Monday, July 9, 2012

गणपति – और गणतंत्र “ :- by Swami Mrigendra Saraswati " नमो गणेभ्यो गणपतिभ्यश्च वो नमो नमः "


गणपति – और गणतंत्र “ :- by Swami Mrigendra Saraswati " नमो गणेभ्यो गणपतिभ्यश्च वो नमो नमः " गणों के प्रति नमस्कार है । गण अर्थात् समुह । समुह का तात्पर्य है जहाँ अनेक चीज़े मिले और मिलने पर उनके अचर अलगाव भी हो और साथ में मिलकर कोई नवीन कार्य हो , जैसे धागों से मिलकर रस्सी बनती है तो कोई भी धागा अपने रूप को नहीं छोड़ता । अपने रूप को प्रत्येक धागा बनाये रखता है । परन्तु उन धागों के समुह में जो शक्ति होती है वह उन धागों को अलग - अलग रखने में नहीं है । यदि 20 बीस धागे अलग - अलग रखें व 20 बीस धागों से कोई चीज़ आप उठाओ तो चीज़ उठेगी नहीं , धागे टूट जायेंगे । पर उन धागों को आप बट लेते हैं तो वही धागे उस चीज़ को ही नहीं उससे दोगुनी भारी चीज़ को उठा लेते हैं टूटते नहीं यद्यपि प्रत्येक धागा अलग व्यक्तित्व रखता है पर बँट कर कई नवीन कार्य कर लेते हैं । इस प्रकार से जो मिलता है उसे " गण " कहते हैं । मनुष्य सामान का ही गण बन सकता है क्योंकि जब चेतन इकट्ठे होते हैं , ये नहीं हो सकता कि उनके व्यक्तिगत चेतन को हटा कोई दूसरा चेतन आ जाये । 50 पचास व्यक्तिय बैठे है उनमें से हर व्यक्ति अलग रहेगा ही । अतः गण का मतलब 50 पचास व्यक्तियों का केवल इकट्ठा होना नहीं है। जब उनमें एक रूपता है तब गण कहा जाता है । 20 बीस धागों को इकट्ठा कर जब तक बँटा नहीं नहीं तब तक विशेषता नहीं । बँट कर एक रूप दे दिया , विशेष शक्ति आ गई । वह इसी प्रकार , 50 आदमी जब तक एक उद्देश्य के लिये बँट नहीं दिये गये वह गण नहीं हुआ केवल भीड़ संवाद रहेंगे । 1000 एक हजार आदमियों की भीड़ हो और 10 दस आदमी गण बन कर आ जायें , प्रत्येक आदेश मिलते ही लाठी चलायेंगे तो उन 10 दस आदमियों के लाठी उठाने पर वह 1000 एक हजार आदमी लाठी भाँजते नज़र आयेंगे क्योंकि ये 10 दस आदमी एक उद्देश्य से एकत्रित हो बँट दिये गये , इसलिये " गणेभ्यः " के बाद कहा प्रत्येक गण का गणपति होता है , उसमें नियंत्रण रखने को गणपति चाहिये । भगवान् श्रीगणपति आज के युग में बड़ी विचार धारा देते हैं । आज हमारा गणराज्य है । गणराज्य अर्थात् पब्लिक हुई भीड़ , वह रीपब्लिक कब होंगे जब ऑर्गनाइज्ड पब्लिक तब हो रिपब्लिक । डिसऑर्गनाइज्ड पब्लिक है तो कभी रिपब्लिक नहीं बनेगा । हमारे सामने कठिनाई ये है कि गणराज्य तो घोषित कर दिया पर हमारा गण कौन है ? हम क्या करने को इकट्ठा हुये , ये पता नहीं । प्रत्येक घटक अंग किसी एक अंगी के लिये ही शरीर के अचर हृदय एक अंग हैं , लीवर एक अंग है । इसी प्रकार शरीर में अलग - अलग अंग ही अपना - अपना अलग - अलग कर्म करते हैं पर उन्हीं को अंग { ऑर्गन } कहते हैं जो हमारा एक अंगी जीवात्मा है उसके लिये ये सब मिलकर काम कर रहे हैं । इसीलिये ये अंग हैं , अंगी के शेषभूत नहीं रहेंगे तो अंग नहीं रहेंगे तब उनका नवीन नाम " कर्कट " { कैंसर } । कैंसर रोग में यह होता है कि शरीर के कुछ अंग यह निर्णय कर लेते हैं कि हम अपने लिये काम करेंगे , अंगी के लिये नहीं । जब ये कोष , सैल , बढ़ जाते हैं तो एक ही उपाय होता है उन्हें शल्य से या रेडियोथैरैपी से नष्ट कर दिया जाये । यदि नष्ट करने में सफल हो गये तो बच जाते है अन्यथा शरीर मर जाता है । इसी प्रकार जब तक अंगी के लिये काम नहीं करते तो ऑर्गनाईज नहीं हो पाते । गणपति बताते है कि गणतन्त्र की रक्षा करनी है तो पहले निर्णय करना होगा गणपति कौन है , कौन से वे आदर्श हैं जिनको हम काम में लाना चाहते हैं । आदर्शों के अभाव में सारा राज्य भीड़ हो गया है । सब एक दूसरे के मार्ग में बाधक हो रहे हैं , राज्य व्यापारी की उन्नति में और व्यापारी राज्य की उन्नति में , राजनैतिक सरकारी नौकर की उन्नति मै और सरकारी नौकर राजनैतिक उन्नति में बाधक है अतः ये " गणपति " आज के युग में बड़ा जरूरी है । क्या कारण है कि " गणपति " का पूजन सर्वप्रथम होता है ? एक बार भगवान् श्रीकृष्ण ने बड़ी तपस्या की । तपस्या के फलस्वरूप जब भगवान् सदाशिव - शङ्कर व भगवती पार्वती ने प्रकट होकर कहा आप साक्षात् स्वरूप भगवान् होकर इस तपस्या को क्यों कर रहे हैं । भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा सृष्टि के अंत में महाप्रलय में सबका संहार करने वाले एक मात्र शिव ही रहते है तो सृष्टि के प्रथम क्षण में भी वही रहेंगे और आगे सृष्टि भी वही करेंगे अतः सृष्टि के आरम्भ में आपका ही पूजन प्रथम होता है । मैं चाहता हूँ कि प्रथम पूजन मेरा हो क्योंकि मैं सृष्टि का रक्षण करता हूँ । भगवान् श्रीआशुतोष शङ्कर कुछ बोलते इसके पूर्व भगवती पार्वती ने कहा संसार में मनुष्य दो से ही हारना चाहता है एक पुत्र से और दूसरे शिष्य से । अगर मैंने चार मकान बनाये तो पिता चाहता है कि पुत्र आठ मकान बनाये तब प्रसन्नता होती है और कोई मुझसे ज्यादा उन्नति करले तो वह प्रिय नहीं लगता जबकि पुत्र हर क्षेत्र अपने से ज्यादा उन्नति करे यही चाहते हैं । मुझ से पुत्र ज्यादा विद्या ग्रहण करे , धन कमाये । यदि आप चाहते है कि आपका भगवान् शङ्कर से पूर्व पूजन हो तो आप हमारे पुत्र बनें । भगवान् कृष्ण ने कहा आप मुझे यही आशीर्वाद देवें कि मैं आपका पुत्र बनकर पैदा होऊँ , भगवान् श्रीसदाशिव ने कहा ठीक है । भगवान् श्रीकृष्ण ने ही , भगवती पार्वती का जिस समय विवाह हुआ उन्होंने कृष्ण के लिये ही रूप लिया था तो उनके शरीर से ही " गणेश " की उतपत्ति हुई । जब उत्पन्न हुये तो बड़े सुन्दर थे । भगवान् श्रीविष्णु कामदेव के पुत्र हैं तो सौन्दर्य स्वाभाविक था । भगवान् शङ्कर के घर पुत्र हुये तो देवी , देवता , ग्रह आदि बधाई देने आये । सूर्य , चन्द्र , ग्रह आदि भी आये । शनि भी पहुँचा । शनि दरवाज़े से दूसरी तरफ देख रहा था । पार्वती बोली सारे मेरे बच्चे के सौन्दर्य की प्रशंसा कर रहे हैं तुम क्यों दूसरी तरफ देख रहे हो । शनि दूसरी तरफ मुँह करके ही बोले सब कह रहे हैं तो ठीक है। पार्वतीजी बोली देख तो सही । शनि ने कहा आप ही कह रही हैं तो देखता हूँ , शनि के देखते ही गणेशजी का सिर कट गया । हाथी का सिर लगाया गया । अब भगवान् शङ्कर ने विचार किया कि कृष्ण भगवान् हमारे घर पैदा हुये तो प्रथम पूजन इनका करवाना है , अतः निमित्त बनाना है । पहले हमारा राष्ट्रिय गान था " वन्दे मातरम् " । भारत माता को नमस्कार है । पर फिर दृष्टि बदली , अधिनायक को लाये । अधिनायक { डिकटेटर } को नमस्कार है । देवताओं में इस प्रकार की दृष्टि नहीं है । एक बार सारे देवता आये थे भगवान् शङ्कर ने कहा मैं बूढ़ा हो गया हूँ , हर पूजा - पाठ में मुझे सब लोग पहले बुलाते हैं ये मेरे लिये मुश्किल हो गया है । मैं चाहता हूँ आप सबमें से किसी का प्रथम पूजन हो जाये तो मुझे न जाना पड़े । अब किसका प्रथम पूजन हो ? किसी ने कहा इन्द्र का हो , अग्निदेव ने कहा मेरा हो क्योंकि सबसे पहले मेरा आह्वाहन होता है । ब्रह्मदेव ने कहा मेरा हो । भगवान् ने कहा इस सारे ब्रह्माण्ड , सात ऊपर और सात निचे के लोक , आकाश की जहाँ सीमा है उसकी परिक्रमा कर जो आये , ब्रह्माण्ड की नियन्ता जो समझ जाये उनका ही प्रथम पूजन होगा। श्री नारायण हरिः !

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