Saturday, November 20, 2021

छठ पूजा

 *बिहार में छठ द्वारा सूर्य पूजा के अनुमानित कारण –*


भारत तथा विश्व में सूर्य के कई क्षेत्र हैं, जो आज भी उन नामों से उपलब्ध हैं। पर बिहार में ही छठ पूजा होने के कुछ कारण हैं।
*मुंगेर* – भागलपुर राजधानी में स्थित *कर्ण* सूर्य पूजक थे। 
*गया* ज़िले के *देव* में सूर्य मन्दिर है। महाराष्ट्र के *देवगिरि* की तरह यहाँ के देव का नाम भी औरंगाबाद हो गया। *मूल नामों से इतिहास समझने में सुविधा होती है।* 

गया का एक और महत्त्व है कि यह प्राचीनकाल में कर्क रेखा पर था जो सूर्य गति की उत्तर सीमा है। 
अतः *गया में सौरमण्डल को पार करनेवाले आत्मा अंश के लिए गया श्राद्ध होता है।* 
सौरमण्डल को पार करनेवाले प्राण को *'गय'* कहते हैं (हिन्दी में कहते हैं चला गया)

_स यत् आह गयः असि-इति सोमं या एतत् आह, एष ह वै चन्द्रमा भूत्वा सर्वान् लोकान् गच्छति-तस्मात् गयस्य गयत्वम्_ (गोपथ ब्राह्मण, पूर्व, ५/१४)
_प्राणा वै गयः_ (शतपथ ब्राह्मण, १४/८/१५/७, बृहदारण्यक उपनिषद्, ५/१४/४)

अतः *'गया'* तथा *'देव'* दोनों प्रत्यक्ष देव सूर्य के मुख्य स्थान हैं।
बिहार के पटना, मुंगेर तथा भागलपुर के नदी पत्तनों से समुद्री जहाज़ जाते थे। पटना नाम का मूल *पत्तन* है, जिसका अर्थ बन्दरगाह है, जैसे गुजरात का प्रभास-पत्तन या पाटण, आन्ध्र प्रदेश का विशाखा-पत्तनम्। उसके पूर्व व्रत उपवास द्वारा शरीर को स्वस्थ रखना आवश्यक है जिससे समुद्री यात्रा में बीमार नहीं हों। 

ओड़िशा में कार्त्तिक-पूर्णिमा को *बइत-बन्धान* (वहित्र - नाव, जलयान) का उत्सव होता है जिसमें पारादीप पत्तन से अनुष्ठान रूप में जहाज चलते हैं। यहाँ भी कार्त्तिक मास में सादा भोजन करने की परम्परा है। कई व्यक्ति दिन में केवल एक बार भोजन करते हैं। उसके बाद समुद्री यात्रा के योग्य होते हैं।

समुद्री यात्रा से पहले घाट तक सामान पहुँचाया जाता है। उसे ढोने के लिए *बहंगी* (वहन का अंग) कहते हैं। ओड़िशा में भी *बहंगा बाजार* है। बिहार के पत्तन समुद्र से थोड़ा दूर हैं, अतः वहाँ कार्त्तिक पूर्णिमा से ९ दिन पूर्व छठ होता है।

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