Wednesday, June 20, 2018

मातु पितु को नमन

पितृ दिवस पर विशेष---
सादर नमन

रहे सदा जीवनभर जग में, तुम मेरी पहचान पिता,
चुका नहीं पातीं जीवनभर, इस ऋण को संतान, पिता ।
चले तुम्हारी अंगुली थामे , हम पथरीली राहों पर,
बिना तुम्हारे वो सब रस्ते, रह जाते अनजान पिता ।
मेरे तुतलाते बोलों ने अर्थ तुम्हीं से पाया था,
मेरी बीमारी में अक्सर बन जाते तुम भगवान पिता ।
गुरु ,जनक, पालक,पोषक,रक्षक तुम भाग्यविधाता भी,
मोल तुम्हारा जान न पाए , हम ऐसे है नादान,,  पिता ।
अपनी, आँखों के तारों का, आसमान थे सचमुच तुम
कभी नहीं चुक पाएगा, हमसे यह ऋण , मातु पिता ।
तुम माँ के माथे की बिंदिया, और हमारा संबल थे,
बिना तुम्हारे और माँ के अब, हम खुद से भी है अनजान,  पिता ।
पिता तुम्हारे कंधे चढ़ कर हम नें जग के मेले देखे थे,
अपने कांधे तुम्हें चढ़ा कर, विव्हल आये शमशान पिता ।

आर.सी. शर्मा "आरसी" "दीप-शिखा" विद्या विहार, कोटा जं०-324002 जी की सुंदर रचना आनंद लें.

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