Wednesday, December 9, 2020

 Courtesy Sh Satish Sharma Jaipur


मंगल से डर क्यों?

पं. सतीश शर्मा, एस्ट्रो साइंस एडिटर, नेशनल दुनिया


मंगल को लेकर ज्योतिष जगत में बहुत अधिक भय व्याप्त है। माङ्गलिक दोष को लेकर तो विवाह सम्बन्ध के प्रस्ताव निरस्त कर दिये जाते हैं और स्वयं बहुत सारे ज्योतिषी डरते हैं और मंगल दोष होने पर विवाह मेलापक को सहमति नहीं देते। अगर ज्योतिषी भी डरते हैं तो इसका अर्थ यह है कि भय वास्तविक होना चाहिए। 

ऋषियों ने मंगल को सेनापति माना है। लाल रंग है, सूर्य के वर्णक्रम का लाल रंग अर्थात् इन्फ्रारेड स्पेक्ट्रम अत्यधिक ऊर्जा प्रदायक है और गति प्रदान करने वाला है। अनुपात से अधिक होते ही ऊर्जा या गति घटनाओं में बदलने लगती है। मंगल अगर थोड़े से भी बलवान हुए तो व्यक्ति को जन्म स्थान से दक्षिण में ले जाने की चेष्टा करते हैं। मेरा स्वयं का अनुभव है कि एक बार जब मैं अमेरिका जाने के लिए तैयार बैठा था परन्तु मंगल के प्रभाव में दक्षिणी-पूर्वी देशों में जाना पड़ा। अभी भी सत्य यही है कि दक्षिणी गोलार्द्ध के देशों में अधिक जाना हुआ है, उत्तरी गोलार्द्ध के कम देशों में जाना हुआ है। जन्म पत्रिका के दशम भाव के कारक मंगल माने जाते हैं और अगर यहाँ मंगल स्थित हुए तो व्यक्ति को हर चीज दक्षिण दिशा की तरफ मिलती है। सम्बन्ध, व्यवहार, व्यवसाय, मकान या कारखानों की मुख्य दिशाएँ इत्यादि। चूंकि अग्नि इनका प्रिय विषय है इसीलिए वे सारे व्यवसाय जो अग्नि से सम्बन्धित है, चाहे फैक्ट्रियों में भट्टियाँ हो या धातुएँ गलाने वाली विधियाँ हो, या आग्नेय अस्त्रों का व्यवसाय हो, चाहे ईंट पकाने का भट्टा हो और चाहे केटरर या होटलों की रसोई हो, सब मंगल की देन है। पर्वतों और जंगलों पर इनका अधिकार है। कुजो भविति शैलाट विसंचरन्त:। जैमिनी ऋषि ने तो मंगल को तर्कशास्त्र का प्रणेता माना है अर्थात् न्यायाधीश, वकील और जितने भी तरह के रिप्रजेन्टेटिव या मार्केटिंग वाले हैं। 

मंगल भूमि पुत्र हैं इसीलिए हमारी पृथ्वी से बहुत अधिक गुण मिलते हैं और जीवन की सबसे अधिक संभावनाएँ भी मंगल पर ही हैं। वैज्ञानिक मंगल पर ही सबसे ज्यादा शोध कर रहे हैं। ज्योतिष में मंगल को पाप ग्रह माना गया है, अत: पापफल अधिक मिलते हैं। हिंसा के कारक हैं। 

पीनबीजकफशस्त्रपावक ग्रंथि रूग्व्रण दरिद्र जामयै:। 

वीरशैवगण भैरवादिभिर्भीतिमाशु करूते धरासुत:।। 

अंड वृद्धि, कफ, शस्त्र और अग्नि द्वारा पीड़ा, फोड़े, फुन्सी आदि गांठों के रोग, व्रण, दारिद्रय के कारण उत्पन्न हुए रोग तथा शिव के गण भैरव आदि देवताओं द्वारा पीड़ा, ये फल मंगल से प्राप्त होते हैं। 

मंगल दोष-

विवाह मेलापक में जन्म पत्रिका के कुछ भावों में मंगल होने से उसे मंगल दोष माना जाता है। 12वाँ भाव, लग्न, चतुर्थ, सप्तम व अष्टम। दक्षिण भारत में दूसरे भाव में भी मंगल होने पर मंगल दोष माना गया है। इसका समाधान आमतौर से यही माना जाता है कि अगर यह स्थिति वर की कुण्डली में है तो कन्या की कुण्डली में भी अगर इन्हीं स्थानों पर भी मंगल हों तो मंगल दोष का निवारण हो जाता है। अगर ना हो तो यह विनाश का कारण बनता है। इस डर का कारण केरल शास्त्र का यह श्लोक है- 

धने व्यये वा पाताले जामित्रे चाष्टमे कुजे। 

स्त्री भर्तुर्विनाशञ्च भर्ता च स्त्रीविनाशनम्।। 

इन शब्दों का अर्थ यह लिया गया है कि मंगल दोष वैधव्य दोष है परन्तु ऋषियों ने नाम मंगल दोष रख दिया है। इन्हीं स्थानों में यदि कोई पाप ग्रह भी हो, जैसे कि शनि या राहु, तो भी मंगल दोष के निवारण वाला मान लिया जाता है। प्राय ऐसी धारणा है कि जिसकी कुण्डली में मंगल दोष है, कष्ट उसके जीवन साथी को आता है। 

भ्रांतियाँ - 

1. मंगल का असर 28 वर्ष बाद समाप्त हो जाता है। यह सत्य नहीं है। एक जन्म पत्रिका में ग्रहों की स्थिति जीवन भर फल देती रहती है, अत: मंगल दोष जीवन भर के लिए होता है। यह भ्रांति इसलिए उत्पन्न हुई कि मंगल आमतौर से 28वें वर्ष में परिणामदायक है। इसमें मांगलिक विवाह भी शामिल है। 

2. भ्रांति .अच्छा लड़का या लड़की नहीं मिलेगी। लोग जन्म पत्रिका मांगलिक है, यह बताने से डरते हैं। इसका कारण यह सोच है कि विवाह सम्बन्धों में बाधा आएगी। यह सत्य नहीं है, क्योंकि करीब-करीब आधे मामलों में जन्मपत्रिकाओं में मंगल दोष होते ही हैं।

3. मंगल केवल नुकसान ही देता है। यह भ्रांति भी सच नहीं है, क्योंकि मंगल दोष वाले व्यक्ति विशेष ऊर्जावान व कर्मशील होते हैं। प्राय इन लोगों को जीवन में बहुत अधिक उन्नति करते देखा गया है। अगर राहु या शनि जैसे ग्रहों का साथ मिल जाये तो मंगल अद्भुत सफलता प्रदान करते हैं। 

4. मंगल दोष के कारण उपेक्षा सहन करनी पड़ेगी। यह भ्रांति है और सच नहीं है। ज्योतिष में मंगल को सेनापति माना गया है और जन्म पत्रिका में बलवान मंगल वाले व्यक्ति में सबसे अधिक नेतृत्व क्षमता होती है। आजकल अच्छे पदों पर जो भी इन्टरव्यू होते हैं उनमें लीडरशिप क्वालिटी तलाश की जाती है। मंगल के कारण व्यक्ति सेनापति बनने की ओर अग्रसर होता है। आजकल सेनापति से तात्पर्य? नेता, मंत्री, प्रशासनिक अधिकारी, सेना या पुलिस का अधिकारी, कम्पनी या राजनैतिक दल का मुख्य संगठनकर्ता इत्यादि-इत्यादि। सेनापति का अर्थ राजा नहीं होता। इसका अर्थ यह है कि अन्य ग्रह बलवान नहीं हों तो मंगल प्रधान व्यक्ति किसी न किसी मुख्य प्रशासक के आधीन होता है। 

5. मंगल दोष दिखाओ ही मत और जन्म पत्रिका मिला लो? यह भ्रांति है कि नकली जन्म पत्रिका बनवाने से मंगल दोष नष्ट हो जाएगा। कुछ लोग बच्चों के विवाह सम्बन्ध ना होने की स्थिति में या किसी खास व्यक्ति से सम्बन्ध करने की जिद में नकली जन्म पत्रिका निकलवा लेते हैं। इसके बड़े दुखदायी परिणाम मिलते हैं, क्योंकि मंगल दोष तो जीवनभर रहता ही है और शमन नहीं होता। ऐसा करके लोग अपने-आपको और बच्चों को धोखा देते हैं। 

6. नीच राशि के मंगल बर्बाद कर देंगे? यह भ्रांति भी सच नहीं है। मंगल उच्च राशि में अर्थात् मकर राशि में हो तो तब तो निश्चित नेतृत्वकर्ता बनाते हैं परन्तु नीच राशि के मंगल के तो और भी अद्भुत परिणाम देखने को मिले हैं। अगर नीच राशि के मंगल का ज्योतिष के तर्क से नीच भंग हो जाए तो यह नीच भंग राजयोग बनाता है। उदाहरण के तौर पर अटल बिहारी वाजपेयी, नरेन्द्र मोदी, राजनाथ सिंह और भारतीय जनता पार्टी की जन्म पत्रिका में मंगल नीच राशि में हैं और नीच भंग राजयोग की सृष्टि कर रहे हैं। ऐसी स्थिति में वृश्चिक राशि में मंगल होने के कारण चन्द्रमा या मंगल की महादशा में यह योग फलते हैं। इन दिनों प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी को चन्द्रमा की महादशा चल रही हैं। 

जब मंगल सेनापति बनाने वाले हैं और नीच भंग राजयोग होने पर राजा बना देते हैं तो हम उनसे डरें क्यों? मंगल की शांति के लिए हनुमान जी की साधना भी बताई जाती है। तो हनुमान बनने से भी क्यों डरें? यह तो बहुत अच्छा विशेषण है। खेतों में भौमिया बाबा जरूर मिलेंगे। जब रक्षक हैं तो डरें क्यों? मंगल जीवन के सैंकड़ों विषयों पर नियंत्रण रखते हैं, जिनमें रक्त भी शामिल है। जब समस्त जीवनदायिनी शक्ति रक्त संचार में ही निहित है तो मंगल तो जीवन ऊर्जा से युक्त हैं, इनसे डरें क्यों? हमें चाहिए कि मंत्र-मणि इत्यादि से मंगल को प्रसन्न करें और उनसे लाभ उठायें।

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