Friday, December 11, 2020

 Courtsey Sh Satish Sharma jaipur.


हथेली में पर्वत


जन्मपत्रिका में ग्रहों की स्थिति उनकी डिग्री, ऊंच-नीच, शत्रु, मित्र आदि भावों में उपस्थिति के अनुसार पता चलती है, वहीं हस्त रेखा शास्त्र में हथेली में उनके उभार, ढलान तथा उन पर पाए जाने वाले चिन्हों से पता चलती है। हथेली में विभिन्न ग्रहों के स्थान नियत किए गए हैं, जिनको पर्वतों के नाम से जाना जाता है। जो ग्रह अच्छी स्थिति में है उनके स्थल उभरे हुए व पुष्ट होते हैं तथा जो ग्रह खराब स्थिति में है उनके स्थल दबे हुए होते हैं। इसी कारण हथेली कहीं से उठी हुई एवं कहीं से दबी हुई दिखती है। बहुत सी बार एक पर्वत दूसरी तरफ ढलान ले लेता है अर्थात दूसरा पर्वत उसे अपने प्रभाव में ले लेता है। पर्वतों का हथेली पर अपने स्थान पर मौजूद होना प्राय: कम ही मिलता है। वे इधर-उधर खिसक या झुक जाते हैं। ऐसी स्थिति में पर्वत स्वयं के गुण प्रदर्शित न करके मिश्रित गुणों का प्रदर्शन करते हैं। कोई पर्वत किसी दूसरी तरफ झुका है या अपने स्थान पर मौजूद है यह देखने के लिए उसका केन्द्र देखना चाहिए क्योंकि कई बार पर्वत का उभार तो वहीं होता है, परंतु केन्द्र खिसक जाता है। हाथ में सामान्य रेखाओं के अतिरिक्त बारीक-बारीक लहरदार कोशिकाएं होती हैं। ये पर्वत के स्थान पर एक डेल्टानुमा आकृति (तीन नदियों के संगम स्थल पर बनने वाली आकृति) का निर्माण करती है। यही पर्वत का केन्द्र होता है। गौर से देखने पर ही यह आकृति नजर आती है। यदि यह आकृति अपने स्थान पर मौजूद है तो ठीक है अन्यथा जिस तरफ झुके उसी पर्वत की ओर आकर्षित होना कहते हैं। औसत उभरे हुए पर्वत को ठीक माना जाता है। अति विकसित पर्वत दोषयुक्त हो जाते हैं। कई बार पर्वत के स्थान पर उभार नहीं होता है तो उसे मृत समझा जाता है, परंतु वहां एक सीधी रेखा हो अर्थात ऊर्ध्व रेखा हो तो उसे ठीक समझा जाता है।

 

हथेली में विभिन्न पर्वतों के स्थान इस प्रकार हैं-

1. बृहस्पति पर्वत : तर्जनी अंगुली की जड़ में बृहस्पति पर्वत का स्थान है।

2. शनि पर्वत : मध्यमा अंगुली की जड़ में शनि पर्वत का स्थान माना गया है।

3. सूर्य पर्वत : अनामिका अंगुली की जड़ में सूर्य पर्वत का स्थान माना है।

4. बुध पर्वत : कनिष्ठा अंगुली की जड़ में बुध पर्वत का स्थान माना है।

5. शुक्र पर्वत : अंगूठे की जड़ में शुक्र पर्वत का स्थान माना है। यह जीवन रेखा व मणिबंध से घिरा होता है।

6. निम्न मंगल : अंगूठे की जड़ व शुक्र पर्वत तथा तर्जनी के नीचे जीवन रेखा के अंदर निम्न मंगल पर्वत का स्थान माना है।

7. ऊध्र्व मंगल : हृदय रेखा के नीचे (सूर्य, बुध पर्वत के नीचे) तथा मस्तिष्क रेखा के ऊपर ऊध्र्व मंगल का स्थान माना गया है।

8. चन्द्र पर्वत : हथेली के बाहरी हिस्से अर्थात कनिष्ठा के नीचे वाला हिस्सा जो मणिबंध से घिरा है चन्द्र पर्वत का स्थान माना है। 

हथेली में पाए जाने वाले विभिन्न पर्वतों के उभार, उनके चिह्नï, उनकी स्थिति इत्यादि का अध्ययन कर एक सर्वशक्तिमान पर्वत चुन लिया जाता है तो वह व्यक्ति उस पर्वत विशेष के गुणों वाला व्यक्ति समझा जाता है। आधुनिक हस्त रेखा विज्ञान में सूर्य पर्वत प्रधान व्यक्ति को 'सोलर’, चन्द्र प्रधान व्यक्ति को 'लूनर’, मंगल प्रधान व्यक्ति को 'मार्शियान’, बुध प्रधान को 'मरक्यूरियन’ एवं बृहस्पति प्रधान को 'जूपिटेरियन’, शुक्र प्रधान को 'वेनुसिएन’ तथा शनि प्रधान को 'सेचुरिएन’ कहा जाता है। भिन्न-भिन्न पर्वत विशेष वाले व्यक्तियों का स्वभाव एवं गुण उक्त ग्रहों तथा प्रभावित होते हैं।

नीची हथेली (यानि पर्वत दबे हों) वाले पैतृक धन से विहीन, वर्तुलाकार नीची हथेली वाले धनी तथा ऊंची हथेली (अर्थात् पर्वत विकसित हों) वाले दानी होते हैं।

जो पर्वत अत्यन्त उभार हुए हों या सामान्य से अधिक उभरे हुए हों तो उनमें दोष होने लगते हैं। उदाहरण के तौर पर बृहस्पति का पर्वत सामान्य से अधिक उन्नत हो तो व्यक्ति स्वाभिमानी की अपेक्षा अहंकारी होने लगता है। यदि चंद्रमा का पर्वत सामान्य से अधिक उठा हुआ हो तो व्यक्ति कल्पनालोक में खोया रहता है, बल्कि जागते ही स्वप्न देखने लगता है। चंद्रमा के लिए अंग्रेजी शब्द लूना है जो कि अधिक उन्नत होने पर व्यक्ति को ल्यूनेटिक बना देता है। यह शब्द पागलपन के लिए प्रयोग में लाया जाता है। सूर्य पर्वत आवश्यकता से अधिक उन्नत होने पर व्यावसायिकता का विरोधी हो जाता है। सूर्य रेखा भी ज्यादा प्रबल हो जाए तो व्यावसायिकता का विरोधी हो जाता है। मंगल पर्वत का भी अधिक उन्नत होना हिंसा व अपराध की ओर ले जाता है। 

इन पर्वतों का उभार सामान्य से कम होना भी घातक है। ग्रह अपने प्राकृतिक परिणाम भी पूरी तरह नहीं दे पाते और जीवन अभाव युक्त बना रहता है। 

पर्वतों से निकलने वाली रेखाएं या पर्वतों पर समाप्त होने वाली रेखाएं पर्वतों के गुणों में वृद्धि कर देती हैं और उस रेखा के गुणों का समावेश हो जाता है। रेखाएं एक पर्वत से दूसरे पर्वत तक पहुंचे तो दो पर्वतों के बीच पुल का काम करती हैं। ऐसा तब भी होता है जब दो पर्वत आपस में मिल जाएं। सूर्य और बुध के पर्वत आधे मामलों में एक-दूसरे से संबंध स्थापित करते हैं। ऐसे व्यक्ति में सूर्य और बुध के गुणों में वृद्धि देखने को मिलती है। बृहस्पति और शनि पर्वत के भी आपस में आंशिक रूप से मिलना भी अत्यधिक गुणकारी है। व्यक्ति दार्शनिक होने लगता है। चंद्रमा और शुक्र पर्वत के आपस में मिलने की सम्भावना बहुत कम होती है, क्योंकि बीच में भाग्य रेखा पड़ जाती है। शुक्र पर्वत का अधिक उन्नत होना अच्छी बात नहीं है, यह व्यक्ति को भोगी बना देते हैं, यद्यपि सुख-साधन सारे ही मिलते हैं। हथेली के बीचों-बीच राहु पर्वत पड़ता है जो कि अत्यधिक महत्व का है। अधिकांश मामलों में राहु के क्षेत्र से गुजरने वाली भाग्य रेखा टूटी हुई मिलती है या मणिबंध से निकलकर राहु क्षेत्र तक आ कर समाप्त हो जाती है व उसके आस-पास से ही पुन: शुरु होकर शनि पर्वत तक जाती है। यह व्यक्ति के जीवन में भारी परिवर्तन की सूचना है। 

पर्वतों का सामान्य उभार होना श्रेष्ठ होता है। पर्वतों का अपने स्थान पर होना ही श्रेष्ठ माना गया है। कम उन्नत या अधिक उन्नत पर्वत दुष्परिणाम देने लगते हैं। पर्वतों पर किसी चिह्न का होना पर्वत की प्रकृति को बदल देता है। इसका उल्लेख किसी अन्य लेख में करेंगे। भाग्य रेखा चंद्र पर्वत से निकलती है या मणिबंध से ही निकलती है, इस बात से ही रेखा के और पर्वत के चरित्र में अन्तर आ जाता है। आयु रेखा, भाग्य रेखा, हृदय रेखा और मस्तिष्क रेखा तो लगभग हर हाथ में स्पष्ट दिखाई देती है परंतु बहुत बारीक रेखाएं समय-समय पर उभरती हैं और गायब भी हो जाती हैं। यह व्यक्ति के वर्तमान में चल रहे क्रियमाण कर्मों पर निर्भर करता है। जब शास्त्री को हाथ दिखाएं तो सुबह के समय दिखाएं। बर्तन मांजने से या हाथों से कोई भी कार्य करने से भी यह बारीक रेखाएं छिप जाती हैं।

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