Thursday, October 15, 2020

 सभी दिशाएँ होती हैं शुभ


शास्त्रों के अनुसार कुल मिलाकर 10 दिशाएँ मानी गई हैं - पूर्व दिशा, अग्रिकोण, दक्षिण दिशा, नैर्ऋत्य कोण, पश्चिम दिशा, वायव्य कोण, उत्तर दिशा, ईशान कोण, आकाश एवं पाताल। इन दिशाओं को लेकर कई तरह के भ्रम चल रहे हैं। दिशाएँ सभी शुभ होती हैं यदि उस दिशा के अनुकूल स्थापनाएँ उसमें की जाएँ। दक्षिणमुखी मकानों को लेकर लोग भ्रमित रहते हैं। वास्तुशास्त्र के अनुसार हर दिशा में 8-8 द्वारों की योजना होती है। उन द्वारों में से तीन द्वार उत्तर में, 2 द्वार पूर्व में, 2 द्वार पश्चिम में व केवल 1 द्वार दक्षिण दिशा में शुभ माना गया है। इन द्वारों के लिए निर्धारित स्थानों के अतिरिक्त अन्य स्थानों पर मुख्य द्वार बनाया जाये तो वह अशुभ परिणाम देता है। यह बात फ्लैट्स पर भी लागू होती है। जो मकान जमीन लेकर बनाये जाएं उनमें बाहरी बाउण्ड्री पर द्वार योजना लागू की जाती है। इसका अर्थ यह हुआ कि दक्षिण दिशा में यदि वास्तु शास्त्र में वर्णित स्थान वाला ही द्वार खोजा जाए तब तो अति शुभ परिणाम आते हैं और यदि दक्षिण के शेष 7 द्वारों में से कोई मुख्य द्वार हो जाए तो अत्यंत अशुभ परिणाम आते हैं। इनमें धोखा, फरेब, घात-प्रतिघात जैसे परिणाम भी शामिल हैं। 

जिन ऋषियों ने ये नियम गढ़े वे मकान को व्यवसाय स्थान नहीं बनाना चाहते थे। इसीलिए उन्होंने दक्षिणमुखी और पश्चिम मुखी मकानों को ज्यादा पसन्द नहीं किया। दक्षिण और पश्चिम दिशाओं में व्यवसाय की प्रवृत्ति पाई जाती है। परन्तु आज के जमाने में इतना सब कुछ सम्भव नहीं है। दक्षिण और पश्चिम के द्वार तो शुभ या अशुभ हो सकते हैं परन्तु भूखण्ड या फ्लैट की दक्षिण दिशा में सोना, बैठना या गद्दी बनाना अति शुभ माना गया है। इसके बाद दूसरे महत्त्व की जगह पश्चिम दिशा है। भारत में ऐसे बहुत बड़े-बड़े कारखाने हैं जो दक्षिणमुखी हैं और सफलता से चल रहे हैं। यहाँ थोड़ा ज्योतिष भी काम आती हैं क्योंकि दक्षिण दिशा मंगल की मानी गयी है और वे मशीनों का काम सफल बना देते हंै। 

दिशाओं की रचना भगवान ने नहीं की है। उनका निर्धारण मनुष्य ने ही किया है। प्राचीन ऋषि जो कि उस समय के महान वैज्ञानिक थे, ने प्रकृति में व्याप्त ऊर्जा प्रणालियों को पहचान करके उन्हें मानव हित में प्रयुक्त करने की योजना बनाई, जो वास्तु शास्त्र का महत्त्वपूर्ण विषय है। ईश्वर ने तो ऊर्जा का समान वितरण किया है, यह हम पर निर्भर है कि हम उससे किस प्रकार लाभ उठा सकते हैं। इस आधार पर कोई भी दिशा वर्जित नहीं है, सभी दिशाओं से सुख और सम्पत्ति अर्जित की जा सकती है। हाँ, कुछ वर्जनाएँ अवश्य हैं जिनका ध्यान रखा जाना चाहिए। कम्पास से नापने के आधार पर ईशान, अग्नि, नैर्ऋत्य व वायव्य कोणों में न तो शौचालय हों और ना ही मुख्य द्वार। शौचालय तो मुख्य चार दिशाओं यथा उत्तर, पूर्व, दक्षिण व पश्चिम में भी नहीं होने चाहिए। परन्तु दिशा ज्ञान कम्पास के आधार पर ही किया जाना चाहिए।

No comments:

Post a Comment