Friday, December 11, 2015

समझी बुझी मेरी भोगी ! निवेदक भोला नाथ शुक्ल

निभाना पड़ता है सभी को ! फर्क है मगर 
मजबूरी से या मजदूरी से ?
माना किसी को, सुहाना किसी को 
भुलाना किसी को, बुलाना किसी को !
फर्क है मगर ! समझदारी से या गुनहगारी से !!
आप आप है सामने रस्सी है या सांप है ?
फर्क है मगर ! पहचानना पड़ता है सभी को ???

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