Saturday, August 25, 2012

आखिर सरल बने कैसे ? " by - Swami Mrigendra Saraswati ( FB page अथातो धर्म जिज्ञासा )


आखिर सरल बने कैसे ? " by - Swami Mrigendra Saraswati ( FB page अथातो धर्म जिज्ञासा ) सरलता ही तो मेरे भाई बडी कठिन है। कैसी विचित्र बात है कि सरल बनना बड़ा कठिन है। इसका कारण है कि जटिलता में प्रदर्शन है और अहम् अपनी अभिव्यक्ति के लिए प्रदर्शन चाहता है। इसलिए व्यक्ति जटिलता को चुनता है। पहाड़ों पर चढ़ता है, बने हुए रिकार्डो को तोड़ता है और फिर गर्व की मुस्कान फेंखता है कि उसने सबके रिकार्ड तोड़ दिये हैं, फिर वह रिकार्ड पर्वत शिखर आरोहण में टूटे या अधिक चीखने चिल्लाने में। किसी भी तरह व्यक्ति का अहम् प्रतिष्ठित होना चाहिए और विडम्बना यह है कि हम अपनी भावी पीढ़ियों को रिकार्ड तोड़ने की प्रेरणा देते हैं। जटिल बनने की प्रेरणा अपनी भावी पीढ़ियों को देते हैं। जो जटिलताएँ हम नहीं बना सकते, वे अपने बच्चों में मूर्त करके देखना चाहते हैं, इसलिए कहते हैं कि कुछ विशेष करो, जो किसी ने नहीं किया हो, ताकि तुम्हारा और हमारा नाम हो। एक खेल दिखाने वाला नट रस्सी पर चलता है। यह जटिलता है। इसलिए सब उसे उत्सुकता से देखते हैं। पर जानते है कि अस्तित्वहीन क्रिया है, अभ्यास का फल मात्र है, किन्तु ऐसे ही जटिलताओं के द्वारा विशिष्टता का प्रदर्शन क्या किसी सार्थकता का बोधक है? परन्तु यह संसार है। अहम् को तुष्ट करने के लिए व्यक्ति निरर्थक जटिलताओं के पीछे भागता है, जब कि ऋजुता के पीछे स्वयं भगवान् हैं, किन्तु व्यक्ति ऋजुता को खोकर जटिल बनाता है क्योंकि इससे अहम् सन्तुष्ट होता है, पक्का होता है और वह अहम् ही प्रभु मिलन में बाधक है। इसलिए योगेश्वर श्री वासुदेव कृष्ण ने श्री गीताजी मेँ "ऋजुता" का संदेश दिया है। सरलता अहंकार को जलाती है "मेरे भगवन्।" सरलता से ही हम ईश्वरको प्राप्त किया जा सकता है। सरलता आपके जीवन का मूल स्वरूप है। सरल होने की साधना कठिन तभी तक है, जब तक हम जटिलता की ओर बढ़ रहे है। जटिलता की ओर बढ़ना छोड़ दें। सरलता आपको अंगीकार करेगी। सरल बनने के लिए कोई साधना नहीं करनी पड़ेगी आपको। जटिलता में साहस नहीं है, सरलता में ही साहस है। खूब विचार करेंगे। जटिलता में साहस इसलिए नहीं है कि वह व्यक्ति का स्वभाव बन चुका है, झूठ बोलने, हिंसा करने, धोखा देने में साहस नहीं चाहिए क्योकि वे स्वभाव बन गये हैं। इसके विपरीत सत्य बोलने, ईमानदार होने, प्रमाणिक होने में साहस और संकल्प चाहिए क्योंकि यह धारा के विपरीत चलता है। यानी सरल होना कठिन हो गया है। इसलिए आज जब कोई व्यक्ति किसी के हजारों रुपये से भरी अटैची कहीं पाकर उसे लौटा देता है तो वह अखबारों में समाचार बन जाता है और ईमानदारी अभिनन्दनीय बन जाती है, जब कि यही सरलता है, इसमें कुछ करना ही नहीं है, बस जैसे है, वैसा ही रह जाना है। सरल बनना इसलिए जटिल लगता है कि क्योंकि अभ्यास नहीं है, लेकिन जब हम सरल बनने का अभ्यास कर लेते हैं तो यह बड़ा आनन्ददायक हो जाता है, तब सरल होनेमें जो सुख है, वह उल्लास से भर देता है। तब जटिल होने में बड़ा कष्ट होता है। तब अपने विरुद्ध असत्य बोलने, हिंसा किये जाने, कटु बोलने जैसी बातोँ के प्रतिकार में भी यह जटिलता सध नहीं पाती। सरलता जीवन का वरदान बन जाती है, जीवन का अभिन्न अंग बन जाती है। तो क्यों न हम - आप सरलता की ओर बढ़ें। सरलता की ओर आपके बड़ते चरणों को प्रणाम है । प्रणाम है । बारम्बार प्रणाम है। श्री नारायण हरिः

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