Sunday, October 9, 2011

कविता में ज्योतिष जो मैंने जानी

Learn through poetry

Bhola Nath Shukla
बात ICAS Kanpur Chapter की स्थापना के प्रारंभिक वर्षों की है विद्यार्थियों के लिए library बना रहा था सो पुस्तके खरीद कर लाता था . उनको स्वं भी उलटते पढते गुरु जानो से पूंछता रहता. कुछ कुछ जब समझ आने लगी उस समय मिली गुरु मन्त्रों को कविताबध किया था. आज भी याद -दोहराता हूँ उन सूत्रों को जो गुरु मित्र सहयोगी जनों से मिले थे : आप भी आनंद लें :

पहले नक्षत्रों को पहचानो फिर उनकी स्थितियां जानो !
नक्षत्रों का चरण देख लो, पीछे तिथि का करण देख लो !
किसका किससे वरण देख लो, दृष्टि योग से भरण देख लो !
उहापोह भली विधि करके, ग्रह भावों की शरण देख लो !
ग्रह सम्बन्धों की गणना इनके स्वामी से हैं करना !
इनके यदि स्वभाव को भूले निष्कर्षों में होगे ढीले !
ग्रह बल का अनुमान जरुरी वरना गणना रहे अधूरी !
चर स्थिर कारक की क्षमता गुणी ज्योतषी मन से गुनता !
ग्रह अंशों पर ध्यान लगाना , इससे फिर षट वर्ग सजाना !
चलित चक्र गत निश्चित हो भाव मिलता तभी स्पष्ट प्रभाव !
मचलती दृष्टि बनाती योग काले उजले देती भोग !
भोग दशा गोचर का योग जातक करता जीवन भोग !
आप गुणीजन यह निवेदन मानना
है अभी अभ्यास मेरा अक्षर पह्चानना ! अक्षर पह्चानना !!
संकेत : वरण = conjuction भरण = aspects शरण = placements मचलती दृष्टि = transists काले उजले = Good /bad results .
सहृदय आपका भोला नाथ शुक्ल   कानपुर

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