Wednesday, October 6, 2021

गुरु का आरोहण

 

 गुरु का आरोही क्रम

पं.सतीश शर्मा,

 

                बृहस्पति 6 सालों से अपने अवरोही क्रम में थे अर्थात् अपनी उच्च राशि से नीच राशि की ओर चल रहे थे। इस समय वे अपनी नीच राशि मकर में हैं, परन्तु 2014 में वे अपनी उच्च राशि में थे। मई 2014 में जब भारतीय जनता पार्टी सत्ता में आई तब बृहस्पति अपनी उच्च राशि में आने की तैयारी में थे और शानदार परिणाम देने की स्थिति में आ चुके थे। उस समय शनि वर्तमान सत्ता के प्रतिकूल थे तथा भारतीय जनता पार्टी और नरेन्द्र मोदी के लिए अनुकूल थे। मकर राशि ऐसी राशि है जिसके बाद बृहस्पति आरोही क्रम में आ जाएंगे और परिणामों की तीव्रता, गति और दिशा में परिवर्तन लाएंगे। 21 नवम्बर 2021 से बृहस्पति अंतिम रूप से अपने आरोही क्रम में प्रवेश कर जाएंगे तथा अगले 6 वर्ष तक अर्थात् पुनः अपनी उच्च राशि में पहुँचने तक देशकाल को बहुत अधिक प्रभावित करेंगे। एक तरह से हम कह सकते हैं कि जब बृहस्पति 2025 में मिथुन राशि से कर्क राशि में जाने की तैयारी में होंगे अर्थात् सितम्बर 2025 के आसपास तो पुनः देश के लिए एक क्रांतिकारी दौर लाने की तैयारी में होंगे।

                    बृहस्पति ज्योतिष के दृष्टिकोण से देवगुरु हैं, महामात्य हैं, बैंकर हैं, वित्त व्यवस्था के नियंत्रक हैं और संस्थाओं में एवं निजी जीवन में सदाचार के प्रेरक हैं, अतः अपनी उच्च राशि में आने के बाद अर्थात् 2025 के अंतिम त्रैमास में, देश में भारी परिवर्तन देखने को मिलेंगे। उस समय बृहस्पति और शनि एक-दूसरे से त्रिकोण में होंगे और पूरे राष्ट्र को ऐसी स्थितियों से गुजरना होगा, जब देश एक तरह से लॉंचिंग पैड़ पर होगा और आर्थिक साम्राज्यवाद के महासमर में बड़ी आर्थिक शक्तियों को अपदस्थ करने की तैयारी कर रहा होगा।

                          इस देश के भाग्यविधाता शनि हैं। परन्तु अर्थतंत्र का संचालन बृहस्पति करते हैं। वर्ष 2020-21 में वे अतिचारी हो गये अर्थात् अपनी सामान्य गति से तेज गति से चलने के इच्छुक हो गये और आगे भी 21 नवम्बर को कुम्भ राशि में प्रवेश करने के बाद तेज गति से चलते हुए 13 अप्रैल, 2022 को मीन राशि में प्रवेश कर जाएंगे जो कि उनकी अपनी राशि है। यहाँ वह 22 अप्रैल, 2023 तक रहेंगे अर्थात् करीब 1 वर्ष तक और फिर मेष राशि में प्रवेश कर जाएंगे। बृहस्पति जब अपनी राशि में होते हैं तब समृद्धि लाते हैं, चूंकि भारत देश की जन्म पत्रिका में लाभ भाव में स्थित होंगे तो भारत के लाभ को बढ़ाएंगे और प्रतिव्यक्ति आय को बढ़ाएंगे और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में भारत की स्थिति को लगातार सुदृढ़ करते रहेंगे।

                       कोरोना का सर्वाधिक प्रकोप बृहस्पति की मकर राशि में रहते हुए ही देखने को मिला था। जैसे ही थोड़े समय के लिए कुम्भ राशि में बृहस्पति आए, कोरोना का प्रकोप कम हो गया। इस तर्क के आधार पर हम कह सकते हैं कि 21 नवम्बर, 2021 के बाद कोरोना का प्रकोप तेज गति से कम हो जाएगा और पूरा देश चैन की नींद सो सकेगा। इसका यह अर्थ भी हुआ कि जो कुछ भी खतरा है, वह बृहस्पति के मकर राशि में रहने तक ही है और कुम्भ राशि में आने के बाद बृहस्पति इस खतरे को कम कर देंगे।

                      2022 में न केवल बृहस्पति कुम्भ राशि में रहते हुए अप्रैल में मीन राशि में चले जाएंगे, शनिदेव भी ढाई साल मकर राशि में बिताने के बाद कुम्भ राशि में ढाई साल के लिए चले जाएंगे। यह घटना 19 अप्रैल के दिन होगी। परन्तु बात यहीं तक सीमित नहीं रहेगी, शनिदेव पुनः वक्री होकर कुम्भ राशि से मकर राशि की ओर रुख कर लेंगे और 12 जुलाई 2022 के दिन मकर राशि में प्रवेश करके कुछ महीने वहाँ रहेंगे और 18 जनवरी, 2023 को पुनः अपनी कुम्भ राशि में आ जाएंगे, यह महीने भी क्रांतिकारी सिद्ध होंगे, क्योंकि इन महीनों में सरकारों में परिवर्तन आएंगे, बहुत उठा-पटक रहेगी और बहुत बड़े राजनैतिक परिणाम आएंगे। पहले तो कुम्भ राशि में रहते हुए बृहस्पति व्यापक परिणाम देंगे और बाद में जब शनि कुम्भ राशि में होंगे और बृहस्पति मीन राशि में होंगे, देश में राजनैतिक परिदृश्य बदल जाएंगे, कई सरकारें दबाव में रहेंगी, कोरोना का असर कम हो जाएगा। वैक्सिनेशन की गति बढ़ेगी। इस क्षेत्र मंश नये आविष्कार सामने आएंगे। भारत और अमेरिका के रिश्तों में उतार-चढ़ाव के बाद भी प्रगति देखने को मिलेगी और भारत का नाम हथियारों के निर्यातक के रूप में तेज गति से उभर कर सामने आएगा। बृहस्पति के यह केवल 2 वर्ष ही नहीं उनका आरोही क्रम देश को अगले पाँच वर्ष तक चमत्कारिक ढ़ंग से समृद्धि के शिखर की ओर ले जाएगा। पूरी दुनिया चकित होकर भारत की इस प्रगति को देखेगी, जिसमें राष्ट्र की समृद्धि के साथ-साथ प्रति व्यक्ति आय में बढ़ोतरी के रूप में भी देखा जा सकेगा।

                           कुम्भ राशि - पवित्रता की प्रतीक

जैमिनी ऋषि ने कुम्भ राशि को अत्यंत पवित्र माना है। अन्य ज्योतिष पद्धतियों में भी कुम्भ का अर्थ घट स्थापन या वरुण व सभी जल स्रोतों के आह्वान की राशि माना है। किसी भी प्रलय में सर्वाधिक महत्त्व पंचतत्त्वों में से जल तत्त्व का ही रहा है। यद्यपि महाप्रलय में जल भी विलीन हो जाता है।

 

मेष राशि में सूर्य और कुम्भ राशि में बृहस्पति के आधार पर महाकुम्भ का आयोजन हरिद्वार में होता है। अब नवम्बर में बृहस्पति तो कुम्भ राशि में आ जाएंगे परन्तु सूर्य मेष राशि में ना होकर तुला से आगे की राशियों में रहेंगे परन्तु उसकी पूर्ति शनिदेव कर देंगे, जो कि अप्रैल 2022 में तो कुम्भ राशि में आ ही जाएंगे, पहले से ही कुम्भ राशि के परिणाम देना शुरु कर देंगे। अतः आगामी महीनों में मकर, कुम्भ और मीन के बृहस्पति व कुम्भ राशि के शनि भारत की प्रगति के द्वार खोज देंगे। बृहस्पति देवताओं की कृपा भारत भूमि पर लेकर आएंगे और सरकार तथा जनता दोनों का ही भला होगा।

1 comment:

  1. Courtesy Prof Av Sundaram ji
    Celestial Happening.
    There is a lot talk of JUPITER joining SATURN..
    You know.. You, your father, mother and your place of Birth are permanent.Unchanged, Life Time.
    That is Lagna lord, SUN, MOON, Lagna.
    You know Rasi is Gross, Nakshtra is Sookamsa and Karana is the Planet.
    Now find the Nakshtra they are placed..
    Those Nakshtra lords play an important (sookasma) role in your entire life.
    Ex. Lagna. in Venus Nakshtra, Lagna lord in Saturn Nakshtra, Sun in Venus Nakshtra, Moon in Saturn Nakshtra.
    This Native will have the influence of Saturn and Venus strongly in life along with other planets.
    Saturn is Discipline, service, Sickness (can be of family members), longivity, antiques etc
    Venus is wife/young women (in family /outside) love of Fine arts, tasty food, luxury items, etc.
    The combination of both planets can be seen also.
    Here only 2 Planets it's easy. Sometimes all the 4 can be different Planets, then more attention needed.
    Don't jump to conclusions.. Take known person's chart or self chart and check the influence..
    Then conclude this can be taken as useful tool or not.

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