Tuesday, January 10, 2012

108 की संख्या महत्वपूर्ण . by Sri Jagmohan Mahajan

जब हम माला करते है तो मन में अक्सर ये
प्रश्न आता है कि माला में १०८ मनके
ही क्यों होते है.इससे कम
या ज्यादा क्यों नहीं ? हमारे धर्म में
108 की संख्या महत्वपूर्ण मानी गई है.
ईश्वर नाम के जप, मंत्र जप, पूजा स्थल
या आराध्य की परिक्रमा, दान
इत्यादि में इस गणना को महत्व
दिया जाता है. जपमाला में इसीलिए
108 मणियाँ या मनके होते हैं.
उपनिषदों की संख्या भी 108 ही है.
विशिष्ट धर्मगुरुओं के नाम के साथ इस
संख्या को लिखने की परंपरा है. तंत्र में
उल्लेखित देवी अनुष्ठान भी इतने ही हैं.
परंपरानुसार इस संख्या का प्रयोग
तो सभी करते हैं, लेकिन इसको अपनाने के
रहस्यों से ज्यादातर लोग अनभिज्ञ
होंगे. अतः इस हेतु कुछ तथ्य प्रस्तुत हैं-
1. - इस विषय में धार्मिक ग्रन्थों में
अनेक मत हैं .एक मत के अनुसार हम २४
घंटों में २१,६०० बार सांस लेते हैं.
१२ घंटे का समय अपनी दिनचर्या हेतु
निर्धारित है और बाकी के १२ घंटे
का समय देव आराधना हेतु. अर्थात
१०,८०० सांसों में ईष्टदेव का स्मरण
करना चाहिये, किन्तु इतना समय दे
पाना मुश्किल है. अत: अन्तिम दो शून्य
हटा कर शेष १०८ सांसों में प्रभु स्मरण
का विधान बनाया गया है .
इसी प्रकार मणियों की संख्या १०८
निर्धारित की गयी है.
2.- दूसरी विचारधारा के अनुसार
सॄष्टि के रचयिता ब्रह्म हैं. यह एक
शाश्वत सत्य है. उससे उत्पन्न अहंकार के
दो गुण होते हैं , बुद्धि के तीन , मन के
चार , आकाश के पांच , वायु के छ,
अग्नि के सात, जल के आठ और पॄथ्वी के
नौ गुण मनुस्मॄति में बताये गये हैं.
प्रक्रिति से ही समस्त ब्रह्मांड और
शरीर की सॄष्टि होती है. ब्रह्म
की संख्या एक है जो माला मे सुमेरु की है.
शेष प्रकॄति के
२+३+४+५+६+७+८+९=४४
गुण हुये. जीव ब्रह्म
की परा प्रकॄति कही गयी है. इसके
१० गुण हैं. इस प्रकार यह संख्या ५४
हो गयी , जो माला के
मणियों की आधी संख्या है ,जो केवल
उत्पत्ति की है. उत्पत्ति के विपरीत
प्रलय भी होती है,
उसकी भी संख्या ५४ होगी. इस
माला के मणियों की संख्या १०८
होती है.
माला में सुमेरु ब्रह्म जीव
की एकता दर्शाता है. ब्रह्म और जीव मे
अंतर यही है कि ब्रह्म की संख्या एक है
और जीव की दस इसमें शून्य
माया का प्रतीक है, जब तक वह जीव के
साथ है तब तक जीव बंधन में है. शून्य
का लोप हो जाने से जीव ब्रह्ममय
हो जाता है.
माला का यही उद्देश्य है कि जीव जब
तक १०८ मणियों का विचार
नहीं करता और कारण स्वरूप सुमेरु तक
नहीं पहुंचता तब तक वह इस १०८ में
ही घूमता रहता है . जब सुमेरु रूप अपने
वास्तविक स्वरूप की पहचान प्राप्त
कर लेता है तब वह १०८ से निवॄत्त
हो जाता है अर्थात माला समाप्त
हो जाती है. फ़िर सुमेरु
को लांघा नहीं जाता बल्कि उसे उलट
कर फ़िर शुरु से १०८ का चक्र प्रारंभ
किया जाता है
108 की संख्या परब्रह्म की प्रतीक
मानी जाती है. 9 का अंक ब्रह्म
का प्रतीक है. विष्णु व सूर्य
की एकात्मकता मानी गई है अतः विष्णु
सहित 12 सूर्य या आदित्य हैं. ब्रह्म के
9 व आदित्य के 12 इस प्रकार
इनका गुणन 108 होता है. इसीलिए
परब्रह्म की पर्याय इस
संख्या को पवित्र माना जाता है.
3.- मानव जीवन की 12 राशियाँ हैं.
ये राशियाँ 9 ग्रहों से प्रभावित
रहती हैं. इन दोनों संख्याओं का गुणन
भी 108 होता है.
4.- नभ में 27 नक्षत्र हैं. इनके 4-4
पाद या चरण होते हैं. 27 का 4 से
गुणा 108 होता है. ज्योतिष में
भी इनके गुणन अनुसार उत्पन्न 108
महादशाओं की चर्चा की गई है.
5.- ऋग्वेद में ऋचाओं की संख्या 10
हजार 800 है. 2 शून्य हटाने पर 108
होती है.
6.- शांडिल्य विद्यानुसार यज्ञ वेदी में
10 हजार 800
ईंटों की आवश्यकता मानी गई है. 2 शून्य
कम कर यही संख्या शेष रहती है.
जैन मतानुसार भी अक्ष माला में 108
दाने रखने का विधान है. यह विधान
गुणों पर आधारित है. अर्हन्त के 12,
सिद्ध के 8, आचार्य के 36, उपाध्याय के
25व साधु के 27 इस प्रकार पंच
परमिष्ठ के कुल 108 गुण होते हैं ..


presented by Shri Jagmohan Mahajan ji

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