Sunday, July 25, 2021

 Bhola Nath Shukla


पावन विद्या ज्योतिष पर एक विचार :


क्या और क्यों कदाचित ज्योतिषी को निन्दनीय कहने लगे है कुछ तथाकथित बुद्धजीवी ?

हर ज्ञान या शक्ति का दुरुपयोग किया जा सकता है और होता भी है 

पर मूलतः उसके अच्छे उपयोग या उद्देश्य को ध्यान में रख कर ही शास्त्र वचन लिखे गए जिससे आगामी पीढ़ियां लाभान्वित हों और इन्ही कारणों से शास्त्रों का अध्ययन किया जाता है । 

इसी उद्देश्य से ज्योतिष शास्त्र को विशिष्ट स्थान प्रदत्त हुआ था ।।


जिस प्रकार से शासन में सत्ता का दुरुपयोग रोकने के लिए संविधान तथा कानून बने हैं परन्तु कदाचित उनसे निर्दोष लोगों को भी तंग होने के उदाहरण मिलते हैं ।


कविता का भी समाज को प्रेरणा देने में उपयोग रहा है । यदि इससे चाटुकारिता के साधन मात्र से हित चिंतन का माध्यम बनाया जाय, तो वह निन्दनीय कृत्य की श्रेणी में होगा ।।

स्रष्टा रूप ब्रह्म को भी *'कवि'* कहा गया है। 

किन्तु कविता द्वारा किसी की चाटुकारिता करने पर उसे कवि की संज्ञा से हटा कर चारण या भांट की संज्ञा दी गई ।


उसी श्रेणी में ज्योतिष के नियम अनुपालन में यदि लिप्सा, प्रमाद, लोभ आदि दुर्भावना से प्रयुक्त किया तो निःसंदेह ऐसा करने पर ज्योतिषी दोषी होगा, और उसे अप्रत्यक्ष इसके फल भोगने पड़ेंगे यह निर्विवाद है, तभी नक्षत्र सूचक शब्द को शास्त्रों में उल्लेखित किया गया है ।


 *रामचरितमानस, बालकाण्ड* में लिखा है –


कीन्हे प्राकृत जन गुणगाना। सिर धुनि गिरा लगत पछिताना॥


सरस्वती भी पछताती हैं कि ऐसे लोगों को बुद्धि क्यों दी जो लौकिक मनुष्यों का गुणगान करते हैं।


श्रीपति के *सिद्धान्त शेखर* (१/७) की टीका में कहा है –

नक्षत्रसूचको वैद्यो द्वौ तौ नरकगामिनौ।

तथा-चित्रकृत् काव्यकर्त्ता च वैद्यो नक्षत्रपाठकः।

चत्वारो नरकं यान्ति यावच्चन्द्रदिवाकरौ॥


अर्थात् कर्म च्युत (सिद्धांत विहीन) चित्रकार, कवि, वैद्य तथा ज्योतिषी ( नक्षत्र सूचक) - ये चार तब तक नर्क में रहते हैं जब तक चन्द्र-सूर्य हैं 

अन्यत्र उल्लेख मिलता है ।।

अविदित्वैव यच्छास्त्रं दैवज्ञत्वं प्रपद्यते।

स पंक्तिदूषकः पापो ज्ञेयः नक्षत्र सूचकः॥

अर्थात् जो बिना शास्त्र जाने अपने को *'दैवज्ञ'* दिखाता है, वह पंक्तिदूषक तथा पापी है, उसे *नक्षत्रसूचक* कहते हैं।


न संवत्सर पाठाच्च नरकेषूपपद्यते।

ब्रह्मलोक प्रतिष्ठां च लभते दैवचिन्तकः॥

ग्रन्थतथ्यार्थतश्चैव कृत्स्नं जानाति यो द्विजः।

अग्रभुक् च भवेच्छ्राद्धे पूजितः पंक्तिपावनः॥


अर्थात् जो ग्रन्थ का तथ्य तथा अर्थ पूरी तरह जानता है वह पंक्तिपावन है तथा श्राद्ध में उसकी अग्रपूजा होती है।


ज्योतिष कर्म के दोष पर अन्यत्र उल्लेख मिलता है


गणिका गणकश्चैव स्व पञ्चाङ्ग प्रदर्शिनौ।

ददाति गणिका किञ्चित् गणको हरते सदा॥

= गणिका (वेश्या) तथा गणक (ज्योतिषी) – दोनों अपना पञ्चाङ्ग दिखाते हैं। गणिका कुछ देती भी है, किन्तु गणक सदा हरण करता है। 


वृहत् संहिता* (२/३२)-

अविदित्यै वयः शास्त्रं दैवज्ञत्वं प्रपद्यते।

स पङ्क्तिदूषकः पापो ज्ञेयो नक्षत्रसूचकः॥


सिद्धान्त दर्पण* (१५/६८)

नृणां पापं दशदिनकृतं हन्ति सिद्धान्तवेत्ता,/दृष्टः सद्यः त्रिदिन जनितं तन्त्रवेत्ता निहन्ति।

एकाहोत्थं करणनिपुणो यस्तु शास्त्रानभिज्ञः, कालं वृत्ते बहुवृजिनदः सोऽत्र नक्षत्रसूची॥


अर्थात् *सिद्धान्त ज्योतिष* जाननेवाले के दर्शन से मनुष्य का पिछले १० दिन का किया पाप नष्ट हो जाता है। तन्त्र ग्रन्थ* के ज्ञाता के दर्शन से तीन दिन का तथा *करण* ज्ञाता के दर्शन से १ दिन का पाप नष्ट होता है। किन्तु बिना शास्त्र जाने जो काल के बारे में बता कर अपना प्रचार करता है, वह *'नक्षत्र-सूची'* है।


टिप्पणी –

सिद्धान्त ज्योतिष – सृष्टि आरम्भ से गणना, सृष्टि विज्ञान, वेध, ग्रहण आदि लक्षण 

तन्त्र ग्रन्थ – कलि आरम्भ से गणना, वेध।

करण ग्रन्थ – किसी निकट काल से गणना (ready reckoner)

बहु वृजि नदः – अपने ज्ञान का ढोल पीटनेवाला, मिथ्या विज्ञापन।

नक्षत्र का अर्थ विहग या विहंग भी है – आकाश में गमन करने वाला। यह पक्षी या तारा को कहा जाता है। 

नक्षत्र-सूची को भोजपुरी में *बहेंगवा (विहंगम) के टाटी (गट्ठर, सूची)* कहते हैं जिसका अर्थ *'मूर्ख'* है।


नक्षत्र को *'भ'* कहते हैं। *'भकुआ', 'भकोल'* आदि शब्द पूर्व भारत, काशी में मूर्ख के लिये प्रयुक्त हैं। इसका एक कारण तो मेलापक में *भकूट* का मिलन है। इसका अर्थ है, परस्पर के दोषों को देखकर *भकूट* – भकुआ बने रहेंगे। उस पर अधिक ध्यान देने से विवाह नहीं चल पायेगा। नक्षत्र को *'भेकुर'* या *'भाकुर'* कहा गया है –

तस्य नक्षत्राण्यप्सरसो भेकुरयो नाम* (वाजसनेयी १८/४०, काण्व संहिता, १८/१४, मैत्रायणी संहिता, २/१२/२, तैत्तिरीय संहिता, ३/४/७/१)

नक्षत्रों में अप्सरा या हूर खोजनेवाला मूर्ख है!

भाकुरयो ह नामैते भाँ हि नक्षत्राणि कुर्वन्ति।* (शतपथ ब्राह्मण, ९/४/१/९) 


कृपया अन्यथा ग्रहण न करें, वर्तमान में उपस्थित घटना क्रमो और औहेलना, अनर्गल प्रलापों को संज्ञान में रखते हुए उपरोक्त विचार को पढ़े ।।

Dated 23rd July 2021

Ghaziabad

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