Thursday, May 1, 2014

तिथि : Tithi : By MS Neelima Dubey FB Pg ICAS NC


तिथियों का अर्थ - Meaning and uses of Tithis

तिथियों के बिना कोई भी मुहुर्त नहीं होता है. ज्योतिष में तिथियों का एक महत्वपूर्ण स्थान है. अलग-अलग तिथियों के अनुसार विभिन्न कार्य किए जाते हैं. सभी कार्यों का मुहुर्त तिथियों के अनुसार बाँटा गया है.
कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि | Pratipada Tithi Of Krishna Paksha
प्रतिपदा तिथि को "वृद्धिप्रद" मान गया है. इस तिथि में गृह निर्माण, गृह प्रवेश, सीमन्तोनयन संस्कार, चौलकर्म, वास्तुकर्म, विवाह, यात्रा, प्रतिष्ठा, शान्तिक तथा पौष्टिक कार्य आदि सभी मंगल कार्य किए जाते हैं. कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा में चन्द्रमा को बली माना गया है.
शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा में चन्द्रमा को निर्बल माना गया है. इसलिए शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा में विवाह, यात्रा, व्रत, प्रतिष्ठा, सीमन्त, चूडा़कर्म, वास्तुकर्म तथा गृहप्रवेश आदि कार्य नहीं करने चाहिए.
दोनों पक्षों की द्वित्तीया | Dwitiya Tithi of Both Pakshas
द्वितीया तिथि को "मंगलप्रद" माना गया है. विवाह मुहूर्त, यात्रा करना, आभूषण खरीदना, जिह्वा संबंधी कार्यों में, संगीत विद्या के लिए, शिलान्यास, देश अथवा राज्य संबंधी कार्य, कोश संबंधी कार्य, वास्तुकर्म, उपनयन आदि कार्य करना शुभ माना गया है. इस तिथि में तेल लगाना वर्जित है.
तृतीया तिथि | Tritiya Tithi
तृतीया तिथि को "बालप्रद" माना गया है. यह बल में वृद्धि करती है. सगीत विद्या, शिल्पकला अथवा शिल्प संबंधी अन्य कार्यों में, सीमन्तोनयन, चूडा़कर्म, अन्नप्राशन, गृह प्रवेश, विवाह, यात्रा, राज-संबंधी कार्य, उपनयन आदि शुभ कार्य इस तिथि में सम्पन्न किए जा सकते हैं.
चतुर्थी तिथि | Chaturthi Tithi
चतुर्थी तिथि को "खल" कहा गया है. इसे अशुभ माना गया है. सभी प्रकार के बिजली के कार्य, शत्रुओं का हटाने का कार्य, अग्नि संबंधी कार्य, शस्त्रों का प्रयोग करना आदि के लिए यह तिथि अच्छी मानी गई है. क्रूर प्रवृति के कार्यों के लिए यह तिथि अच्छी मानी गई है.
पंचमी तिथि | Panchami Tithi
पंचमी तिथि को "लक्ष्मीप्रद" कहा गया है. यह धन-धान्य देने वाली तिथि है. इस तिथि में कोई भी शुभ कार्य किया जा सकता है. सभी प्रवृतियों के लिए यह तिथि उपयुक्त मानी गई है. इस तिथि में किसी को ऋण देना वर्जित माना गया है. यदि किसी को ऋण दे दिया तो नुकसान होगा, ऋण वापिस नहीं मिलेगा. इस तिथि में द्वितीया तथा तृतीया तिथि में बताए गए सभी कार्य किए जा सकते हैं.
षष्ठी तिथि | Shashti Tithi
षष्ठी तिथि को "यशप्रद" माना गया है. यह व्यक्ति को यश देने वाली होती है. इस तिथि में युद्ध में उपयोग में लाए जाने वाले शिल्प कार्यों का आरम्भ, वास्तुकर्म, गृहारम्भ, नवीन वस्त्र पहनने जैसे शुभ कार्य किए जा सकते हैं. इस तिथि में तैलाभ्यंग, अभ्यंग, पितृकर्म, दातुन, आवागमन, काष्ठकर्म आदि कार्य वर्जित हैं.
सप्तमी तिथि | Saptami Tithi
सप्तमी तिथि को "मित्र" माना गया है. इस तिथि में विवाह मुहुर्त, संगीत संबंधी कार्य, आभूषणों का निर्माण और नवीन आभूषणों को धारण किया जा सकता है. यात्रा, वधु-प्रवेश, गृह-प्रवेश, राज्य संबंधी कार्य, वास्तुकर्म, चूडा़कर्म, अन्नप्राशन, उपनयन संस्कार, आदि सभी शुभ कार्य किए जा सकते हैं. इसके अतिरिक्त द्वितीया, तृतीया तथ पंचमी तिथि में बताए गए कार्य भी किए जा सकते हैं.
अष्टमी तिथि | Ashtami Tithi
अष्टमी तिथि को "द्वंद्व" नाम दिया गया है. यह मतभेद पैदा करती है. इस तिथि में लेखन कार्य, युद्ध में उपयोग आने वाले कार्य, वास्तुकार्य, शिल्प संबंधी कार्य, रत्नों से संबंधित कार्य, आमोद-प्रमोद से जुडे़ कार्य, अस्त्र-शस्त्र धारण करने वाले कार्यों का आरम्भ किया जा सकता है. इस तिथि में मांस सेवन नहीं करना चाहिए.
नवमी तिथि | Navami Tithi
नवमी तिथि को "उग्र" कहा गया है. इसे आक्रामक स्वभाव वाली माना गया है. इस तिथि में शिकार करने का आरम्भ करना, झगडा़ करना, जुआ खेलना, शस्त्र निर्माण करना, मद्यपान तथा निर्माण कार्य तथा सभी प्रकार के क्रूर कर्म किए जाते हैं. चतुर्थी तिथि में किए जाने वाले कार्य भी इस तिथि में किए जा सकते हैं.
दशमी तिथि | Dasami Tithi
दशमी तिथि को "सौम्य" तिथि कहा गया है. इस तिथि में राजकार्य अर्थात वर्तमान समय में सरकार से संबंधी कार्यों का आरम्भ किया जा सकता है. हाथी, घोड़ों से संबंधित कार्य, विवाह, संगीत, वस्त्र, आभूषण, यात्रा आदि की जा सकती है. गृह-प्रवेश, वधु-प्रवेश, शिल्प, अन्न प्राशन, चूडा़कर्म, उपनयन संस्कार आदि कार्य इस तिथि में किए जा सकते हैं. इस तिथि में द्वित्तीया, तृतीया, पंचमी तथा सप्तमी को किए जाने वाले कार्य किए जा सकते हैं.
एकादशी तिथि | Ekadashi Tithi
एकादशी तिथि को "आनन्दप्रद" कहा गया है. इस तिथि में व्रत, सभी प्रकार के धार्मिक कार्य, देवताओं का उत्सव, सभी प्रकार के उद्यापन, वास्तुकर्म, युद्ध से जुडे़ कर्म, शिल्प, यज्ञोपवीत, गृह आरम्भ करना, यात्रा संबंधी शुभ कार्य किए जा सकते हैं.
द्वादशी तिथि | Dwadashi Tithi
द्वादशी तिथि को "यशप्रद" कहा गया है. इस तिथि में विवाह, गाडी़, मार्ग में होने वाले कार्य, पोषण तथा अन्य शुभ कर्म किए जा सकते हैं. इस तिथि में तैलमर्दन, नए घर का निर्माण करना तथा नए घर में प्रवेश तथा यात्रा का त्याग करना चाहिए.
शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि | Trayodashi Tithi of Shukla Paksha
त्रयोदशी तिथि को "जयाप्रद" कहा गया है. यह तिथि जीत दिलाती है.
संग्राम से जुडे़ कार्य, सेना के उपयोगी अस्त्र-शस्त्र, ध्वज, पताका के निर्माण संबंधी कार्य, राज-संबंधी कार्य, वास्तु कार्य, संगीत विद्या से जुडे़ काम इस दिन किए जा सकते हैं. इस दिन सभी तरह के मंगल कार्य किए जा सकते हैं. इस दिन यात्रा, गृह प्रवेश, नवीन वस्त्राभूषण तथा यज्ञोपवीत जैसे शुभ कार्यों का त्याग करना चाहिए. द्वितीया, तृतीया, पंचमी, सप्तमी तथा द्वादशी के दिन किए जाने वाले कार्य इस तिथि में किए जा सकते हैं.
चतुर्दशी तिथि | Chaturdashi Tithi
चतुर्दशी तिथि को "उग्र" कहा गया है. इस तिथि में सभी प्रकार के क्रूर तथा उग्र कर्म किए जा सकते हैं. शस्त्र आदि का प्रयोग किया जा सकता है. इस तिथि में यात्रा करना वर्जित है. चतुर्थी तिथि में किए जाने वाले कार्य किए जा सकते हैं.
पूर्णमासी | Purnima Tithi
पूर्णिमा तिथि को "सौम्य" कहा गया है. इस तिथि में शिल्प, आभूषणों से संबंधित कार्य किए जा सकते हैं. संग्राम, विवाह, यज्ञ, जलाशय, यात्रा, शांति तथा पोषण करने वाले सभी मंगल कार्य किए जा सकते हैं.
अमावस्या | Amavasya
अमावस्या तिथि को "पूर्वजों" के लिए महत्वपूर्ण माना गया है. इसे पितृ तिथि भी कह सकते हैं. इस तिथि में पितृकर्म मुख्य रुप से किए जाते हैं. महादान तथा उग्र कर्म किए जा सकते हैं. इस तिथि में शुभ कर्म तथा स्त्री का संग नहीं करना चाहिए.

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