Friday, October 30, 2020

 केतु


केतु के नाम से इतना भय उत्पन्न नहीं होता जितना राहु के नाम से होता है। राहु की छवि ही ऐसी गढ़ी गई है। यह अकारण नहीं है, क्योंकि ज्योतिष में राहु का नैसर्गिक बल सूर्य से भी अधिक माना गया है। प्रसिद्ध ऋषि जैमिनी ने तो केतु को बहुत अधिक प्रतिष्ठा दी है और वे उसे मोक्ष कारक भी मानते हैं। जैमिनी ने अपने जैमिनीसूत्रम् में यह बताया है कि जन्म पत्रिका के 12वें भाव में अगर बृहस्पति और केतु एक साथ स्थित हों तो मोक्ष करा देते हैं। ऐसा तब भी संभव है जब 12वें भाव के स्वामी या 12वें भाव को बृहस्पति और केतु एक साथ प्रभावित कर रहे हों। परन्तु इनमें से एक भी 12वें भाव या 12वें भाव के स्वामी को प्रभावित करें तो अगला जन्म अच्छी योनि में होता है और व्यक्ति मोक्ष मार्ग प्राप्त करने के लिए उचित उपाय करने लगता है। 

समुद्र मंथन की प्रक्रिया में जब अमृत का वितरण हो रहा था, तो दैत्य स्वरभानु देवताओं की पंक्ति में जाकर बैठ गये। सूर्य और चन्द्रमा ने भगवान विष्णु को इसका बोध करवाया तो उन्होंने स्वरभानु का सिर सुदर्शन चक्र से काट दिया। सिर तो राहु कहलाया और धड़ केतु। परन्तु चूंकि अमृत गले से नीचे उतर चुका था इसलिए राहु और केतु दोनों ही अमर हो गये। सूर्य और चन्द्रमा से कुपित होने के कारण राहु और केतु दोनों ही सूर्य ग्रहण या चन्द्र ग्रहण करा देते हैं। 

मत्स्यपुराण के अनुसार केतु बहुत से हैं। इनमें धूमकेतु प्रधान है। केतु का वर्ण धूम्र, आयुध गदा तथा वाहन गीध। सभी केतु द्विबाहु हैं, उनके मुँह विकृत हैं और वे वरदान देने की मुद्रा में रहते हैं। केतु के अधिदेवता चित्रगुप्त हैं जो कि प्राणियों के कर्मों का लेखा-जोखा रखते हैं। इसका विवरण स्कन्द पुराण में मिलता है। 

ज्योतिष में केतु को आकस्मिक घटनाएँ देने वाला माना है। केतु ग्रहों के कारण दोषों का नाश भी करते हैं और जिस ग्रह के साथ होते हैं, उस ग्रह का परिणाम देते हैं। मनुष्य के शरीर में दाँत और त्वचा पर केतु का नियंत्रण होता है। जब केतु की दशा-अन्तर्दशा आती हैं, या तो दाँतों में चोट लगती है या नया दाँत लगता है या दाँतों पर कैप लगती है या दाँतों के रोग होते हैं। 

अगर जन्म पत्रिका के दूसरे भाव से केतु का सम्बन्ध हो और शुभ ग्रह की दृष्टि हो तो व्यक्ति की दंत पंक्ति बहुत सुन्दर होती है। जन्म पत्रिका के 12वें भाव या दूसरे भाव में केतु की स्थिति और केतु का प्रभाव दाँत से सम्बन्धित रोग उत्पन्न करता है। 

केतु का सम्बन्ध ज्योतिष में ध्वजा से भी जोड़ा जाता हैं। यदि जन्म पत्रिका में केतु शुभ अवस्था में हो तो व्यक्ति को सम्मान दिलाता है, पुरस्कार दिलाता है। केतु शुभ होने पर अचानक बहुत बड़ा धन भी दिलाता है। केतु पर शुभ ग्रहों का प्रभाव हो तो समाज में, संस्थाओं में या राष्ट्र में व्यक्ति शीर्ष स्थिति पर पहुँच सकता है परन्तु केतु यदि अशुभ हो, पाप ग्रहों के बीच में हो, या शनि, मंगल जैसे ग्रहों से पीडि़त हो तो व्यक्ति का पतन भी करा देता है। 

केतु की दशा-अन्तर्दशाओं में दाँत के रोग या त्वचा से सम्बन्धित रोग उत्पन्न होते हैं। केतु शल्य चिकित्सा के माध्यम से शरीर का कोई अंग निकाल देने में भी माध्यम बनते हैं। बैक्टीरिया या वायरस से होने वाले रोग त्वचा पर होते हैं और उनका इलाज मुश्किल हो जाता है। केतु का कुल महादशा काल 7 वर्ष का होता है और केतु के बारे में यह मान्यता है कि जिस ग्रह के साथ होते हैं, उस ग्रह का परिणाम देते हैं। परोपकार करने में केतु बहुत बड़ी भूमिका निभाते हैं और व्यक्ति को ईश्वर से नजदीक ले जाने में सहायक सिद्ध होते हैं। इस क्रम में व्यक्ति दान पुण्य और परोपकार अधिक मात्रा में करता है। दूसरे भाव से केतु का सम्बन्ध होना इसलिए विशेष है क्योंकि वह व्यक्ति सच्ची सलाह देता है और कटुवाणी में संकोच नहीं करता। इस कारण से उसके सम्बन्ध बहुत बड़ी संख्या में नहीं होते और लोग उससे कटने लगते हैं।


साभार श्री सतीश शर्मा जयपुर

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