23') &                           9TH AMSA (26.40' TO 30 ')       

2. EARTH SIGNS ~  3RD AMSA (6'40 TO 10') & 5TH AMSA (13'20 TO 16'40')

3. AIR SIGNS ~ 6TH AMSA (16'40 TO 20') & 8TH AMSA (23'20 TO 26'40)

4. WATER SIGNS ~ 1ST AMSA (00 TO 3'20) & (6'40 TO 10 DEGREE)   

<> BESIDES PUSHKAR AMSA THERE IS ALSO CONCEPT OF PUSHKRA BHAGYA DEGREE

A.. FIRE SIGN ~ 21' DEGREE

B. EARTH SIGN ~ 14'DEGREE

C. AIR SIGN ~ 24'DEGREE

D. WATER SIGN ~ 7' DEGREE

* Pushakar Bhagya degree planet too act like Amsa as creative and auspicious

◎ interestingly pushkar navamsa are for beneficial planet Jupiter and Venus have a 9 each and moon - mercury have 3 each pushkar navamsa.  No pushkar navamsa fall in sign of sun,mars and Saturn who are hard planets.

★ Now about this, post planet in this navamsa are said to be purva punya, auspicious In nature and spiritual planet in their results. According to karaktatwa they will give auspicious result. Quality of planet is enhanced in pushkar navamsa.

★ Like if Venus fall in pushkar navamsa then native will be highly beautiful, artist talent, sweet voice, will get material comfort.

★ jupiter in pushkar navamsa give very beneficial life, children, knowledge, dignity, reputation, respect etc same way we can calculate for each one planet according to karaktatwa then mix this with house it's in.

★ It's important that planet in pushkar occupy Kendra /trikona of chart so material and respect come to native.

★ If they are in 6/8/12 then good result may get diminished

★pushkar planet directly aspects any other planet also feel relieve and give good results

★ many planet in pushkar show past good karma

★ before declaring result take note of lordship of planet in chart and its location, a inimical planet may not give very auspicious result not a friendly planet to lagna, in Kendra or trine in pushkar can give super results

★ alone pushkar navamsa  isn't enough and proper rajyoga be present in chart for Rajyoga effect, pushkar is parameter to test auspicious ness of chart

● When we get result from pushkar?

«» Naturally in their activation In transits, Dasha as well as some effect are felt if they are NAKSHATRA  depositor of planets and in their major or sub period we feel auspicious results

«» planet aspected by navamsa also give good result in its dasha

● BESIDES HOROSCOPE Pushkar navamsa is widely used in. Electoral Astrology (mahurat)

●  work undertaken when pushkar navamsa is active give long fruitful success

● marriage ceremony under pushkar navamsa are said to be good mahurat

● Any type of work from medicinal, spiritual initiation, new works as per NAKSHATRA quality can be undertaken in pushkar navamsa

THANK YOU FOR PATIENCE READING

SATYA OJHA

Tuesday, November 13, 2018

Vastu : Courtesy Sh. mahendra jain.

जानिए की किस मन्त्र के जाप से किस दिशा का होगा वास्तु दोष( प्रभाव )दूर :-
                             
आज में आपको सभी दिशाओं के दोष को दूर करने का सबसे आसान तरीका बता रहा हूँ।। इन मंत्र जप के प्रभाव स्वरूप (फलस्वरूप) आप काफी हद तक अपने वस्तुदोषो से मुक्ति प्राप्त कर पायेंगें ।। ऐसा मेरा विश्वास हें।।
ध्यान रखें मन्त्र जाप में में आस्था और विश्वास अति आवश्य हैं। यदि आप सम्पूर्ण भक्ति भाव और एकाग्रचित्त होकर इन मंत्रो को जपेंगें तो निश्चित ही लाभ होगा।।

देश- काल और मन्त्र सधाक की साधना(इच्छा शक्ति) अनुसार परिणाम भिन्न भिन्न हो सकते हैं।।
तर्क कुतर्क वाले इनसे दूर रहें।। इनके प्रभाव को नगण्य मानें।।

ईशान दिशा

इस दिशा के स्वामी बृहस्पति हैं। और देवता हैं भगवान शिव। इस दिशा के अशुभ प्रभाव को दूर करने के लिए नियमित गुरू मंत्र ‘ओम बृं बृहस्पतये नमः’ मंत्र का जप करें। शिव पंचाक्षरी मंत्र ओम नमः शिवाय का 108 बार जप करना भी लाभप्रद होता है।

पूर्व दिशा

घर का पूर्व दिशा वास्तु दोष से पीड़ित है तो इसे दोष मुक्त करने के लिए प्रतिदिन सूर्य मंत्र ‘ओम ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः’ का जप करें। सूर्य इस दिशा के स्वामी हैं। इस मंत्र के जप से सूर्य के शुभ प्रभावों में वृद्घि होती है। व्यक्ति मान-सम्मान एवं यश प्राप्त करता है। इन्द्र पूर्व दिशा के देवता हैं। प्रतिदिन 108 बार इंद्र मंत्र ‘ओम इन्द्राय नमः’ का जप करना भी इस दिशा के दोष को दूर कर देता है।।

आग्नेय दिशा

इस दिशा के स्वामी ग्रह शुक्र और देवता अग्नि हैं। इस दिशा में वास्तु दोष होने पर शुक्र अथवा अग्नि के मंत्र का जप लाभप्रद होता है। शुक्र का मंत्र है ‘ओम शुं शुक्राय नमः’। अग्नि का मंत्र है ‘ओम अग्नेय नमः’। इस दिशा को दोष से मुक्त रखने के लिए इस दिशा में पानी का टैंक, नल, शौचालय अथवा अध्ययन कक्ष नहीं होना चाहिए।

दक्षिण दिशा

इस दिशा के स्वामी ग्रह मंगल और देवता यम हैं। दक्षिण दिशा से वास्तु दोष दूर करने के लिए नियमित ‘ओम अं अंगारकाय नमः’ मंत्र का 108 बार जप करना चाहिए। यह मंत्र मंगल के कुप्रभाव को भी दूर कर देता है। ‘ओम यमाय नमः’ मंत्र से भी इस दिशा का दोष समाप्त हो जाता है।

 नैऋत्य दिशा

इस दिशा के स्वामी राहु ग्रह हैं। घर में यह दिशा दोषपूर्ण हो और कुण्डली में राहु अशुभ बैठा हो तो राहु की दशा व्यक्ति के लिए काफी कष्टकारी हो जाती है। इस दोष को दूर करने के लिए राहु मंत्र ‘ओम रां राहवे नमः’ मंत्र का जप करें। इससे वास्तु दोष एवं राहु का उपचार भी उपचार हो जाता है।

पश्चिम दिशा

यह शनि की दिशा है। इस दिशा के देवता वरूण देव हैं। इस दिशा में किचन कभी भी नहीं बनाना चाहिए। इस दिशा में वास्तु दोष होने पर शनि मंत्र ‘ओम शं शनैश्चराय नमः’ का नियमित जप करें। यह मंत्र शनि के कुप्रभाव को भी दूर कर देता है।

वायव्य दिशा

चन्द्रा इस दिशा के स्वामी ग्रह हैं। यह दिशा दोषपूर्ण होने पर मन चंचल रहता है। घर में रहने वाले लोग सर्दी जुकाम एवं छाती से संबंधित रोग से परेशान होते हैं। इस दिशा के दोष को दूर करने के लिए चन्द्र मंत्र ‘ओम चन्द्रमसे नमः’ का जप लाभकारी होता है।

उत्तर दिशा

यह दिशा के देवता धन के स्वामी कुबेर हैं। यह दिशा बुध ग्रह के प्रभाव में आता है। इस दिशा के दूषित होने पर माता एवं घर में रहने वाले स्त्रियों को कष्ट होता है।। माता एवं घर में रहने वाले स्त्रियों को कष्ट होता है। आर्थिक कठिनाईयों का भी सामना करना होता है। इस दिशा को वास्तु दोष से मुक्त करने के लिए ‘ओम बुधाय नमः या ‘ओम कुबेराय नमः’ मंत्र का जप करें। आर्थिक समस्याओं में कुबेर मंत्र का जप अधिक लाभकारी होता है।

महेन्द्र जैन

प्रश्न कुंडली पर एक सार्थक लेख श्री सतीश शर्मा जयपुर की कलम से ।। साभार

प्रश्न शास्त्र Pt Satish Sharma

ज्योतिष कालखण्ड पर एक निर्णय है। वह कालखण्ड आधान लग्न भी हो सकता है और जन्म लग्न भी हो सकता है। जीवन की कुछ महत्त्वपूर्ण घटनाओं के समय बनी हुई लग्न भी घटनाओं के विश्लेषण के लिए काम में ली जाती है। उदाहरण के लिए स्त्रियों का रजोदर्शन लग्न।
पहले प्रश्न का बहुत अधिक उपयोग होता था और यात्रा में व मुहूत्र्त में युद्ध पर जाने के समय या किसी भी महत्त्वपूर्ण कार्य में मुहूत्र्त शास्त्र की मदद ली जाती थी। मुहूत्र्त लग्न चूंकि कालखण्ड पर एक निर्णय है इसलिए अन्य महत्त्वपूर्ण घटनाओं की तरह मुहूत्र्त लग्न से उस घटना का भविष्य जाना जा सकता है। प्राचीन काल में राजा लोग युद्ध पर निकलते समय अपने साथ विद्वान ज्योतिषियों को भी यात्रा पर्यन्त साथ रखते थे। वे लोग मुहूत्र्त की दशा, स्वप्र और शकुन की भी मदद इस कार्य में लिया करते थे।
मुहूत्र्त शास्त्र और प्रश्न शास्त्र के तर्क तो समान है परन्तु फलाफल में थोड़ा बहुत अन्तर रहता है। प्रस्तुत लेख में प्रश्नशास्त्र को लेकर शास्त्रों में कही गई कुछ बातों पर विचार किया गया है। निकट भविष्य में होने वाली घटनाओं के लिए, यात्रा के लिए, चोरी के प्रश्न, जय-विजय के प्रश्न, सफलता-असफलता के प्रश्न, प्रश्रशास्त्र के माध्यम से सफल रहते हैं। अगर प्रश्न शास्त्र पर किसी विद्वान की गहरी पकड़ हो तो आने वाली घटनाओं का विश्लेषण बहुत अच्छे ढंग से किया जा सकता है। प्रश्न शास्त्र के कुछ नियमों की चर्चा हम यहाँ कर रहे हैं।
यात्रा प्रश्न -
यदि कोई प्रश्न लेकर आता है, तो उसके मन में जो चिन्ता चल रही है, उसे जाना जा सकता है। यदि चर राशि में लग्न हो या उस लग्न का चर द्रेष्काण लग्न में हो या नवांश लग्न भी चर राशि में हो तथा दशम में चर राशि स्थित ग्रह एकादश में चला गया हो तो प्रश्न पूछने वाले को यात्रा की चिन्ता सताती है।
यदि चन्द्रमा तथा लग्न दोनों ही द्विस्वभाव राशि के हों तथा पाप ग्रह से दृष्ट हों तो यात्रा निष्फल हो जाती है और बहुत कठिनाइयाँ झेलनी पड़ती हैं। परन्तु द्विस्वभाव राशि अर्थात मिथुन, कन्या, धनु और मीन राशि में लग्न व चन्द्रमा हों तो तथा शुभ ग्रह से देखें जाएं तो धन प्राप्ति होगी और सुख मिलेगा। यदि लग्न में पाप ग्रह हों या लग्न के आगे-पीछे के भावों में पाप ग्रह हों तो यात्रा में कष्ट मिलेगा। यदि द्विस्वभाव लग्न में बृहस्पति स्थित हों तो किसी भी कारण से यात्रा बीच में छोडक़र वापस आना होता है।
स्थिर राशि में प्रश्न लग्न हो तो परिस्थितियाँ बदल जाती हैं। प्रश्न लग्न में पाप ग्रह हों या पाप ग्रहों के बीच में या शत्रु ग्रहों के बीच में स्थिर लग्न हो तो यात्रा शुरू नहीं हो पाएगी और कोई न कोई विघ्र आ जाएगा। यदि शीर्षोदय राशि हो तो स्थिर लग्न होते हुए भी जाना होगा। चन्द्रमा या लग्न पृष्ठोदय राशि में हों तो यात्रा शुरू ही नहीं हो पाएगी। लग्नेश का तीसरे लग्न में या केन्द्र स्थान में होना यात्रा के लिए शुभ लक्षण माना गया है। यात्रा अवश्य ही होगी।
दसवें भाव में पाप ग्रह होने से नियोजक या पिता या अपने से वरिष्ठ व्यक्ति टोक देते हैं और यात्रा होती ही नहीं। ऐसे में यदि प्रश्न लग्न में पाप ग्रह हो और जबरन यात्रा कर ली जाए तो उसके अशुभ परिणाम आते हैं। या तो रास्ते में बीमार होगा या कार्य निष्फल हो जाएगा। प्रश्न लग्न से चौथे भाव में पाप ग्रह हो तो काम बनने से पहले ही लौटना पड़ता है। केन्द्र स्थान में पाप ग्रहों को कार्य नष्ट करने वाला माना गया है। इसके विपरीत केन्द्र स्थान में शुभ ग्रह हों तो शुभ माना गया है। प्रश्न लग्न से दूसरे भाव में शुभ ग्रह धन लाभ कराता है। चौथे भाव में शुभ ग्रह शुभकारी होता है। हम जानते हैं कि प्रश्न लग्न में शुभ ग्रह जिस भाव में होंगे, उसी भाव का सुख बढ़ा देंगे, जैसे कि लग्न के शुभ ग्रह शारीरिक सुख प्रदान करते हैं, तीसरे भाव के शुभ ग्रह धन लाभ, चौथे भाव के शुभ ग्रह सुख साधन, प्रश्न लग्न से पाँचवे शुभ ग्रह अर्थ लाभ कराते हैं और विजय होती है, छठा ग्रह तरह-तरह के कष्ट तथा सातवें भाव में शुभ ग्रह अर्थ लाभ, वस्त्राभूषण की प्राप्ति इत्यादि देते हैं।
सप्तम भाव के स्वामी जिस दिन वक्री होंगे, उसी दिन यात्रा पर गए हुए व्यक्ति को वापस आना होगा। प्रश्न लग्रेश यदि पाप ग्रह या बुध के साथ हों तो बिना प्रयोजन के यात्रा होती है।
चन्द्रमा और लग्न यदि चर राशि में हों तो यात्रा में एक ही विश्राम होता है। यदि दोनों ही स्थिर हों तो दो विश्राम होते हैं। यदि दोनों ही द्विस्वभाव राशि में हों तो तीन विश्राम हो सकते हैं। यात्रा में कष्ट होगा या नहीं इसका पता ग्रहों के मार्गी, वक्री या अतिचारी होने से पता लगता है। प्रश्न लग्न की नवांश कुण्डली में लग्न राशि की मित्र राशि यदि चौथे भाव, सातवें भाव और नौवें भाव में हो तो यात्रा में विश्राम सुखमय होगा। यदि प्रश्न लग्न के स्वामी वक्री हो तो वह शीघ्र ही यात्रा समाप्त करके चल देगा। परन्तु यदि प्रश्न लग्नेश मार्गी हो जाए तो रूकते ही पुन: चल देगा।
कौन मिलेगा रास्ते में - प्रश्न लग्न मेष हो तो यात्रा में मेंढा मिलेगा या बकरा मिलेगा। यदि वृषभ लग्न हो तो बैल मिलेगा। यदि मिथुन लग्न हो तो शुभ स्त्री, कर्क लग्न हो तो अग्नि हाथ में लेकर स्त्री मिलेगी। यदि सिंह लग्न हो तो बिलाव मिलेगा। कन्या लग्न हो तो या तो वधु मिलेगी या दाँहिनी और उल्लू या कौवे का शब्द सुनने को मिलेगा।
बच्चे के जन्म सम्बन्धी प्रश्न -
मान लीजिए किसी ने प्रश्न पूछा है, तो ज्योतिषी को चाहिए कि तुरन्त ही प्रश्न लग्न बना लेवें और लग्न के कितने नवांश बीत गए हैं इसका ज्ञान कर लें। कम्प्यूटर, लेपटॉप या मोबाइल से आजकल यह काम बहुत आसान हो गया है। जितने नवांश बीत गए हैं, उतने ही गर्भ के मास बीत चुके हैं और जितने नवांश भोगने शेष हैं, प्रसव में उतने ही महीने बकाया हैं। शुक्र की भी गणना करे लें, यदि बलवान शुक्र प्रश्न लग्न से पाँचवें भाव में बैठे हों तो यह मानना चाहिए कि गर्भ को पाँच मास बीत चुके हैं।
एक अन्य विधि में द्रेष्काण कुण्डली बना लें और द्रेष्काण लग्न के स्वामी का वार जान लें। बच्चे का जन्म उसी दिन होगा। लग्न में यदि दिवाबली राशि हो तो बालक का जन्म दिन में होता है और यदि रात्रि बली राशि हो तो रात्रि में जन्म होता है। यदि रात्रि बली ग्रह और दिन बली ग्रह संख्या में लगभग बराबर हो तो जन्म संधिकाल में होता है।
यदि बारहवें भाव का स्वामी शुभ ग्रह से युत या दृष्ट होकर केन्द्र स्थान में हो, तो गर्भपात नहीं होगा और यदि पाप ग्रह पंचम भाव में हो या प्रश्न लग्रेश अशुभ हो तो गर्भपात की सम्भावना होती है। पंचम भाव का पापकर्तरी में होना, शनि या मंगल से दृष्ट होना शुभ नहीं माना जाता और गर्भपात की संभावना रहती है। पाप ग्रह के साथ चन्द्रमा इत्थशाल योग हो तो गर्भपात की संभावना होती है। यदि लग्नेश भी पापग्रह के साथ या वक्री ग्रह के साथ इत्थशाल करें तो भी अशुभ परिणाम आते हैं। परन्तु चन्द्रमा या लग्न शुभ ग्रह के साथ योग करें तो शुभ परिणाम आता है और गर्भ की रक्षा हो जाती है।
यदि प्रश्न बालक के जन्म से सम्बन्धित हो तो लगभग उन्हीं भावों का समावेश परिणाम देने वाला होता है। यदि द्वादशेश शुभ ग्रहों से युत हो, केन्द्र या पंचम में हो या चन्द्रमा केन्द्र स्थान में हों तो जन्म लेने वाला बालक सुरक्षित होता है। परन्तु पंचमेश या बृहस्पति पापग्रहों से युत हो, या आपोक्लिम में स्थित हो तो जन्म लेने वाले बच्चे के जीवन में संशय होगा।
लग्रेश और पंचमेश में यदि शुभ ग्रहों के साथ हों तो अपने वैध पिता से जन्म लेने वाला बालक होता है, परन्तु लग्नेश या पंचमेश कम से कम दो अशुभ ग्रहों के साथ स्थित हो तो गर्भ किसी और पुरुष से भी हो सकता है। चर राशि में अधिक पाप ग्रह हों तो भी अन्य पुरुष से गर्भ धारण हो सकता है। स्थिर राशि में स्थित ग्रह शुभ माने गए हैं।
यह विषय अत्यन्त नाजुक है और ज्योतिषियों को यदि पर्याप्त अनुभव न हो तो मुँह से बात नहीं निकालनी चाहिए। एक अन्य तरीका भी है। यदि प्रश्न लग्न द्विस्वभाव राशि की हो और प्रथम होरा हो तो जन्म लेने वाला बालक अपने असली पिता का होता है परन्तु दूसरी होरा हो तो मामला संदेहप्रद होता है। पंचम भाव पर सूर्य-शनि की दृष्टि हो और अन्य कोई शुभ प्रभाव ना हो तो भी ऐसा देखने को मिलता है।
भाई-बहिन के सुख से सम्बन्धित प्रश्न -
मान लीजिए प्रश्न पूछने वाले ने अपने किसी भाई-बहिन की कुशल पूछी हो तो तीसरे या ग्यारहवें भाव के स्वामी यदि अपने ही घर को देखें या उस घर पर शुभ प्रभाव हों तो भाई-बहिन को सुखी बताना चाहिए। परन्तु यदि तीसरे या ग्यारहवें भाव का स्वामी नीच, अस्त या पीढि़त हो या अष्टम भाव में चला गया हो तो भाई-बहिन के सम्बन्ध में अशुभ समाचार हो सकते हैं।
प्रवासी से सम्बन्धित प्रश्न -
बाहर रहने वाला कब आयेगा, इसका उत्तर प्रश्न लग्न से दिया जा सकता है। यदि कोई बलवान शुभ ग्रह लग्न से चलकर तीसरे भाव में पहुँचता है तो इस पहुँचने की अवधि के बाद बाहर रहने वाला घर आएगा। परन्तु चन्द्रमा यह काम जल्दी भी करा देता है। प्रवासी यदि जल्दी ही आने वाला हो तो चन्द्रमा लग्र, चतुर्थ या दशम भाव से चलकर अगले भाव में जिस दिन पहुँचेंगे प्रवासी उसी दिन घर वापस आएगा। यदि आने वाला बहुत जल्दी नहीं आने वाला है तथा दस-पन्द्रह या बीस दिन लग सकते हैं तो उन दिनों की गणना करने की विधि और भी है। कोई बलवान ग्रह प्रश्न लग्न के जिस भाव में स्थित हो उस घर की संख्या को 12 से गुणा कर लें, उतने दिन में प्रवासी वापस घर आएगा। मान लीजिए तीसरे भाव में बलवान ग्रह है तो 12 से गुणा करने पर 36आए। प्रवासी 36दिनों में आएगा। यदि वह ग्रह वक्री हो तो 36दिनों में आकर वापस लौट जाएगा।
यदि प्रश्रलग्न चर राशि में हो तथा चौथे भाव में बृहस्पति, बुध और शुक्र हों तो चाहे किसी भी कारण व्यक्ति घर से बाहर गया हो और चाहे कितनी ही दूर गया हो, वह तुरन्त ही वापस आ जाएगा।
यदि कोई बच्चा घर से बिना सूचना दिए चला गया है तथा इस बारे में बच्चे का अभिभावक ज्योतिषी के पास आकर उसके बारे में पूछे तथा ज्योतिषी अगर यह पाए कि चन्द्रमा चौथे भाव में चर राशि में स्थित हैं या चर नवांश में स्थित हंै तो ज्योतिषी को कहना चाहिए कि आप घर जाइये या तो बच्चा आ गया होगा या आने ही वाला होगा। यदि चौथे भाव का स्वामी शुभ ग्रहों से युत हो या शुभ दृष्ट हो तो भी यही परिणाम होंगे। यदि अन्य ग्रह स्थितियाँ अनुकूल हों तथा चौथा भाव पाप ग्रह से पीडित ना हो तो चन्द्रमा जितने दिन में चौथे भाव पर पहुँचेंगे उतने ही दिन में घर से गया हुआ जातक वापस लौट आएगा।
लग्न से लेकर तीसरे भाव तक सभी भावों में ग्रह हों तो घर में मेहमान आने वाला है। यदि केवल शुभ ग्रह हों तो गया हुआ व्यक्ति ही वापस आता है तथा किसी खोई हुई वस्तु की प्राप्ति हो सकती है। यह काम लग्न लगायत तीसरे भाव में स्थित बृहस्पति अकेले भी करा लेते हैं।
2, 3, 8, 9 घरों में प्रश्न लग्रेश स्थित हो तो यात्रारत व्यक्ति बीच मार्ग में ही है। परन्तु यदि चर लग्न हो और उसका स्वामी शुभ ग्रहों से युति करता हो और शुभ ग्रहों से दृष्ट हो और उन पर पाप प्रभाव नहीं हो तो यात्री अभी स्थान से नहीं चला है। यदि प्रश्न लग्र में स्थिर राशि हो तो भी नहीं चला है। यदि द्विस्वभाव लग्न के स्वामी शुभ ग्रहों से दृष्ट या युत हो तो भी पथिक अभी नहीं चला है परन्तु यदि पाप ग्रहों की दृष्टि हो तो चल दिया है।
इस योग की काट एक अन्य योग से हो जाती है। यदि विषम लग्न हो और शुभ ग्रह से दृष्ट हो तो प्रश्न की सिद्धि के योग है। इस समय प्रश्न का महत्त्व अधिक है। यदि प्रश्न आने से सम्बन्धित है तो जवाब हाँ में है और यदि पृच्छक नहीं चाहता कि पथिक नहीं चले तो भी जवाब हाँ में है। प्रश्न में गर्हित उद्देश्य ही महत्त्वपूर्ण है।
यदि प्रश्न लग्न में बारहवें या सातवें लग्न में क्रूर ग्रह हों तो पथिक कष्ट में हो तो सकता है परन्तु मृत्यु भय नहीं होता। परन्तु यदि प्रश्न लग्न में, सातवें में या आठवें में पाप ग्रह हों तो जीवन के प्रति संदेह व्यक्ति करना चाहिए। यदि चन्द्रमा पापकर्तरी में हों तो भी मृत्यु हो जाने का संदेह करना चाहिए। चन्द्रमा यदि चतुर्थ से अष्टम तक स्थित हों और वक्री ग्रह के साथ इत्थशाल योग करते हों तो घर से दूर स्थित मनुष्य की मृत्यु की सम्भावना होती है इसी तरह से शुभ ग्रह निर्बल हों तथा 6, 8, 12 में स्थित हों तथा पाप दृष्ट हों या सूर्य चन्द्रमा लग्न में स्थित हों तो मृत्यु भय होता है। सूर्य-चन्द्र लग्न में होने का मतलब छठे-सातवें-आठवें भाव में ग्रहों के वक्री होने की सम्भावना बढ़ जाती है। यदि 6, 8, 12 भाव में बैठे ग्रहों को शुभ ग्रह देखते हों तो मृत्यु के टल जाने की संभावना होती है। पृष्ठोदय लग्न हो, चाहे त्रिकोण हो इनमें यदि पाप ग्रह हों तो जीवन सम्बन्धी प्रश्न खड़ा हो जाता है। सूर्य यदि नवम स्थान में हों तो प्रवासी व्यक्ति के स्वास्थ्य सम्बन्धी चिन्ता रहती है।
आर्थिक लाभ से सम्बन्धित प्रश्न -
लग्न, द्वितीय, पंचम या नवम में चन्द्रमा उच्च राशि का हो तो प्रश्न करने वाले व्यक्ति को शीघ्र ही आर्थिक लाभ कराता है। प्रश्न लग्न में चन्द्रमा पूर्ण हों, अपनी उच्च राशि में हों, उन पर पाप दृष्टि ना हों तथा केवल शुभ ग्रहों से दृष्ट हों तो आर्थिक लाभ कराते हैं। यदि चन्द्रमा से ग्यारहवें बृहस्पति व शुक्र बलवान हों या ग्यारहवें भाव में बैठे चन्द्रमा को देखते हैं तो धन लाभ कराते हैं। केन्द्र त्रिकोण में स्थित शुभ ग्रह भी धन लाभ कराते हैं। परन्तु इन्हीं भावों में स्थित पाप ग्रह उस धन की हानि करा लेते हैं जो अनुचित हो या अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर हो। नवम भाव पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो या उसमें शुभ ग्रह हों या नवम भाव के स्वामी नवम भाव को देखें तो भी जिस वस्तु की चिन्ता हो रही हो उसका लाभ कराते हैं। लाभ भाव के स्वामी कहीं भी स्थित हो, शुभ ग्रह से देखे जाएं या लग्नेश के साथ इत्थशाल योग करते हों तो सरकार से धन लाभ तथा किसी ओर से भी धन, मान इत्यादि की प्राप्ति होती है। लाभेश जिस भाव में स्थित होंगे, उसी भाव के वर्ग से धन या मान की प्राप्ति होती है। इत्थशाल योग ताजिक ज्योतिष का एक महत्त्वपूर्ण तथ्य है। लाभ के स्वामी यदि 6, 8, 12 में हों और पाप ग्रह से युत दृष्ट हों तो धन हानि करा देते हैं। धन या लाभ के स्वामी यदि लग्नेश के साथ स्थित हों या परस्पर सम्बन्ध करते हों तो आर्थिक लाभ कराते हैं।
प्रश्न लग्न में राज्य से लाभ -
प्रश्र लग्न में त्रिकोण में शुभं ग्रह बलवान हों तो राज्य से लाभ होता है। दशमेश व लग्नेश लग्न या दशम में स्थित हों तो राज्य से लाभ प्राप्त होता है। उच्च राशि के बृृहस्पति बलवान हों और बलवान चंद्रमा से युत या दृष्ट हो तो भ्रमण करने से राज्य लाभ होता है। चंद्रमा बलवान हों और प्रश्न लग्न में दशमेश दशम भाव को देखें तो राज्य से लाभ होगा। लग्नेश जिस राशि में स्थित हो आौर उसे शुभ ग्रह देखें तो राज्य से लाभ प्राप्त होगा। मीन लग्न में बुध, बृहस्पति और शुक्र स्थित हों तो राज्य से बड़ा लाभ होता है। इसी प्रकार राशियों में शुक्र, चंद्रमा व बुध स्थित हों और बृहस्पति प्रश्न लग्न से केन्द्र में हों तो राज्य से लाभ होगा।
मुकदमे में विजय -
सूर्य ग्यारहवें भाव में, मंगल दसवें, शनि तीसरे, चंद्रमा छठे भाव में तथा शेष ग्रह लग्न में हों तो विवाद में विजय होगी। प्रश्न लग्न में मंगल तथा शनि हों, बृहस्पति पांचवें, ग्याहरवें बुध और दशम भाव में सूर्य, शुक्र हों तो मुकदमे में विजय होगी। एक अन्य योग में ग्यारहवें भाव में मंगल, सूर्य और राहु हों तथा शुक्र व बुध दसवें भाव में हों तो शत्रु पर विजय प्राप्त होगी। पाप ग्रह दसवें व ग्यारहवें भाव में, बृहस्पति व शुक्र लग्न में हों तो विजय प्राप्त होती है। इसी प्रकार बृहस्पति, शुक्र लग्न में हों, सूर्य चर राशि में, मंगल व शनि छठे भाव में तथा बुध व शुक्र बारहवें भाव में होंं तो विजय प्राप्त होती है। एक अन्य योग में लग्न में बृहस्पति, ग्यारहवें में सूर्य, दसवें में बुध व शुक्र, तीसरे में शनि व चतुर्थ भाव में चंद्रमा हों तो विजय प्राप्त होती है।
मुकदमे या विवाद में हार हो सकती है यदि लग्न में शनि व चंद्र, मंगल से दृष्ट हो। इसी प्रकार प्रश्र लग्न में सूर्य व शनि, मंगल आठवें हों तो मुकदमे या विवाद में हार होती है। प्रश्र लग्न से सातवें चंद्र, लग्न में सूर्य, शनि, मंगल आठवें तथा शुक्र तीसरे हों तो पराजय होती है। यदि चर लग्न हो और द्विस्वभाव राशि में चंद्रमा हों तो विवाद घर तक आ पहुंचता है, पराजय की सम्भावना होती है। प्रश्र लग्न में पाप ग्रह हों और प्रश्रकर्ता साथ में हो तो शत्रु की विजय होती है। एक अन्य योग में प्रश्न लग्न से दशमेश शनि बलवान हों, केन्द्र में हों और मंगल से दृष्ट हों मुकदमे में अन्याय झेलना पड़ता है। यदि प्रश्र लग्न से दशम में मंगल, बृहस्पति व शुक्र हों तो धर्मपूर्ण न्याय होगा। यदि बुध दशम हों तो मिला-जुला न्याय होता है।
रोग से संबंधी प्रश्न -
प्रश्र लग्न का विशेषण जन्म लग्न से थोड़ा सा अलग होता है। इसमें पहला घर वैद्य या डॉक्टर का, दसवां घर रोगी, चौथा घर औषधि तथा छठा घर रोग का होता है। इनमें से कोई भी ग्रह बैठे हों, पाप युक्त चं्रदमा 4,8,12 तथा 2, 7,12 में पाप ग्रह हों तो प्रश्न रोगी की मृत्यु होती है। प्रश्न लग्न में पाप ग्रह हों तो वैद्य उच्चकोटि का नहीं होता और रोगी के कष्ट में वृद्धि होती है।
प्रश्र लग्न में शुभ ग्रह हो तो रोग की निवृत्ति जल्दी होती है। यदि प्रश्र लग्न से चतुर्थ भाव में पाप ग्रह हों तो डॉक्टर की दवा से रोग बढ़ जाता है। यदि चौथे घर में शुभ ग्रह हों तो डॉक्टर की दवा से रोगी जल्दी ठीक हो जाता है। यदि सातवें में पाप ग्रह हों तो दवाइयों के कारण एक रोग तो ठीक हो जायेगा परंतु दूसरा रोग उत्पन्न हो जायेगा।
प्रश्र लग्न से दशम भाव में पाप ग्रह हों तो रोग में वृद्धि हो जाती है, क्योंकि रोगी खान-पान का ध्यान नहीं रखता। चंद्रमा शुभ ग्रहों से दृष्ट हों तथा केन्द्र में बैठे हों और लग्नेश से इत्यशाल योग बनाये तो रोग जल्दी ठीक हो जाता है। चंद्रमा केवल शुभ ग्रहों से देखें जांए या उनके साथ हों तथा सप्तमेश या अष्टमेश वक्री तो हों परंतु उनके साथ सूर्य न हों तो रोग जल्दी ठीक हो जाता है। प्रश्न लग्र में केन्द्र में बलवान ग्रह हमेशा ही रोगी को ठीक करने में सहायक होते हैं। सारे ही पाप ग्रह 1, 4, 5, 8,12 में हों तो आयु में कमी करते हैं। प्रश्न लग्न से केन्द्र में स्थित पाप ग्रह रोगी का कष्ट बढ़ाते हैं। यदि लग्न, सप्तम और अष्टम में पाप ग्रह हों तथा शुभ ग्रह निर्बल हों तो रोगी के लिये शुभ नहीं होता। यदि चंद्रमा चौथे व आठवें हों और पापकर्तरि हों तो रोगी की मृत्यु हो सकती है। यदि प्रश्न लग्न में स्थित शनि को पाप ग्रह दृष्टिपात करें तो मृत्यु के संकेत हैं।
देवताओं से मिले हुये दोष -
यदि प्रश्र लग्न से बारहवें या आठवें सूर्य हों तो देवताओं से, आठवें चंद्रमा हों तो देवी से, बृहस्पति हों तो पितरों से, मंगल हों तो शाकिनी से, बुध हों तो कुल के ही भूतों से, शनि अपने ही गोत्र की देवी से। यदि केन्द्र में पाप ग्रह हों तो असाध्य बाधा होती है और यदि केन्द्र में शुभ ग्रह हों तो बाधा को मंत्रों के द्वारा दूर किया जा सकता है।

Tuesday, November 6, 2018

नक्षत्र विचार . By Sh Mahendra Jain FB page. Thanks

राशि, नक्षत्र और रोगोपचार
आपकी राशि, नक्षत्र और रोगोपचार :

भारतीय ज्योतिष में राशि एवं नक्षत्र का अपना विशेष  महत्त्व है। किसी  राशि एवं नक्षत्र के आधार पर रोगों का वर्णन प्राचीन आचार्यो ने किया है। बारह  राशियों अर्थात् सत्ताईस  नक्षत्रों को अंगों में स्थापित करने पर मानव  शरीर की आकृति बनती है। नवग्रहों में चन्द्र सर्वाधिक गतिशिल ग्रह है, इसलिये इसका मानव शरीर पर भी सर्वाधिक प्रभाव मान सकते हैं। हमारे शरीर का लगभग 70 प्रतिशत भाग जल है। ज्योतिष में जल का स्वामी चन्द्र को ही माना है, इसलिये भारतीय ज्योतिष  में चन्द्र को महत्वपूर्ण स्थान देकर उसका जन्म समय जिस राशि या नक्षत्र में गोचर होता है, वही हमारी जन्म राशि या जन्म नक्षत्र माना जाता है। इस राशि या नक्षत्र के आधार पर जातक को कौन रोग हो सकता है एवं इस रोग से बचाव का सुलभ उपाय क्या होगा, इसकी जानकारी इस अध्याय में दी जा रही है। नक्षत्र के आराध्य अथवा उसके प्रतिनिधि वृक्ष की जडी धारण करके भी रोग का प्रकोप कम किया जा सकता है:-वास्तुगुरु महेन्द्र जैन

1अश्विनी:- वराह ने अश्विनी नक्षत्र का घुटने पर अधिकार माना है।  इसके पीडित होने पर बुखार भी रहता है। यदि आपको घुटने से सम्बन्धित पीडा हो, बुखार आ रहा हो तो आप अपामार्ग की जड धारण करें। इससे आपको रोग की पीडा कम होगी।

2 भरणी:- भरणी नक्षत्र का अधिकार सिर पर माना गया है। इसके पीडित होने पर पेचिश रोग होता है। इस प्रकार की पीडा पर अगस्त्य की जड धारण करें।

3 कृतिका:- कृतिका नक्षत्र का अधिकार कमर पर है। इसके पीडित होने पर कब्ज एवं अपच की समस्या होती है। आपका जन्म नक्षत्र यदि कृतिका हो तथा कमर दर्द, कब्ज, अपच की शिकायत हो तो कपास की जड धारण करें।

4 रोहिणी:- रोहिणी नक्षत्र का अधिकार टांगों पर होता है। इसके पीडित होने पर सिरदर्द, प्रलाप, बवासीर जैसे रोग होते है। इस प्रकार की पीडा होने पर अपामार्ग या आंवले की जड धारण करें।

5 मृगशिरा:- मृगशिरा नक्षत्र का अधिकार आँखों पर है। इसके पीडित होने पर रक्त विकार, अपच,एलर्जी जैसे रोग होते है। ऐसी स्थिति में खैर की जड धारण करें।

6 आद्रा :- इस नक्षत्र का अधिकार बालों पर है। इसके पीडित होने पर मंदाग्नि, वायु विकार तथा आकस्मिक रोग होते हैं। इससे प्रभावित जातकों को श्यामा तुलसी या पीपल की जड धारण करनी चाहिये।

7 पुनर्वसु:- पुनर्वसु नक्षत्र का अधिकार अंगुलियों पर है। इसके पीडित होने पर हैंजा, सिरदर्द, यकृत रोग होते है। इन जातकों को आक की जड धारण करनी चाहिये। श्वेतार्क जडी मिले तो सर्वोत्तम हैं।

8 पुष्य:- पुष्य नक्षत्र का अधिकार मुख पर है। स्वादहीनता, उन्माद, ज्वर इसके कारण होते है। इनसे पीडित जातकों को कुशा अथवा बिछुआ की जड धारण करनी चाहिये।

9 आश्लेशा:- आश्लेषा नक्षत्र का अधिकार नाखून पर है। इसके कारण रक्ताल्पता एवं चर्म रोग होते है। इनसे पीडित जातको को पटोल की जड धारण करनी चाहिये।

10 मघा:- मघा नक्षत्र का अधिकार वाणी पर है। वाणी सम्बन्धित दोष, दमा आदि होने पर जातक भृगराज या वट वृक्ष की जड धारण करें।

11 पूर्वाफाल्गुनी:- पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र का अधिकार गुप्तांग पर है। गुप्त रोग, आँतों में सूजन, कब्ज, शरीर दर्द होने पर कटेली की जड धारण करें।

12 उत्तराफाल्गुनी:- उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र का अधिकार गुदा, लिंग, गर्भाशय पर होता है। इसलिये इनसे सम्बन्धित रोग मधुमेह होने पर पटोल जड धारण करें।

13 हस्त:- हस्त नक्षत्र का अधिकार हाथ पर होता है। हाथ में पीडा होने या शरीर में जलदोष अर्थात् जल की कमी, अतिसार होने पर चमेली या जावित्री मूल धारण करें।वास्तुगुरु महेन्द्र जैन

14 चित्रा:- चित्रा नक्षत्र का अधिकार माथे पर होता है। सिर सम्बन्धित पीडा, गुर्दे में विकार, दुर्घटना होने पर अनंतमूल या बेल धारण करें।

15 स्वाति:- स्वाति नक्षत्र का अधिकार दाँतों पर है, इसलिये दंत रोग, नेत्र पीडा तथा दीर्घकालीन रोग होने पर अर्जुन  मूल धारण करें।

16 विशाखा:- विशाखा नक्षत्र का अधिकार भुजा पर है। भुजा में विकार, कर्ण पीडा, एपेण्डिसाइटिस होने पर गुंजा मूल धारण करें।

17 अनुराधा:- अनुराधा नक्षत्र का अधिकार हृदय पर है। हृदय पीडा, नाक के रोग, शरीर दर्द होने पर नागकेशर की जड धारण करें।

18 ज्येष्ठा:- ज्येष्ठा नक्षत्र का अधिकार जीभ व दाँतों पर होता है। इसलिये इनसे सम्बन्धित पीडा होने पर अपामार्ग की जड धारण करें।

19 मूल:- मूल नक्षत्र का अधिकार पैर पर है। इसलिये पैरों में पीडा, टी.बी. होने पर मदार की जड धारण करें।

20 पूर्वाषाढा:- पूर्वाषाढा नक्षत्र का अधिकार जांघ, कूल्हों पर होता है। जाँघ एवं कूल्हों में पीडा,  कार्टिलेज की समस्या, पथरी रोग होने पर कपास की जड धारण करें।

21 उतराषाढा:-उतराषाढा नक्षत्र का अधिकार भी जाँघ एवं कूल्हो पर माना है। हड्डी में दर्द, फे्क्चर हो वमन आदि होने पर कपास या कटहल की जड धारण करें।

22 श्रवण:- श्रवण नक्षत्र का अधिकार कान पर होता है। इसलिये कर्ण रोग, स्वादहीनता होने पर अपामार्ग की जड धारण करें।

23 धनिष्ठा:- धनिष्ठा नक्षत्र का अधिकार कमर तथा रीढ की हड्डी पर होता है। कमर दर्द, गठिया आदि होने पर भृंगराज की जड धारण करें।

24 शतभिषा:- शतभिषा नक्षत्र का अधिकार ठोडी पर होता है। पित्ताधिक्य, गठिया रोग होने पर कलंब की जड धारण करें।

25 पूर्वाभाद्रपद:- पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र का अधिकार छाती, फेफडों पर होता हैं। ष्वास सम्बन्धी रोग होने पर आम की जड धारण करें।

26  उतराभाद्रपद:- उतराभाद्रपद नक्षत्र का अधिकार अस्थि पिंजर पर होता है। हांफने की समस्या होने पर पीपल की जड धारण करें।

27  रेवती:- रेवती नक्षत्र का अधिकार बगल पर होता है। बगल में फोडे-फुंसी या अन्य विकार होने पर महुवे की जड धारण करें।

जब किसी भी प्रकार की स्वास्थ्य पीडा हो तो आपको अपने जन्म नक्षत्र के प्रतिनिधि वृक्ष की जड धारण करनी चाहिये। यदि आपको अपना जन्म नक्षत्र पता नहीं है तो आपको किस प्रकार की स्वास्थ्य पीडा है तथा वह शरीर के किस अंग से सम्बन्धित है अथवा वह रोग किसके अन्तर्गत आ रहा है, उससे सम्बन्धित वृक्ष की जडी ऊपर बताये अनुसार धारण करें तो आपको अवष्य अनुकूल फल की प्राप्ति होगी।

आपकी राशि के अनुसार जड धारण करके भी रोग के प्रकोप को कम कर सकते हैं। आप अपनी राशि अपने नाम के प्रथम अक्षर से जान सकते हैं। इस आधार पर:-
वास्तुगुरु महेन्द्र जैन

मेश राशि वालों को पित्त विकार, खाज-खुजली, दुर्घटना, मूत्रकृच्छ की समस्या होती है। मेष राशि का स्वामी ग्रह मंगल है। इन्हें अनंतमूल की जड धारण करनी चाहिये।

वृश्चिक राशि वालों को भी उपरोक्त रोगों की ही समस्या होती हैं। इन्हें भी अनंतमूल की जड धारण करनी चाहिये

वृषभ एवं तुला राशि वालों को गुप्त रोग, धातु रोग, शोथ आदि होते हैं। यदि आपकी राशि वृषभ अथवा तुला हो तो आपको सरपोंखा की जड धारण करनी चाहिये।

मिथुन एवं कन्या राशि वालों को चर्म विकार, इंसुलिन की कमी, भ्रांति, स्मुति ह्नास, निमोनिया, त्रिदोश ज्वर होता है। इन्हें विधारा की जड धारण करनी चाहिये।

कर्क राशि वालों को सर्दी-जुकाम, जलोदर, निद्रा, टी.बी. आदि होते हैं। इन्हें खिरनी की जड धारण करनी चाहिये।

सिंह राशि वालों को उदर रोग, हृदय रोग, ज्वर, पित्त सम्बन्धित विकार होते हैं। इन्हें अर्क मूल धारण करनी चाहिये। बेल की जड भी धारण कर सकते हैं।

धनु एवं मीन राशि वालों को अस्थमा, एपेण्डिसाइटिस, यकृत रोग, स्थूलता आदि रोग होते हैं। इन्हें केले की जड धारण करनी चाहिये।

मकर एवं कुंभ राशि वालों को वायु विकार, आंत्र वक्रता, पक्षाघात, दुर्बलता आदि रोग होते हैं। इन्हें बिछुआ की जड धारण करनी चाहिये।

चन्द्र का कारकत्व जल हैं। इसलिये चन्द्र निर्बल होने पर जल चिकित्सा लाभप्रद सिद्ध होती हैं। हमारे शरीर में लगभग 70 प्रतिशत जल होता है। इसलिये शरीर की अधिकांश क्रियाओं में जल की सहभागिता होती है। जल चिकित्सा से जो वास्तविक रोग है, उसका उपचार तो होता ही है इसके साथ अन्य अंगों की शुद्धि भी होती है। इस कारण शरीर में भविष्य में रोग होने की सम्भावना भी कम होती है। जल एक अच्छा विलायक है। इसमें विभिन्न तत्त्व एवं पदार्थ आसानी से घुल जाते हैं जिससे रोग का उपचार आसानी से हो जाता है। जल चिकित्सा में वाष्प् स्नान, वमन,एनीमा, गीली पट्टी, तैरना, उषा: पान एवं अनेक प्रकार की चिकित्सायें हैं। दैनिक क्रियाओं में भी हम जल का उपयोग करते रहते हैं। लेकिन जब चन्द्र कमजोर एवं पीडित होकर उसकी दशा आये तभी जल के अनुपात में शारीरिक असंतुलन बनता है। हमारे शरीर में स्थित गुर्दे जल तत्त्वों का शुद्धिकरण करते हैं। जल की अधिकता होने पर पसीने के रूप में जल बाहर निकलता है जिससे शरीर का तापमान कम हो जाता है। इसलिये जल सेवन अधिक करने पर जोर दिया जाता है ताकि षरीर स्वस्थ रहे अर्थात् चन्द्र की कमजोरी स्वास्थ्य में बाधक न बने। इस प्रकार हमारे लिये चन्द्र महत्त्वपूर्ण ग्रह बन जाता है।