Thursday, October 15, 2020

 चित्रा नक्षत्र


भारतीय नक्षत्र गणना में चित्रा 14वाँ है। इस नक्षत्र के आधे भाग को कन्या राशि में लिया गया है और आधे भाग को तुला में। चित्रा नक्षत्र के स्वामी ग्रह मंगल माने गये हैं। नक्षत्र के देवता त्वष्टा हैं, जिनकी गणना द्वादश आदित्यों में की गई है। अंग्रेजी में इस नक्षत्र को स्पाइका या अल्फा-वर्जिनिस कहते हैं। नंगी आँखों से देखे जाने वाले सबसे चमकदार तारों में इसकी गणना होती है। यह अग्नि तत्त्व के हैं। तामसिक गुण हैं, पित्त प्रधान हैं और इनकी बीज ध्वनि पे, पो, रा, री है। अर्थात् पहले चरण का नामाक्षर पे पर रखा जाता है। नक्षत्र के दूसरे चरण में जन्मे व्यक्ति का नाम पो पर रखा जा सकता है। तीसरा चरण जो कि तुला राशि में पड़ता है, में जन्मे व्यक्ति का नाम रा पर रखा जा सकता है और चित्रा नक्षत्र के चौथे और आखिरी चरण में जन्मे व्यक्ति का नाम री अक्षर पर रखा जा सकता है। 

इस नक्षत्र में जन्मे व्यक्ति अत्यंत आकर्षक व्यक्ति के स्वामी होते हैं, ऊर्जावान, कलाकार, महान प्रेमी, शूरवीर, ज्ञानी, विवेकी, बहुत सारे गुणों से युक्त, साफ-सुथरा रहने वाले व जन्म स्थान से कहीं दूर उन्नति पाने वाले होते हंै। यह लोग अत्यंत प्रतिभाशाली होते हैं, आत्म विश्वास से परिपूर्ण होते हैं। जीवन में जोखिम लेते हैं। कभी -कभी बहुत प्रतिक्रियावादी होते हैं और जीवन में कई बार लीक से हटकर काम करते हैं। यह लोग कलाओं में कुशल, सौन्दर्यशास्त्र में कुशल, चिकित्सा का कार्य करने वाले, वाणी का उपयोग करने वाले, योजनाएँ बनाने वाले व प्रतिभा से प्रदर्शन करने वाले हो सकते हैं। इनकी मुख्य समस्या यह है कि एक से अधिक गतिविधियों में जुड़े रहते हैं, इसीलिए एकाग्रता बनाये रखने के लिए विशेष प्रयास करने पड़ते हैं। 

भारतीय ज्योतिष चित्रापक्षीय अयनांश पर आधारित है अर्थात् सूर्य का अपनी मूल कक्षा से जो विचलन हो रहा है उसकी गणना के लिए या सूर्य की वास्तविक स्थिति के ज्ञान के लिए चित्रा नक्षत्र को उपयोग में लाया जाता है। वैसे तो सूर्य को नग्न आँखों से देखा जाना संभव नहीं है, इसीलिए पुराने ऋषियों से एक विधि निकाली। चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा चित्रा नक्षत्र पर होते हैं। जब वे चित्रा नक्षत्र के ठीक मध्य में स्थित होकर तुला राशि में प्रवेश करने वाले होते है, ठीक उसी समय उनसे 180 अंश पर सूर्य की स्थिति होती है, जो कि मीन राशि से मेष राशि में प्रवेश लेने को तत्पर होते हैं। इससे सूर्य की गति और स्थिति का पता लगाया जाता है। इस गणना पद्धति को ही विस्तार दिया जाकर सूर्य की गति का और ज्योतिष की गणनाओं का प्रयोग किया जाता है। चूँकि चित्रा नक्षत्र गणना का आधार बिन्दु है, इसलिए अयनांश गणना पद्धति चित्रा पक्षीय कहलाती है जो कि भारतीय ज्योतिष की विशेषता है। इसे भारत सरकार ने भी स्वीकार कर लिया है। आकाश में इन्हें पहचानने के लिए पहले तो सप्तऋषि मण्डल को पहचाना जाता है और उनके सम्मुख ही चित्रा नक्षत्र की पहचान की जा सकती है। 

चित्रा नक्षत्र में जन्मे व्यक्ति सुन्दर होते हैं, सौन्दर्य प्रेमी होते हैं, इन्हें सजना-संवरना अच्छा लगता है और 33 से 38 वर्ष की आयु में इनका भाग्योदय होता है। जब चित्रा नक्षत्र में जन्मे व्यक्ति का जन्म कन्या राशि में होता है तब ये जोखिम लेने वाले और पराक्रमी होते हैं और जब चित्रा नक्षत्र के बाद के 2 चरणों में जन्म होता है, जो कि तुला राशि के अन्तर्गत होते हैं, तो वे अत्यंत आकर्षक व कामुक होते हैं। 

मंगलवार के दिन 7 प्रकार के अनाज का दान तथा गुड़ व तिल का दान लाभकारी रहता है। इस नक्षत्र के लिए जब यज्ञ किया जाता है तो वैदिक मंत्र के साथ यज्ञ समिधा में तिल और घी के साथ-साथ पान के पत्ते की आहुति भी दी जाती है। वैदिक मंत्र विश्वकर्मा से सम्बन्धित है जो इस प्रकार है- 

ॐ त्वष्टा तुरीयो अद्भुत इन्द्राग्री पुष्टिवद्र्धनम्। 

द्विपदाछन्द ऽइन्द्रियमुक्षा गौत्रवयोदध: ॐ विश्वकम्र्मणे नम:।।

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