Thursday, October 15, 2020

 सम्मोहक हैं शनिदेव- पं. सतीश शर्मा, एस्ट्रो साइंस एडिटर, नेशनल दुनिया

साढ़े साती का नाम लेते ही लोग डरने लगते हैं। जबकि आधे मामलों में साढ़े साती कल्याणकारक होती है। जैसे इन दिनों जन्म कालीन कुम्भ राशि वालों के लिए शनि की पहली ढैय्या कल्याणकारक है। आने वाले वर्ष में लाभ देने वाली है। किसी भी साढ़े साती की अवधि में शनि जब मकर, कुम्भ या तुला राशि में होते हैं तो बुरे ही नहीं अच्छे परिणाम भी मिलते हैं। 

क्या है साढ़े साती- 

किसी भी राशि में जब चन्द्रमा होते हैं तो जन्म कालीन इस राशि को व्यक्ति की राशि माना जाता है। आज कल जन्म नक्षत्र के आधार पर नाम नहीं रखे जा रहे इसीलिए प्रचलित नाम से राशि मानना उचित नहीं है, प्रत्येक व्यक्ति को जन्मकालीन राशि का ज्ञान होना ही चाहिए। साढ़े साती में शनिदेव कुल मिलाकर 2800 दिन रहते हैं। औसतन तीन राशियों में शनि के भ्रमण काल को साढ़े साती बोला जाता है। ढाई वर्ष तक शनिदेव एक राशि में भ्रमण करते हैं। आपकी जन्म राशि से पहली वाली राशि में जब शनि आते हैं तब साढ़े साती शुरु होती है। ढाई साल उस राशि में रहकर उसके बाद की जिस राशि में जन्म कालीन चन्द्रमा हैं उस राशि में शनि ढाई साल भ्रमण करते हैं और उतरती हुई साढ़े साती में जन्म राशि से बाद वाली राशि में ढाई साल तक भ्रमण करते हैं। 

चढ़ती हुई साढ़े साती ज्यादा प्रभावशाली होती है और उतरती हुई साढ़े साती पैरों पर से उतरती है और साढ़े साती के परिणामों से धीरे-धीरे मुक्त करती है। साढ़े साती को ही ज्योतिषी लोग दीर्घ कल्याणी कहते हैं। शनि जब जन्म राशि से चौथे, 8वें और 12वें भाव में क्रमश: ढाई-ढाई साल के लिए भ्रमण करते हैं तो उसे लघु कल्याणी कहा जाता है। इससे भी लोग डरा करते हैं परन्तु अगर यही शनि मकर राशि, कुम्भ राशि, जो कि शनि की अपनी ही राशियाँ हैं और तुला राशि जो कि शनि की उच्च राशि में हों तो डरने की आवश्यकता नहीं है। इन राशियों के लिए शनि लाभप्रद है बल्कि उपरोक्त स्थितियों में कुछ अन्य राशियों को भी शनि लाभ पहुँचा सकते हैं। कभी-कभी शनि का कुछ नक्षत्रों में भ्रमण बड़े परिणाम लाता है। उदाहरण के तौर पर राजा दशरथ ज्योतिषियों की इस भविष्यवाणी से डर गये थे कि शनि रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश करने वाले थे और राज्य में 12 वर्षों तक अकाल पडऩे वाला था। महाराज स्वयं शनि से युद्ध करने पहुँच गये थे। 

साढ़े साती में तो शनि लगातार 7 वर्ष तक प्रभावित करते हैं जबकि लघु कल्याणी में एक बार शनि ढाई वर्ष तक प्रभावित करते हैं उसके कई वर्षों बाद अगली ढैय्या आती है।

राजपाठ भी छिनें हैं साढ़े साती में- 

इतिहास में बहुत सारे उदाहरण हैं जब साढ़े साती आने पर राजाओं के राजपाठ छिन गए और लोगों के व्यवसाय का पतन हो गया। शनि के द्वारा प्रदत्त नकारात्मक परिणामों का प्रचार अधिक हुआ है जिसके कारण लोग डरते हैं। जबकि यह पूरा सच नहीं है। 

महाधनी भी हो गये हैं साढ़े साती में - 

कई लोग साढ़े या ढैय्या आने पर असाधारण प्रगति पा गये हैं। शनि अपनी राशियों या उच्च राशियों में आने पर कई लोगों को मालामाल कर देते हैं। उदाहरण के लिए इन दिनों शनि उन लोगों की मौज कर देंगे जिनकी मकर राशि लग्न में, चतुर्थ भाव में, पंचम भाव में, नवम भाव में, दशम भाव में या एकादश भाव में भ्रमण कर रहे हों। इनमें नवम भाव में मकर के शनि अति श्ािक्तशाली परिणाम देंगे और शत्रु नाश करेंगे। शनि के साथ एक ही समस्या है कि जहाँ उनकी वर्तमान स्थिति जीवन के किसी एक विषय को बहुत अधिक लाभ पहुँचाती है तो किसी न किसी अन्य विषय में हानि भी पहुँचती है। ऐसा शनि की दृष्टि के कारण होता है। ज्योतिष में ग्रहों की दृष्टि विशेष प्रभाव रखने वाली होती है। शनि और मंगल की दृष्टियाँ सामान्य नियमों से थोड़ा हट कर होती हैं। 

साढ़े साती की गणित - 

1. मस्तिष्क - 10 महीना - शुभ परिणाम 

2. मुख - 3 महीना 10 दिन  - कष्टदायक, हानि 

3. दांहिना नेत्र - 3 महीना 10 दिन - शुभ परिणाम, प्राप्ति

4. बांया नेत्र - 3 महीना 10 दिन - शुभ परिणाम, प्राप्ति

5. दांहिनी भुजा - 1 वर्ष 1 महीना 10 दिन - शुभ समाचार 

6. बांयी भुजा - 1 वर्ष 1 महीना 10 दिन - नया कार्य, शुभ

7. हृदय - 1 वर्ष 4 महीना 20 दिन - आर्थिक लाभ 

8. दाहिना पैर - 10 महीना - तीर्थाटन, भ्रमण 

9. बांया पैर - 10 महीना - कठिन समय 

10. गुदा - 6 महीना 20 दिन - परेशानियों का समय 


परन्तु यदि साढ़े साती की आखिरी ढैय्या में शुभ राशियाँ हों तो शनि उत्तम परिणाम भी दे जाते हैं। आमतौर से जाती हुई साढ़े साती एक चीज लेती है और एक दे देती है। कई बार तो इतनी सांत्वना मिलती है जैसे कि सिर से बड़ा बोझ उतर गया हो। 

ऋषि मुनि करते थे इंतजार - 

ज्योतिष जगत में शनि को दण्ड नायक माना जाता है। अच्छे और बुरे कर्मों का दिग्दर्शन कराते हैं शनि और न्याय करते हैं। सूर्य के बाद शनि सबसे शक्तिशाली हो गये थे क्योंकि सूर्य पत्नी छाया से उत्पन्न होने के कारण ये काले थे और पिता की उपेक्षा नहीं सह पाए। इन्होंने घोर तपस्या की और शक्तिशाली हो गये। भगवान शिव से इन्होंने वरदान पाया कि पिता से भी अधिक शक्तिशाली हो जाएं। भगवान शिव ने इन्हें दण्डनायक अधिकारी नियुक्त किया। 

पत्नी ने दिया था श्राप - 

एक बार पुत्र प्राप्ति की इच्छा से शनि की पत्नी धामिनी जो कि गंधर्व चित्ररथ की पुत्री थी, इनके पास गई परन्तु शनि कृष्ण भक्त थे और उनकी तपस्या में लीन थे। बहुत प्रतीक्षा के बाद भी जब शनि ने ध्यान नहीं दिया तो वे क्रोधित हो गईं और शनि को श्राप दिया कि शनि जिसको देखेंगे वह नष्ट हो जाएगा। शनिदेव सिर नीचा करके रहने लग गये। ज्योतिष जगत में शनि की दृष्टि बहुत बदनाम है। जन्म पत्रिका में तीसरी, सातवीं और दसवीं दृष्टि प्रसिद्ध है। शनि जहाँ बैठे हैं उससे तीसरे, सातवें और दसवें स्थान में अगर शनि की अपनी राशि या उच्च राशि हो तब तो रक्षा हो जाती है और शुभ परिणाम मिलते हैं अन्यथा यह दृष्टि कष्टकारक होती है। वैसे शनि अपने मित्र ग्रहों की राशि को भी लाभ देते हैं। जैसे कि शुक्र ग्रह की राशि। 

पौराणिक किस्से - 

रावण ने शनि को बंदी बनाकर उल्टा लटका दिया, लंका जलाकर हनुमान जी ने उनके शरीर पर दर्द निवारण के लिए तेल की मालिश की। तब से शनि को तेल चढ़ाने की परम्परा शुरु हुई। इनकी शांति के लिए तिल, भैंस, तेल, काले कपड़े, चमड़ा इत्यादि दान किया जाता है। इनका रत्न नीलम है। 

इन दिनों धनु राशि, मकर राशि और कुम्भ राशि वालों की शनि की साढ़े साती चल रही है। शनि के लिए निम्न मंत्र का जप किया जा सकता है-

शनि का पौराणिक मंत्र -

ऊँ ह्रिं नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम। छाया मार्तण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम्।।

शनि का वैदिक मंत्र - 

ऊँ शन्नोदेवीर- भिष्टयऽआपो भवन्तु पीतये शंय्योरभिस्त्रवन्तुन:। औम स्व: भुव: भू: प्रौं प्रीं प्रां औम शनिश्चराय नम:

तांत्रिक शनि मंत्र- 

ऊँ प्रां प्रीं प्रौं स: शनैश्चराय नम:।

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