Tuesday, November 13, 2018

प्रश्न कुंडली पर एक सार्थक लेख श्री सतीश शर्मा जयपुर की कलम से ।। साभार

प्रश्न शास्त्र Pt Satish Sharma

ज्योतिष कालखण्ड पर एक निर्णय है। वह कालखण्ड आधान लग्न भी हो सकता है और जन्म लग्न भी हो सकता है। जीवन की कुछ महत्त्वपूर्ण घटनाओं के समय बनी हुई लग्न भी घटनाओं के विश्लेषण के लिए काम में ली जाती है। उदाहरण के लिए स्त्रियों का रजोदर्शन लग्न।
पहले प्रश्न का बहुत अधिक उपयोग होता था और यात्रा में व मुहूत्र्त में युद्ध पर जाने के समय या किसी भी महत्त्वपूर्ण कार्य में मुहूत्र्त शास्त्र की मदद ली जाती थी। मुहूत्र्त लग्न चूंकि कालखण्ड पर एक निर्णय है इसलिए अन्य महत्त्वपूर्ण घटनाओं की तरह मुहूत्र्त लग्न से उस घटना का भविष्य जाना जा सकता है। प्राचीन काल में राजा लोग युद्ध पर निकलते समय अपने साथ विद्वान ज्योतिषियों को भी यात्रा पर्यन्त साथ रखते थे। वे लोग मुहूत्र्त की दशा, स्वप्र और शकुन की भी मदद इस कार्य में लिया करते थे।
मुहूत्र्त शास्त्र और प्रश्न शास्त्र के तर्क तो समान है परन्तु फलाफल में थोड़ा बहुत अन्तर रहता है। प्रस्तुत लेख में प्रश्नशास्त्र को लेकर शास्त्रों में कही गई कुछ बातों पर विचार किया गया है। निकट भविष्य में होने वाली घटनाओं के लिए, यात्रा के लिए, चोरी के प्रश्न, जय-विजय के प्रश्न, सफलता-असफलता के प्रश्न, प्रश्रशास्त्र के माध्यम से सफल रहते हैं। अगर प्रश्न शास्त्र पर किसी विद्वान की गहरी पकड़ हो तो आने वाली घटनाओं का विश्लेषण बहुत अच्छे ढंग से किया जा सकता है। प्रश्न शास्त्र के कुछ नियमों की चर्चा हम यहाँ कर रहे हैं।
यात्रा प्रश्न -
यदि कोई प्रश्न लेकर आता है, तो उसके मन में जो चिन्ता चल रही है, उसे जाना जा सकता है। यदि चर राशि में लग्न हो या उस लग्न का चर द्रेष्काण लग्न में हो या नवांश लग्न भी चर राशि में हो तथा दशम में चर राशि स्थित ग्रह एकादश में चला गया हो तो प्रश्न पूछने वाले को यात्रा की चिन्ता सताती है।
यदि चन्द्रमा तथा लग्न दोनों ही द्विस्वभाव राशि के हों तथा पाप ग्रह से दृष्ट हों तो यात्रा निष्फल हो जाती है और बहुत कठिनाइयाँ झेलनी पड़ती हैं। परन्तु द्विस्वभाव राशि अर्थात मिथुन, कन्या, धनु और मीन राशि में लग्न व चन्द्रमा हों तो तथा शुभ ग्रह से देखें जाएं तो धन प्राप्ति होगी और सुख मिलेगा। यदि लग्न में पाप ग्रह हों या लग्न के आगे-पीछे के भावों में पाप ग्रह हों तो यात्रा में कष्ट मिलेगा। यदि द्विस्वभाव लग्न में बृहस्पति स्थित हों तो किसी भी कारण से यात्रा बीच में छोडक़र वापस आना होता है।
स्थिर राशि में प्रश्न लग्न हो तो परिस्थितियाँ बदल जाती हैं। प्रश्न लग्न में पाप ग्रह हों या पाप ग्रहों के बीच में या शत्रु ग्रहों के बीच में स्थिर लग्न हो तो यात्रा शुरू नहीं हो पाएगी और कोई न कोई विघ्र आ जाएगा। यदि शीर्षोदय राशि हो तो स्थिर लग्न होते हुए भी जाना होगा। चन्द्रमा या लग्न पृष्ठोदय राशि में हों तो यात्रा शुरू ही नहीं हो पाएगी। लग्नेश का तीसरे लग्न में या केन्द्र स्थान में होना यात्रा के लिए शुभ लक्षण माना गया है। यात्रा अवश्य ही होगी।
दसवें भाव में पाप ग्रह होने से नियोजक या पिता या अपने से वरिष्ठ व्यक्ति टोक देते हैं और यात्रा होती ही नहीं। ऐसे में यदि प्रश्न लग्न में पाप ग्रह हो और जबरन यात्रा कर ली जाए तो उसके अशुभ परिणाम आते हैं। या तो रास्ते में बीमार होगा या कार्य निष्फल हो जाएगा। प्रश्न लग्न से चौथे भाव में पाप ग्रह हो तो काम बनने से पहले ही लौटना पड़ता है। केन्द्र स्थान में पाप ग्रहों को कार्य नष्ट करने वाला माना गया है। इसके विपरीत केन्द्र स्थान में शुभ ग्रह हों तो शुभ माना गया है। प्रश्न लग्न से दूसरे भाव में शुभ ग्रह धन लाभ कराता है। चौथे भाव में शुभ ग्रह शुभकारी होता है। हम जानते हैं कि प्रश्न लग्न में शुभ ग्रह जिस भाव में होंगे, उसी भाव का सुख बढ़ा देंगे, जैसे कि लग्न के शुभ ग्रह शारीरिक सुख प्रदान करते हैं, तीसरे भाव के शुभ ग्रह धन लाभ, चौथे भाव के शुभ ग्रह सुख साधन, प्रश्न लग्न से पाँचवे शुभ ग्रह अर्थ लाभ कराते हैं और विजय होती है, छठा ग्रह तरह-तरह के कष्ट तथा सातवें भाव में शुभ ग्रह अर्थ लाभ, वस्त्राभूषण की प्राप्ति इत्यादि देते हैं।
सप्तम भाव के स्वामी जिस दिन वक्री होंगे, उसी दिन यात्रा पर गए हुए व्यक्ति को वापस आना होगा। प्रश्न लग्रेश यदि पाप ग्रह या बुध के साथ हों तो बिना प्रयोजन के यात्रा होती है।
चन्द्रमा और लग्न यदि चर राशि में हों तो यात्रा में एक ही विश्राम होता है। यदि दोनों ही स्थिर हों तो दो विश्राम होते हैं। यदि दोनों ही द्विस्वभाव राशि में हों तो तीन विश्राम हो सकते हैं। यात्रा में कष्ट होगा या नहीं इसका पता ग्रहों के मार्गी, वक्री या अतिचारी होने से पता लगता है। प्रश्न लग्न की नवांश कुण्डली में लग्न राशि की मित्र राशि यदि चौथे भाव, सातवें भाव और नौवें भाव में हो तो यात्रा में विश्राम सुखमय होगा। यदि प्रश्न लग्न के स्वामी वक्री हो तो वह शीघ्र ही यात्रा समाप्त करके चल देगा। परन्तु यदि प्रश्न लग्नेश मार्गी हो जाए तो रूकते ही पुन: चल देगा।
कौन मिलेगा रास्ते में - प्रश्न लग्न मेष हो तो यात्रा में मेंढा मिलेगा या बकरा मिलेगा। यदि वृषभ लग्न हो तो बैल मिलेगा। यदि मिथुन लग्न हो तो शुभ स्त्री, कर्क लग्न हो तो अग्नि हाथ में लेकर स्त्री मिलेगी। यदि सिंह लग्न हो तो बिलाव मिलेगा। कन्या लग्न हो तो या तो वधु मिलेगी या दाँहिनी और उल्लू या कौवे का शब्द सुनने को मिलेगा।
बच्चे के जन्म सम्बन्धी प्रश्न -
मान लीजिए किसी ने प्रश्न पूछा है, तो ज्योतिषी को चाहिए कि तुरन्त ही प्रश्न लग्न बना लेवें और लग्न के कितने नवांश बीत गए हैं इसका ज्ञान कर लें। कम्प्यूटर, लेपटॉप या मोबाइल से आजकल यह काम बहुत आसान हो गया है। जितने नवांश बीत गए हैं, उतने ही गर्भ के मास बीत चुके हैं और जितने नवांश भोगने शेष हैं, प्रसव में उतने ही महीने बकाया हैं। शुक्र की भी गणना करे लें, यदि बलवान शुक्र प्रश्न लग्न से पाँचवें भाव में बैठे हों तो यह मानना चाहिए कि गर्भ को पाँच मास बीत चुके हैं।
एक अन्य विधि में द्रेष्काण कुण्डली बना लें और द्रेष्काण लग्न के स्वामी का वार जान लें। बच्चे का जन्म उसी दिन होगा। लग्न में यदि दिवाबली राशि हो तो बालक का जन्म दिन में होता है और यदि रात्रि बली राशि हो तो रात्रि में जन्म होता है। यदि रात्रि बली ग्रह और दिन बली ग्रह संख्या में लगभग बराबर हो तो जन्म संधिकाल में होता है।
यदि बारहवें भाव का स्वामी शुभ ग्रह से युत या दृष्ट होकर केन्द्र स्थान में हो, तो गर्भपात नहीं होगा और यदि पाप ग्रह पंचम भाव में हो या प्रश्न लग्रेश अशुभ हो तो गर्भपात की सम्भावना होती है। पंचम भाव का पापकर्तरी में होना, शनि या मंगल से दृष्ट होना शुभ नहीं माना जाता और गर्भपात की संभावना रहती है। पाप ग्रह के साथ चन्द्रमा इत्थशाल योग हो तो गर्भपात की संभावना होती है। यदि लग्नेश भी पापग्रह के साथ या वक्री ग्रह के साथ इत्थशाल करें तो भी अशुभ परिणाम आते हैं। परन्तु चन्द्रमा या लग्न शुभ ग्रह के साथ योग करें तो शुभ परिणाम आता है और गर्भ की रक्षा हो जाती है।
यदि प्रश्न बालक के जन्म से सम्बन्धित हो तो लगभग उन्हीं भावों का समावेश परिणाम देने वाला होता है। यदि द्वादशेश शुभ ग्रहों से युत हो, केन्द्र या पंचम में हो या चन्द्रमा केन्द्र स्थान में हों तो जन्म लेने वाला बालक सुरक्षित होता है। परन्तु पंचमेश या बृहस्पति पापग्रहों से युत हो, या आपोक्लिम में स्थित हो तो जन्म लेने वाले बच्चे के जीवन में संशय होगा।
लग्रेश और पंचमेश में यदि शुभ ग्रहों के साथ हों तो अपने वैध पिता से जन्म लेने वाला बालक होता है, परन्तु लग्नेश या पंचमेश कम से कम दो अशुभ ग्रहों के साथ स्थित हो तो गर्भ किसी और पुरुष से भी हो सकता है। चर राशि में अधिक पाप ग्रह हों तो भी अन्य पुरुष से गर्भ धारण हो सकता है। स्थिर राशि में स्थित ग्रह शुभ माने गए हैं।
यह विषय अत्यन्त नाजुक है और ज्योतिषियों को यदि पर्याप्त अनुभव न हो तो मुँह से बात नहीं निकालनी चाहिए। एक अन्य तरीका भी है। यदि प्रश्न लग्न द्विस्वभाव राशि की हो और प्रथम होरा हो तो जन्म लेने वाला बालक अपने असली पिता का होता है परन्तु दूसरी होरा हो तो मामला संदेहप्रद होता है। पंचम भाव पर सूर्य-शनि की दृष्टि हो और अन्य कोई शुभ प्रभाव ना हो तो भी ऐसा देखने को मिलता है।
भाई-बहिन के सुख से सम्बन्धित प्रश्न -
मान लीजिए प्रश्न पूछने वाले ने अपने किसी भाई-बहिन की कुशल पूछी हो तो तीसरे या ग्यारहवें भाव के स्वामी यदि अपने ही घर को देखें या उस घर पर शुभ प्रभाव हों तो भाई-बहिन को सुखी बताना चाहिए। परन्तु यदि तीसरे या ग्यारहवें भाव का स्वामी नीच, अस्त या पीढि़त हो या अष्टम भाव में चला गया हो तो भाई-बहिन के सम्बन्ध में अशुभ समाचार हो सकते हैं।
प्रवासी से सम्बन्धित प्रश्न -
बाहर रहने वाला कब आयेगा, इसका उत्तर प्रश्न लग्न से दिया जा सकता है। यदि कोई बलवान शुभ ग्रह लग्न से चलकर तीसरे भाव में पहुँचता है तो इस पहुँचने की अवधि के बाद बाहर रहने वाला घर आएगा। परन्तु चन्द्रमा यह काम जल्दी भी करा देता है। प्रवासी यदि जल्दी ही आने वाला हो तो चन्द्रमा लग्र, चतुर्थ या दशम भाव से चलकर अगले भाव में जिस दिन पहुँचेंगे प्रवासी उसी दिन घर वापस आएगा। यदि आने वाला बहुत जल्दी नहीं आने वाला है तथा दस-पन्द्रह या बीस दिन लग सकते हैं तो उन दिनों की गणना करने की विधि और भी है। कोई बलवान ग्रह प्रश्न लग्न के जिस भाव में स्थित हो उस घर की संख्या को 12 से गुणा कर लें, उतने दिन में प्रवासी वापस घर आएगा। मान लीजिए तीसरे भाव में बलवान ग्रह है तो 12 से गुणा करने पर 36आए। प्रवासी 36दिनों में आएगा। यदि वह ग्रह वक्री हो तो 36दिनों में आकर वापस लौट जाएगा।
यदि प्रश्रलग्न चर राशि में हो तथा चौथे भाव में बृहस्पति, बुध और शुक्र हों तो चाहे किसी भी कारण व्यक्ति घर से बाहर गया हो और चाहे कितनी ही दूर गया हो, वह तुरन्त ही वापस आ जाएगा।
यदि कोई बच्चा घर से बिना सूचना दिए चला गया है तथा इस बारे में बच्चे का अभिभावक ज्योतिषी के पास आकर उसके बारे में पूछे तथा ज्योतिषी अगर यह पाए कि चन्द्रमा चौथे भाव में चर राशि में स्थित हैं या चर नवांश में स्थित हंै तो ज्योतिषी को कहना चाहिए कि आप घर जाइये या तो बच्चा आ गया होगा या आने ही वाला होगा। यदि चौथे भाव का स्वामी शुभ ग्रहों से युत हो या शुभ दृष्ट हो तो भी यही परिणाम होंगे। यदि अन्य ग्रह स्थितियाँ अनुकूल हों तथा चौथा भाव पाप ग्रह से पीडित ना हो तो चन्द्रमा जितने दिन में चौथे भाव पर पहुँचेंगे उतने ही दिन में घर से गया हुआ जातक वापस लौट आएगा।
लग्न से लेकर तीसरे भाव तक सभी भावों में ग्रह हों तो घर में मेहमान आने वाला है। यदि केवल शुभ ग्रह हों तो गया हुआ व्यक्ति ही वापस आता है तथा किसी खोई हुई वस्तु की प्राप्ति हो सकती है। यह काम लग्न लगायत तीसरे भाव में स्थित बृहस्पति अकेले भी करा लेते हैं।
2, 3, 8, 9 घरों में प्रश्न लग्रेश स्थित हो तो यात्रारत व्यक्ति बीच मार्ग में ही है। परन्तु यदि चर लग्न हो और उसका स्वामी शुभ ग्रहों से युति करता हो और शुभ ग्रहों से दृष्ट हो और उन पर पाप प्रभाव नहीं हो तो यात्री अभी स्थान से नहीं चला है। यदि प्रश्न लग्र में स्थिर राशि हो तो भी नहीं चला है। यदि द्विस्वभाव लग्न के स्वामी शुभ ग्रहों से दृष्ट या युत हो तो भी पथिक अभी नहीं चला है परन्तु यदि पाप ग्रहों की दृष्टि हो तो चल दिया है।
इस योग की काट एक अन्य योग से हो जाती है। यदि विषम लग्न हो और शुभ ग्रह से दृष्ट हो तो प्रश्न की सिद्धि के योग है। इस समय प्रश्न का महत्त्व अधिक है। यदि प्रश्न आने से सम्बन्धित है तो जवाब हाँ में है और यदि पृच्छक नहीं चाहता कि पथिक नहीं चले तो भी जवाब हाँ में है। प्रश्न में गर्हित उद्देश्य ही महत्त्वपूर्ण है।
यदि प्रश्न लग्न में बारहवें या सातवें लग्न में क्रूर ग्रह हों तो पथिक कष्ट में हो तो सकता है परन्तु मृत्यु भय नहीं होता। परन्तु यदि प्रश्न लग्न में, सातवें में या आठवें में पाप ग्रह हों तो जीवन के प्रति संदेह व्यक्ति करना चाहिए। यदि चन्द्रमा पापकर्तरी में हों तो भी मृत्यु हो जाने का संदेह करना चाहिए। चन्द्रमा यदि चतुर्थ से अष्टम तक स्थित हों और वक्री ग्रह के साथ इत्थशाल योग करते हों तो घर से दूर स्थित मनुष्य की मृत्यु की सम्भावना होती है इसी तरह से शुभ ग्रह निर्बल हों तथा 6, 8, 12 में स्थित हों तथा पाप दृष्ट हों या सूर्य चन्द्रमा लग्न में स्थित हों तो मृत्यु भय होता है। सूर्य-चन्द्र लग्न में होने का मतलब छठे-सातवें-आठवें भाव में ग्रहों के वक्री होने की सम्भावना बढ़ जाती है। यदि 6, 8, 12 भाव में बैठे ग्रहों को शुभ ग्रह देखते हों तो मृत्यु के टल जाने की संभावना होती है। पृष्ठोदय लग्न हो, चाहे त्रिकोण हो इनमें यदि पाप ग्रह हों तो जीवन सम्बन्धी प्रश्न खड़ा हो जाता है। सूर्य यदि नवम स्थान में हों तो प्रवासी व्यक्ति के स्वास्थ्य सम्बन्धी चिन्ता रहती है।
आर्थिक लाभ से सम्बन्धित प्रश्न -
लग्न, द्वितीय, पंचम या नवम में चन्द्रमा उच्च राशि का हो तो प्रश्न करने वाले व्यक्ति को शीघ्र ही आर्थिक लाभ कराता है। प्रश्न लग्न में चन्द्रमा पूर्ण हों, अपनी उच्च राशि में हों, उन पर पाप दृष्टि ना हों तथा केवल शुभ ग्रहों से दृष्ट हों तो आर्थिक लाभ कराते हैं। यदि चन्द्रमा से ग्यारहवें बृहस्पति व शुक्र बलवान हों या ग्यारहवें भाव में बैठे चन्द्रमा को देखते हैं तो धन लाभ कराते हैं। केन्द्र त्रिकोण में स्थित शुभ ग्रह भी धन लाभ कराते हैं। परन्तु इन्हीं भावों में स्थित पाप ग्रह उस धन की हानि करा लेते हैं जो अनुचित हो या अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर हो। नवम भाव पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो या उसमें शुभ ग्रह हों या नवम भाव के स्वामी नवम भाव को देखें तो भी जिस वस्तु की चिन्ता हो रही हो उसका लाभ कराते हैं। लाभ भाव के स्वामी कहीं भी स्थित हो, शुभ ग्रह से देखे जाएं या लग्नेश के साथ इत्थशाल योग करते हों तो सरकार से धन लाभ तथा किसी ओर से भी धन, मान इत्यादि की प्राप्ति होती है। लाभेश जिस भाव में स्थित होंगे, उसी भाव के वर्ग से धन या मान की प्राप्ति होती है। इत्थशाल योग ताजिक ज्योतिष का एक महत्त्वपूर्ण तथ्य है। लाभ के स्वामी यदि 6, 8, 12 में हों और पाप ग्रह से युत दृष्ट हों तो धन हानि करा देते हैं। धन या लाभ के स्वामी यदि लग्नेश के साथ स्थित हों या परस्पर सम्बन्ध करते हों तो आर्थिक लाभ कराते हैं।
प्रश्न लग्न में राज्य से लाभ -
प्रश्र लग्न में त्रिकोण में शुभं ग्रह बलवान हों तो राज्य से लाभ होता है। दशमेश व लग्नेश लग्न या दशम में स्थित हों तो राज्य से लाभ प्राप्त होता है। उच्च राशि के बृृहस्पति बलवान हों और बलवान चंद्रमा से युत या दृष्ट हो तो भ्रमण करने से राज्य लाभ होता है। चंद्रमा बलवान हों और प्रश्न लग्न में दशमेश दशम भाव को देखें तो राज्य से लाभ होगा। लग्नेश जिस राशि में स्थित हो आौर उसे शुभ ग्रह देखें तो राज्य से लाभ प्राप्त होगा। मीन लग्न में बुध, बृहस्पति और शुक्र स्थित हों तो राज्य से बड़ा लाभ होता है। इसी प्रकार राशियों में शुक्र, चंद्रमा व बुध स्थित हों और बृहस्पति प्रश्न लग्न से केन्द्र में हों तो राज्य से लाभ होगा।
मुकदमे में विजय -
सूर्य ग्यारहवें भाव में, मंगल दसवें, शनि तीसरे, चंद्रमा छठे भाव में तथा शेष ग्रह लग्न में हों तो विवाद में विजय होगी। प्रश्न लग्न में मंगल तथा शनि हों, बृहस्पति पांचवें, ग्याहरवें बुध और दशम भाव में सूर्य, शुक्र हों तो मुकदमे में विजय होगी। एक अन्य योग में ग्यारहवें भाव में मंगल, सूर्य और राहु हों तथा शुक्र व बुध दसवें भाव में हों तो शत्रु पर विजय प्राप्त होगी। पाप ग्रह दसवें व ग्यारहवें भाव में, बृहस्पति व शुक्र लग्न में हों तो विजय प्राप्त होती है। इसी प्रकार बृहस्पति, शुक्र लग्न में हों, सूर्य चर राशि में, मंगल व शनि छठे भाव में तथा बुध व शुक्र बारहवें भाव में होंं तो विजय प्राप्त होती है। एक अन्य योग में लग्न में बृहस्पति, ग्यारहवें में सूर्य, दसवें में बुध व शुक्र, तीसरे में शनि व चतुर्थ भाव में चंद्रमा हों तो विजय प्राप्त होती है।
मुकदमे या विवाद में हार हो सकती है यदि लग्न में शनि व चंद्र, मंगल से दृष्ट हो। इसी प्रकार प्रश्र लग्न में सूर्य व शनि, मंगल आठवें हों तो मुकदमे या विवाद में हार होती है। प्रश्र लग्न से सातवें चंद्र, लग्न में सूर्य, शनि, मंगल आठवें तथा शुक्र तीसरे हों तो पराजय होती है। यदि चर लग्न हो और द्विस्वभाव राशि में चंद्रमा हों तो विवाद घर तक आ पहुंचता है, पराजय की सम्भावना होती है। प्रश्र लग्न में पाप ग्रह हों और प्रश्रकर्ता साथ में हो तो शत्रु की विजय होती है। एक अन्य योग में प्रश्न लग्न से दशमेश शनि बलवान हों, केन्द्र में हों और मंगल से दृष्ट हों मुकदमे में अन्याय झेलना पड़ता है। यदि प्रश्र लग्न से दशम में मंगल, बृहस्पति व शुक्र हों तो धर्मपूर्ण न्याय होगा। यदि बुध दशम हों तो मिला-जुला न्याय होता है।
रोग से संबंधी प्रश्न -
प्रश्र लग्न का विशेषण जन्म लग्न से थोड़ा सा अलग होता है। इसमें पहला घर वैद्य या डॉक्टर का, दसवां घर रोगी, चौथा घर औषधि तथा छठा घर रोग का होता है। इनमें से कोई भी ग्रह बैठे हों, पाप युक्त चं्रदमा 4,8,12 तथा 2, 7,12 में पाप ग्रह हों तो प्रश्न रोगी की मृत्यु होती है। प्रश्न लग्न में पाप ग्रह हों तो वैद्य उच्चकोटि का नहीं होता और रोगी के कष्ट में वृद्धि होती है।
प्रश्र लग्न में शुभ ग्रह हो तो रोग की निवृत्ति जल्दी होती है। यदि प्रश्र लग्न से चतुर्थ भाव में पाप ग्रह हों तो डॉक्टर की दवा से रोग बढ़ जाता है। यदि चौथे घर में शुभ ग्रह हों तो डॉक्टर की दवा से रोगी जल्दी ठीक हो जाता है। यदि सातवें में पाप ग्रह हों तो दवाइयों के कारण एक रोग तो ठीक हो जायेगा परंतु दूसरा रोग उत्पन्न हो जायेगा।
प्रश्र लग्न से दशम भाव में पाप ग्रह हों तो रोग में वृद्धि हो जाती है, क्योंकि रोगी खान-पान का ध्यान नहीं रखता। चंद्रमा शुभ ग्रहों से दृष्ट हों तथा केन्द्र में बैठे हों और लग्नेश से इत्यशाल योग बनाये तो रोग जल्दी ठीक हो जाता है। चंद्रमा केवल शुभ ग्रहों से देखें जांए या उनके साथ हों तथा सप्तमेश या अष्टमेश वक्री तो हों परंतु उनके साथ सूर्य न हों तो रोग जल्दी ठीक हो जाता है। प्रश्न लग्र में केन्द्र में बलवान ग्रह हमेशा ही रोगी को ठीक करने में सहायक होते हैं। सारे ही पाप ग्रह 1, 4, 5, 8,12 में हों तो आयु में कमी करते हैं। प्रश्न लग्न से केन्द्र में स्थित पाप ग्रह रोगी का कष्ट बढ़ाते हैं। यदि लग्न, सप्तम और अष्टम में पाप ग्रह हों तथा शुभ ग्रह निर्बल हों तो रोगी के लिये शुभ नहीं होता। यदि चंद्रमा चौथे व आठवें हों और पापकर्तरि हों तो रोगी की मृत्यु हो सकती है। यदि प्रश्न लग्न में स्थित शनि को पाप ग्रह दृष्टिपात करें तो मृत्यु के संकेत हैं।
देवताओं से मिले हुये दोष -
यदि प्रश्र लग्न से बारहवें या आठवें सूर्य हों तो देवताओं से, आठवें चंद्रमा हों तो देवी से, बृहस्पति हों तो पितरों से, मंगल हों तो शाकिनी से, बुध हों तो कुल के ही भूतों से, शनि अपने ही गोत्र की देवी से। यदि केन्द्र में पाप ग्रह हों तो असाध्य बाधा होती है और यदि केन्द्र में शुभ ग्रह हों तो बाधा को मंत्रों के द्वारा दूर किया जा सकता है।

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