Wednesday, November 4, 2020


साभार 

पं. सतीश शर्मा,  एस्ट्रो साइंस एडिटर, नेशनल दुनिया :


 छ: धायमाताएं हैं कृत्तिका, इसलिए नाम पड़ा कार्तिक


मां पार्वती के पुत्र स्कंद को छ: धायमाता कृत्तिकाओं ने

 दूध पिलाया। कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा को चंद्रमा कृत्तिका में रहेंगे, इसलिए महीने का नाम कार्तिक पड़ा और देवसेनापति स्कंद का नाम कार्तिकेय पड़ा। कार्तिक के महीने का मतलब, विष्णु भगवान जागने वाले हैं। वो आषाढ़ शुक्ला एकादशी से शयन में चले गये थे। क्षीर सागर में निवास करते हैं। कुछ का मत है कि मत्स्य अवतार वाली स्थिति में आ जाते हैं। ये चार महीने अत्यधिक महत्त्वपूर्ण हैं। इस समय साधु-संत भ्रमण बंद कर दते है। चातुर्मास में चले जाते हैं और जिस एक ही स्थान या ग्राम में प्रवेश करते हैं वहीं रहकर अपना धर्म और प्रवचन जैसा कार्य निष्पादित करते हैं। अगले चार महीने वे कहीं अयंत्र नहीं जाते। स्थानीय जनता उनका स्वागत करती है, उनकी आवभगत करती है, उनका इंतजामात् करती है और ये लोग अपने-अपने धर्म और संस्कृति का प्रचार करते हैं। आषाढ़ शुक्ला एकादशी के बाद श्रावण आता है, भादो महीना आता है। जब विष्णु भगवान शयन में चले जाते हैं तो भगवान शिव की पूजा-पाठ शुरू हो जाती है। वे सक्रिय हो जाते हैं। आप जानते हैं श्रावण कितना महत्त्वपूर्ण है। शिवजी के अनुष्ठान होते हैं। रुद्राभिषेक होते हैं, सहस्त्रघठ होते हैं। वर्षा ऋतु के मौसम में शिवजी को पूजा अधिक मिलती है। विष्णु भगवान नहीं है तो शिवजी प्रधान हो गये। तो यह क्रम चलता रहता है। जैसे ही आश्विन मास आता है, श्राद्ध पक्ष और बाद में देवी की पूजा प्रधान हो जाती है। हम जानते हैं कि आश्विन शुक्ला प्रतिपदा से आश्विन शुक्ला नवमी तक देवी की पूजा होती है। नवरात्रि स्थापना होती है। साथ ही साथ शारदीय नवरात्रों में भगवान राम की कथा प्रमुख होती है। हमें संकेत मिलने लगता है कि अब वैष्णव परम्परा के लोगों के दिन आने लग गए हैं। भगवान राम की विजय के उपलक्ष्य में जो आश्विन शुक्ला दशमी को दशहरा मनाया जाता है, ज्योतिष में गणना किये गये साढे तीन अबूझ मुहूत्र्तों मेें दशहरा भी एक है। लोग कई व्यवसाय उस दिन शुरू कर लेते हैं। अब शरद पूर्णिमा जैसे ही समाप्त होती है, कार्तिक मास शुरू हो गया। इसकी पराकाष्ठा कार्तिक शुक्ला पूर्णिमा को होगी परन्तु उससे पाँच दिन पहले आने वाली कार्तिक शुक्ला एकादशी अत्यंत महत्त्वपूर्ण हो जाती है। उसकी चर्चा हम करें, उससे पहले हम दीपावली पर आ जाते हैं। उस दिन सूर्य और चन्द्रमा दोनों नीच राशि में होते हैं। नहीं, बल्कि सूर्य नीच राशि में होते हैं और अमावस्या के कारण चन्द्रमा अस्त होते हैं वो नीच राशि में नहीं होते बल्कि उससे पहले वाली राशि तुला में होते हैं। उसके बाद अगली राशि में भी वो जाएंगे। जब चन्द्रमा और सूर्य दोनों अपनी-अपनी नीच राशि में होंगे। इसको ध्यान में रखकर दीपावली के प्रमुख पाँच त्यौहार गढ़े गये। दीपावली के पहले से शुरू होकर और दीपावली के बाद तक। तो इसके बाद क्या होता है? एकादशी आती है। कार्तिक शुक्ला एकादशी। तुलसी का महत्त्व यद्यपि सम्पूर्ण कार्तिक मास में बताया गया है। विष्णु प्रिया हैं तुलसी। किसी शाप के कारण तुलसी या जालंधर या शंखचूड़  को जन्म लेना पड़ा था और उसका उद्धार भगवान शिव और विष्णु ने मिलकर किया था, परन्तु चूंकि विष्णु प्रिया हंै, विष्णु को ही प्राप्त हुईं। कार्तिक शुक्ला एकादशी के दिन तुलसी और शालिग्राम का विवाह किया जाता है। शालिग्राम विष्णु स्वरूप ही हैं और तुलसी के ही शापवश वे पत्थर स्वरूप बन गए। तुलसी को भी कई शाप मिले और वह वृन्दा या तुलसी दल के रूप में बदल गयीं। वैष्णव ग्रन्थों में उन्हें पति-पत्नी माना गया है। गर्ग संहिता इसका बड़ा प्रमाण है जो कृष्ण के गुरु गर्गाचार्य द्वारा रचित है। पौराणिक धारणाओं के अनुसार कार्तिक मास की प्रतिपदा से लेकर पूर्णिमा तक तुलसी की पूजा की जाती है। अधिक महत्त्व एकादशी तक की पूजा का है। उसमें भोर में तारों की छाँव में, सूर्योदय से पहले स्नान करने की परम्परा है। उसके बाद तुलसी वृक्ष के पास बैठकर स्त्रियाँ पूजा करती हैं, शालिग्राम की पूजा करती हैं, भोग लगाती हैं और तब अपनी दिनचर्या शुरू करती हैं। 

भारत में उस दिन शाम को दीपावाली के समान ही दीपक जलाते हैं। देव जगने पर प्रसन्नता व्यक्त की जाती है, उनका स्वागत किया जाता है। विवाह के इच्छुक लोग न जाने कब से इंतजार कर रहे होंगे। शादी ब्याह नहीं हो रहे, मुहूत्र्त नहीं निकल रहे। कार्तिक शुक्ला एकादशी चातुमार्स के बाद का पहला दिन है, तब से ज्योतिष और वास्तु के गंभीर मुहूत्र्त शुरु होते हैं। इसे भी अबूझ सावों में माना गया है। इसलिए सबसे ज्यादा विवाह इसी दिन सम्पन्न होते हैं। यद्यपि यह पूरी तरह शास्त्र सम्मत नहीं है कि और ग्रह-गोचर का ध्यान रखे बिना मुहूत्र्त गढ़ दिये जाएं, विवाह कर दिये जाएं। परन्तु लोग कर रहे हैं। जो लोग पूरे कार्तिक मास कार्तिक व्रत यानि एक महीने का व्रत या सुबह की पूजा सम्पन्न नहीं कर सकें, वृद्धावस्था के कारण, बीमारी के कारण, आस्था की कमी के कारण या पुरुष यह समझ लें कि ये सब कुछ स्त्रियाँ ही करती हैं, तो उनके लिए एक विधान है कि दोनों पति-पत्नी कार्तिक शुक्ला एकादशी से कार्तिक शुक्ला पूर्णिमा तक व्रत कर लें। यानि दोनों पति -पत्नी सुबह उठें और घर के आसपास जल हो या नदी हो या तालाब हो तो वहाँ श्रेष्ठ है नहीं तो घर में स्नान करें, पूजन करें, तुलसी का पूजन करें, शालिग्राम का पूजन करें। पद्म पुराण में वर्णन है कि जो तुलसी और शालिग्राम को अलग करता है वह नरक को प्राप्त करता है। शालिग्राम इतने महत्त्वपूर्ण हैं कि वे विष्णु स्वरूप है। पूर्णिमा तक यह सब किया जाता है। पौराणिक कथानक है कि इससे राज्य प्राप्त होता हे। सम्पन्नता प्राप्त होती है, अनिष्ट समाप्त होते हैं, पाप नष्ट होते हैं। 

कार्तिक मास का समापन अति महत्त्वपूर्ण घटनाओं के साथ होता है, क्योंकि एकादशी के बाद मुहूत्र्त खुल जाते हैं, शादी-ब्याह, फसल काटने की तैयारी, खर्चे, नई फसल के आगमन की तैयारी, कैश क्रॉप, कैश क्रॉप बड़ी फसलों के लिए लगते हैं, बड़ी क्रापॅप के लिए थोड़ी इंतजारी रहती है और बाजार में पैसा आता है, जेवर खरीदे जाते हैं, कपड़े खरीदे जाते हैं, ब्याह-शादी होते हैं, दूध वाले और सब्जि वालों की मौज हो जाती है। घर में साफ-सफाई दीवाली से पहले ही हो जाती है। कृमियों का नाश हो चुका होता है। घर सजते हैं। मौहल्ले में सफाई होती है। दीपावली की धुँआ के बाद जो कीट-पंतगों का नाश हो जाता है तो वातावरण शुद्ध हो जाता है और इस तरह से भारतीय जीवन में एक सार्वजनिक उल्लास की स्थिति बनी रहती है। लोग प्रसन्न हो जाते हैं और मंगल कार्य करते हैं। कार्तिक मास का खगोलीय महत्त्व भी कम नहीं है। जब सूर्य वर्ष प्रवेश करते हैं तो मेष राशि में होते हैं। विष्णुवत रेखा के प्रथम बिन्दु पर। शरद पूर्णिमा तक वो ठीक सात राशियाँ पार करके शरद सम्पात के प्रथम बिन्दु पर आ जाते हैं, जहाँ से सूर्य अब दक्षिण गोल में प्रवेश करेंगे। दक्षिणायन में नहीं होंगे परन्तु दक्षिण गोल में प्रवेश कर जाएंगे। उत्तरी गोलाद्र्ध से दक्षिणी गोलाद्र्ध में आ जाएंगे। भारत से दूर हो जाएंगे तो यहाँ सर्दियाँ शुरु हो जाएंगी। इसीलिए शरद ऋतु का आगमन हो गया है। अगले तीन महीने तक यानि मकर सक्रांति तक सूर्य के उत्तरायण प्रवेश से पहले यानि दक्षिण गोल में रहते हुए ही वो उत्तर की ओर मुँह करके चलने लगते हैं। तो इसलिए शरद पूर्णिमा से लेकर मकर संक्रांति के दिनल तक दक्षिण गोल में रहते हुए सूर्य मकर सक्रांति तक ये स्थित रहेंगे और लगातार सर्दी बढ़ती रहेगी। जैसे ही मकर संक्रांति आएगी दिन बड़े होने शुरु हो जाएंगे। सर्दियाँ कम होनी शुरु हो जाएंगी और उस भाग में जहाँ वो मौजूद हैं, जिन देशों के ऊपर हैं वहाँ गर्मी और बरसात के मौसम चलते रहेंगे। हम जानते हैं कि सूर्य जब मेष राशि में आते हैं, विषुवत वृत के ऊपर होते हैं, श्रीलंका के ऊपर होते हैं, और धीरे-धीरे जब भारत की ओर बढ़ते हैं तो समुद्र का जल वाष्प भारत भूमि पर आता है और बरसात लाता है। इसकी पराकाष्ठा जब होती है जब सूर्य कर्क राशि में होते हैं और ग्रीष्म सम्पात होता है। गर्मियों के बाद तक सूर्य आगे - आगे चलते हैं पीछे-पीछे चूंकि वायुमण्डल हल्का होकर ऊपर की ओर उठता है और उसका स्थान लेने के लिए समुद्र में पानी लेकर भारी हवाएँ आती हैं और बरसात करती हैं। शरद सम्पात तो क्लोजर ही है एक तरीके से कि अब बरसात नहीं होगी। परन्तु उससे पहले ही अगस्त्य तारे का उदय होते ही बरसात बंद हो जाती है। तुलसी दास जी ने लिखा है कि अगस्त ऋषि पानी को सोख लेते हैं। दरसअल यह खगोलीय धारणा है जिन्हें शास्त्रों में स्थान मिला है कि जैसे - जैसे अगस्त्य तारा उदय हुआ बरसात होना बंद हो जाती है। परन्तु शरद पूर्णिमा इस बात का पूर्ण संकेत होती है कि अब बरसात होने का कोई चांस हीं नहीं है। अगर मौसम लेट भी हो जाएंगा या महीना आगे-पीछे भी हो जाए तो अब सर्दी ही पड़ेगी अब बरसात नहीं होगी। केवल एक बार पुरवइया बरसेगी। इन खगोलीय कारणों के आधार पर ही ऋषियों ने बरसात की गणनाएँ की हैं। भारत में कुल मिलाकर छह ऋतुओं की गणना की है। कार्तिक मास को अत्यंत पवित्र और सर्वश्रेष्ठ मासों में माना गया हैं क्यों कि भगवान विष्णु, भगवान राम, भगवान कृष्ण और तुलसी को समर्पित है। वैष्णव परम्पराओं को समर्पित है। तो हम यह भी देखेंगे कि इस महीने सूर्य की स्थिति के कारण भारत भूमि पर रहने वाले मनुष्य को सर्वश्रेष्ठ खानपान, सर्वश्रेष्ठ शाक-सब्जियाँ, सर्वश्रेष्ठ मौसम, सर्वश्रेष्ठ ऊर्जा के घण्टे और मांगलिक कार्य करने के अवसर मिलते हैं, इसलिए हम इसका स्वागत करते हैं। कार्तिक मास के आगमन के साथ ही खुशियों का एक नया दौर शुरु हो जाएगा और हम यह मानकर चलते हैं कि कार्तिक मास की ग्रह स्थितियों के कारण कोरोना से सम्बन्धित मामलों में भी कई सरकारों को कुछ न कुछ सफलताएँ जरूर मिलेंगी।


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