Sunday, July 22, 2012

कांची पीठ :


कांची शक्तिपीठ तमिलनाडू में कांजीवरम के पास शिवकोजी नगर में भगवान एकाग्रेश्वर शिव के मंदिर से लगभग 350 मीटर की दूर पर देवी कामाक्षी का भव्य विशाल मंदिर है. जिसमें त्रिपुरसुंदरी की प्रतिमूर्ति कामाक्षी कि प्रतिमा है. यह दक्षिण भारत का सर्वप्रथान शक्तिपीठ है. कामाक्षी मंदिर को कामकोटी के नाम से भी जाना जाता है. और इस मंदिर के विषय में मान्यता है, कि यह मंदिर शंकराचार्य द्वारा निर्मित है. देवी कामाक्षी के नेत्र इतने कमनीय है, कि उनेहं कामाक्षी की संज्ञा दी गई इस नाम में बीजाक्षरों का तांत्रिक महत्व भी है. "कामाक्षी" में "क" कार ब्रह्मा का "अ" कार विष्णु का "म" कार महेश्वर का वाचक है. इसलिये कामाक्षी के तीन नेत्र त्रिदेवों के प्रतिरुप है. सूर्य-चन्द्र उनके प्रधान नेत्र है. अग्नि उनके भाल की ज्योति से उत्पन्न होती है. कामाक्षी में एक ओर सामंजस्य है "का" सरस्वती का , "मां" महालक्ष्मी का प्रतिक है. इस प्रकार कामाक्षी के नाम से सरस्वती तथा लक्ष्मी का युगल-भाव समाहित है. शंकराचार्य ने इस मंदिर के विषय में कहा था कि सुधा सिन्धोर्मध्ये सुर विरटिवाटी परिवृ्तं मणिद्विपे नीपोपवनवति चिंतामणि गृ्हें। शिवाकारे मंचे पर्यक निलयां भजन्ति त्वां धन्या: कतिचन चिदानंद लहराम।। कहते हुए उन्होनें सुधा सागर के बीज पारिजात वन में मणिद्विप वासिनी शिवाकर शैय्या पर परम शिव के साथ आनन्द का अनुभव करने वाली कहा है. शिवकांची और जैनकांची ये तीनों स्थान अलग -अलग नहीं है. अपितु शिवकांची नगर का यह बडा भाग है. कामाक्षी देवी त्रिपुरसुंदरी की प्रतिमूर्ति हे. एकाम्रेश्वर मंदिर में गर्भगृ्ह में कामाक्षी की सुंदर प्रतिमा है. मंदिर के परिसर में अन्नपूर्णा तथा देवी शारदा के भी मंदिर्है. एक स्थान पर यहां मंदिर में शंकराचार्य जी कि मूर्ति बनाई गई है. मंदिर के द्वार पर कामकोटि मंदिर में आधालक्ष्मी, विशालाक्षी, संतानलक्ष्मी, सौभाग्यलक्ष्मी, धन लक्ष्मी तथा वीर्यलक्ष्मी, विजयलक्ष्मी, धान्यलक्ष्मी का पूजन किया जाता है. मंदिर के द्वार अप्र श्री रुपलक्ष्मी सहित चार महाविष्णु मंदिर है. अधिदेवता श्री महाशास्ता के मंदिर हे. जिनकी संख्या लगभग सौ के करीब है. यहां के विषय में पौरानिक मान्यता है, कि देवी सती का यहां पर कंकाल गिरा था. शक्ति यहां "देवगर्भा" तथा भैरव "रुरु" कहलाते है. देवी उपासना पेज से साभार !

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