Friday, August 17, 2012

कालसर्प-दोष : by Swami Mrigendra Saraswati


कालसर्प-दोष by Swami Mrigendra Saraswati on Monday, July 26, 2010 at 10:48am · कालसर्प-दोष कालसर्प-दोष एक ऐसा नाम जिससे आज का साधक एवं आम व्यक्ति अच्छी तरह से परिचित है। कुछ लोगों का तो ये हाल है कि जन्म कुंडली देखते ही चौंक पडते है और कह उठते है की तुम्हारी कुंडली में तो कालसर्प-दोष है क्या तुमने इसका कोई उपाय किया या नहीं। अगर समने वाला व्यक्ति ये कहें कि मुझे तो इसके बारे में कुछ भी नहीं मालुम, मुझे आज तक किसी ने कुछ नहीं बताया या फिर मुझे मालुम तो था किन्तु मैने अभी तक कोई उपाय नहीं किया हैं। इतना सुनते ही कालसर्प-दोष को बताने वाला व्यक्ति सामने वाले व्यक्ति को कालसर्प-दोष के बारे में पूरा भाषण दे डालता है और फिर अनेको उपाय बताने लगता है। कालसर्प-दोष के बारे में बताने वाला कालसर्प-दोष के बारे में स्वयं कितना जानता है, ये शायद उसे भी नहीं मालुम। कालसर्प-दोष या कालसर्प योग - जब जन्म-कुंडली में सभी ग्रह राहु और केतु के मध्य स्थित हो तो कालसर्प-दोष बनता है। यदि जन्म-कुंडली में कुछ ग्रह राहु-केतु के मध्य हो और कोई भी एक या दो ग्रह अलग से हो तो कालसर्प-दोष नहीं बनता। किन्तु जो ग्रह राहु-केतु से बाहर है, यदि उनके अंश राहु-केतु से कम है तो कालसर्प-दोष बनता हैं। महर्षि पराशर एवं वराहमिहिर जैसे प्राचीन ज्योतिषाचार्यो ने भी अपने ग्रंथों में कालसर्प-दोष के बारे में वर्णन किया है। इनके अलावा भृगु, बादरायण, गर्ग आदि महर्षियों ने भी अपने ग्रंथों में कालसर्प-दोष को सिद्ध किया है। ज्योतिष-शास्त्र एवं अध्यात्म-शास्त्र में राहु-केतु को सर्प माना है। सही मायने में तो काल और सर्प, राहु ग्रह के अधि-देवता और प्रति-देवता है। इन अधि-देवता और प्रति-देवता दोनों के नामों को मिलाने से ही कालसर्प नामक शब्द बना है। ध्यान-पूर्वक अध्ययन करने से पता चलता है कि यदि जन्म-कुंडली में राहु कि स्थिति खराब है तो भी काल-सर्प दोष बनता है। क्योंकि काल और सर्प ये दोनों राहु ग्रह के ही अधि-देवता और प्रति-देवता है। आप-अपनी या किसी की भी कुंडली में कालसर्प योग को देखने से पहले एक बात अवश्य याद रखें कि लग्न से लेकर 12वें भाव तक जो कुंडली बनती है, वह घड़ी के विपरित अर्थात् एंटी क्लॉक वॉइज़ बनती है। जबकि कुंडली के अंदर राहु-केतु घड़ी की दिशा में अर्थात् क्लॉक वॉइज़ चलते है। इसलिए यदि किसी कि भी कुंडली में राहु-केतु के बीच में सभी ग्रह घड़ी की दिशा में अर्थात् क्लॉक वॉइज़ है, तभी कालसर्प योग बनेंगा। यदि इसके विपरित दिशा में ग्रह है, तो कालसर्प-दोष नहीं माना जायेगा। सभी समयानुसार मार्गी एवं वक्री होते रहते हैं, किन्तु राहु-केतु हमेशा ही वक्री होते हैं, इसलिऐ इनकी वक्री स्थिति के अनुसार ही जब सारे ग्रह इनके मध्य स्थित होगें तभी काल-सर्प योग दोष बनेगा। आजकल के कुछ विद्वान मानते हैं, कि जन्म-कुंडली में कमजोर ग्रहों का होना अर्थात् शुभ-ग्रहों का कम अंशो में होना, शत्रु-राशि में स्थित होना, अशुभ-ग्रहों से दृष्टि संबध होना तथा शुभ-ग्रहों का नीच स्थिति में होना एवं केन्द्र तथा त्रिकोण के ग्रहों का किसी भी तरह से अशुभ होने को काल-सर्प दोष मानते हैं। क्योंकि ग्रहों की यह अवस्था भी काल-सर्प दोष के समान ही हानिकारक है (किन्तु उपाये की दृष्टि से ग्रहों की इस अवस्था में रूद्रा-अभिषेक तथा अधिदेवता, प्रतिदेवता सहित नव-ग्रहों की पूजा ही फल दायक है।) इस अवस्था में राहु-केतु का किया गया कोई भी उपाय कारगर साबित नहीं होगा। इसके विपरीत यदि आप कि जन्म कुंडली में काल-सर्प दोष पूरा बनता है तो राहु-केतु के उपाय सहित सभी उपाय किये जा सकतें हैं। कालसर्प-दोष या कालसर्प योग 288 प्रकार के है। क्योंकि 12 राशियों में 12 प्रकार का कालसर्प योग (12 x 12 = 144) तथा 12 लग्नों में 12 प्रकार कालसर्प योग (12 x 12 = 144) । दोनों को मिलाने से कुल 288 प्रकार का कालसर्प दोष होता है। इनमें से मुख्य 12 प्रकार के कालसर्प योग इस प्रकार हैं- 1. अनंत कालसर्प योग - प्रथम भाव में राहु और सप्तम भाव में केतु हो। 2. कुलिक कालसर्प योग - दूसरे भाव में राहु और आठवें भाव में केतु हो। 3. वासुकि कालसर्प योग - तीसरे भाव में राहु और नवम भाव में केतु हो। 4. शंखपाल कालसर्प योग - चतुर्थ भाव में राहु और दशम भाव में केतु हो। 5. पद्म कालसर्प योग - पंचम भाव में राहु और एकादश भाव में केतु हो। 6. महा पद्म कालसर्प योग - छठे भाव में राहु और द्वादश भाव में केतु हो। 7. तक्षक कालसर्प योग - सप्तम भाव में राहु और प्रथम भाव में केतु हो। 8. कर्कोटक कालसर्प योग - आठवें भाव में राहु और दूसरे भाव में केतु हो। 9. शखनाद कालसर्प योग - नवम भाव में राहु और तीसरे भाव में केतु हो। 10. पातक कालसर्प योग - दशम भाव में राहु और चतुर्थ भाव में केतु हो। 11. विषाक्त कालसर्प योग - एकादश भाव में राहु और पंचम भाव में केतु हो। 12. शेषनाग कालसर्प योग - द्वादश भाव में राहु और छठे भाव में केतु हो। कालसर्प दोष को दूर करने के लिये हम कुछ उपाय बता रहें है। इन उपायों को हमने अनेकों साधकों से करवाया और ये उपाय हर बार हमारी कसौटी पर खरे उतरे। आवश्यक्ता है तो श्रद्धा और विश्वास के सथ इन उपायों को करने की। 1. ॐ नमः शिवाय॥ मंत्र का सवा-लाख जाप स्वयं करे या करवायें साथ ही दशांश हवन, तर्पण, मार्जन तथा ब्राह्मण भोजन करवायें। 2. रुद्राभिषेक करवायें। 3. कालसर्प दोष निवारण स्तोत्र के 11 पाठ नित्य करें। इस स्तोत्र के पाठ करने का तरीका इस प्रकार है- ॐ श्रीगुरुवें नमः॥ - 5 बार उच्चारण करें। ॐ श्री गणेशाय नमः॥ - 5 बार उच्चारण करें। कालसर्प दोष निवारण स्तोत्र के 11 पाठ करें। ॐ ॐ ॐ ॐ ॥ कालसर्प दोष निवारण स्तोत्र ॥ ॐ ॐ ॐ ॐ ब्रह्म लोके च ये सर्पाः शेषनाग पुरोगमाः। नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताः प्रसन्नाः संत मे सदा॥1॥ विष्णु लोके च ये सर्पाः वासुकि प्रमुखाश्च ये। नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताः प्रसन्नाः संत मे सदा॥2॥ रुद्र लोके च ये सर्पाः तक्षक प्रमुखास्तथा। नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताः प्रसन्नाः संत मे सदा॥3॥ खांडवस्य तथा दाहे स्वर्गं ये च समाश्रिताः। नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताः प्रसन्नाः संत मे सदा॥4॥ सर्प सत्रे च ये सर्पाः आस्तिकेन च रक्षिताः। नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताः प्रसन्नाः संत मे सदा॥5॥ प्रलये चैव ये सर्पाः कर्कोट प्रमुखाश्च ये। नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताः प्रसन्नाः संत मे सदा॥6॥ धर्म लोके च ये सर्पाः वैतरण्यां समाश्रिताः। नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताः प्रसन्नाः संत मे सदा॥7॥ ये सर्पाः पार्वती-येषु दरी संधिषु संस्थिताः। नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताः प्रसन्नाः संत मे सदा॥8॥ ग्रामे वा यदि वारण्ये ये सर्पाः प्रचरन्ति हिः। नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताः प्रसन्नाः संत मे सदा॥9॥ पृथ्वि व्याम् चैव ये सर्पाः ये सर्पाः बिल संस्थिताः। नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताः प्रसन्नाः संत मे सदा॥10॥ रसातले च ये सर्पाः अनंताद्या महाबलाः। नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताः प्रसन्नाः संत मे सदा॥11॥ * सुशान्ति भवतु * 4. नाग गायत्री मंत्र की 3, 5, 7, 11 आदि माला का जाप करें। नाग गायत्री मंत्र – ॐ नव कुलाय विध्महे विषदन्ताय धीमहि तन्नो सर्पः प्रचोदयात्॥ 5. राहु के मंत्र “ॐ रां राहुवे नमः” का सवा-लाख जाप स्वयं करे या करवायें साथ ही दशांश हवन, तर्पण, मार्जन तथा ब्राह्मण भोजन करवायें। ॥हरि ॐ तत्सत्॥

No comments:

Post a Comment