Friday, December 14, 2012

हर हर महादेव : प्रस्तुत कर्ता श्री सुरेन्द्र सिंह रावत (FB Pg Astrology & Remedies..)

हर हर महादेव 

मही पादाधाताद् व्रजति सहसा संशयपदं
पदं विष्णोर्भ्राम्यद्भुजपरिघरुग्णग्रहगणम् ।
मुहुद्यौंर्दोस्थ्यं यात्यनिभृतजटाताडिततटा
जगद्रक्षायै त्वं नटसि ननु वामैव विभुता ॥१६॥

१६. जब विश्व की रक्षा के लिये आपने तांडव नृत्य करना प्रारंभ किया तब समग्र सृष्टि भय के मारे कांप उठी । आपके पदप्रहार से पृथ्वी को लगा कि उसका अंत समीप है, आपकी जटा से स्वर्ग में विपदा आ पड़ी और आपकी भुजाओं के बल से वैंकुंठ में खलबली मच गई । हे प्रभु ! सचमुच आपका बल अतिशय कष्टप्रद है । 

असिद्धार्था नैव कवचिदपि सदेवासुरनरे
निवर्तन्ते नित्यं जगति जयिनो यस्य विशिखाः ।
स पश्यन्नीश त्वामितरसरुरसाधारणमभूत्
स्मरः स्मर्तव्यात्मा नहि वशिषु पथ्यः परिभवः ॥१५॥

१५. हे प्रभु, जब आप समाधि में लीन थे तब (तारकासुर को मारने के लिए आपके द्वारा कोई पुत्र हो एसा सोचकर) देवोंने आपकी समाधि भंग करने के लिए कामदेव को भेजा । यूँ तो कामदेव के बाण मनुष्य हो या देवता - सब के लिए अमोघ सिद्ध होते है मगर आपने तो कामदेव को ही अपने तीसरे नेत्र से भस्मीभूत कर दिया । सचमुच, किसी संयमी मनुष्य का अपमान करने से अच्छा फल नहीं मिलता । 

वियद्व्यापी तारागणगुणितफेनोद्गमरुचिः
प्रवाहो वारां यः पृषतलघुदष्टः शिरसि ते ।
जगद् द्वीपाकारं जलधिवलयं तेन कृतमि
त्यनेनैवोन्नेयं धृतमहिम दिव्यं तव वपुः ॥१७॥

१७. गंगा नदी जब मंदाकिनी के नाम से स्वर्ग से उतरती है तब नभोमंडल में चमकते हुए सितारों की वजह से उसका प्रवाह अत्यंत आकर्षक दिखाई देता है, मगर आपके शिर पर सिमट जाने के बाद तो वह एक बिंदु समान दिखाई पडती है । बाद में जब गंगाजी आपकी जटा से निकलती है और भूमि पर बहने लगती है तब बड़े बड़े द्वीपों का निर्माण करती है । ईससे पता चलता है कि आपका शरीर कितना दिव्य और महिमावान है । 

अतीतः पंथानं तव च महिमा वाड् मनसयो
रतद्व्यावृत्यायं चकितमभिधत्ते श्रुतिरपि ।
स कस्य स्तोतव्यः कतिविधगुणः कस्य विषयः
पदे त्वर्वाचीने पतति न मनः कस्य न वचः ॥२॥

२. हे प्रभु ! आप मन और वाणी से पर है ईसलिए वाणी से आपकी महिमा का वर्णन कर पाना अस...ंभव है । यही वजह है की वेद आपकी महिमा का वर्णन करते हुए 'नेति नेति' (मतलब ये नहि, ये भी नहि) कहकर रुक जाते है । आपकी महिमा और आपके स्वरूप को पूर्णतया जान पाना असंभव है, लेकिन जब आप साकार रूप में प्रकट होते हो तो आपके भक्त आपके स्वरूप का वर्णन करते नहीं थकते । ये आपके प्रति उनके प्यार और पूज्यभाव का परिणाम है ।

महिम्नः पारं ते परमविदुषो यज्ञसदृशी
स्तुतिर्ब्रह्मादीना मपि तदवसन्नास्त्वयि गिरः ।
अथावाच्यः सर्वः स्वमतिपरिणामधि गृणन्
ममाप्येषः स्तोत्रे हर निरपवादः परिकरः ॥१॥

१. हे प्रभु ! बड़े बड़े पंडित और योगीजन आपके महिमा को नहीं जान पाये तो मैं तो... एक साधारण बालक हूँ, मेरी क्या गिनती ? लेकिन क्या आपके महिमा को पूर्णतया जाने बिना आपकी स्तुति नहीं हो सकती ? मैं ये नहीं मानता क्योंकि अगर ये सच है तो फिर ब्रह्मा की स्तुति भी व्यर्थ कहेलायेगी । मैं तो ये मानता हूँ कि सबको अपनी मति अनुसार स्तुति करने का हक है । इसलिए हे भोलेनाथ ! आप कृपया मेरे हृदय के भाव को देखें और मेरी स्तुति का स्वीकार करें । 

किमिहः किंकायः स खलु किमुपायस्त्रिभुवनं ।
किमाधारो धाता सृजति किमुपादान इति च ॥
अतकर्यैश्वर्येत्वय्यनवसरदुःस्थो हतधियः ।
कुतर्कोडयंकांश्चि न्मुखरयति मोहाय जगतः ॥५॥

५. हे प्रभु, मूर्ख लोग अक्सर तर्क करते रहते है कि ये सृष्टि की रचना कैसे हु...ई, किसकी ईच्छा से हुई, किन चिजों से उसे बनाया गया वगैरह वगैरह । उनका उद्देश्य लोगों में भ्रांति पैदा करने के अलावा कुछ नहि । सच पूछो तो ये सभी प्रश्नों के उत्तर आपकी दिव्य शक्ति से जुड़े है और मेरी सीमित शक्ति से उसे बयाँ करना असंभव है ।

हर हर महादेव भविष्य दर्पण कें

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